अब तक तो मुझे सन्देह ही था किन्तु अब मुझे आकण्ठ विश्वास हो गया है संघ के विहिप, बजरंग दल जैसे आनुषंगिक संगठनों का गौ-प्रेम, पाखण्ड और प्रदर्शन के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। सारी दुनिया जीवित गाय का दूध दुहती है किन्तु ये लोग मरी गाय को दुहते हैं।
गए दिनों मेरे कस्बे में और मेरे कस्बे से 34 किलोमीटर दूर दूसरे कस्बे में हुई घटनाओं ने मेरे सन्देह को विश्वास में बदला। कुछ दिनों पूर्व, एक रात, मेरे कस्बे में एक लावारिस ट्रक मिला जिसमें गायें निर्ममता और क्रूरतापूर्वक ठूँस-ठूँस कर भरी हुई थीं। इसी कारण कुछ (इनकी संख्या इस समय मुझे 17 याद आ रही है) गायें मर गईं। खबर मिलते ही विहिप और बजरंग दल के लोग मौके पर पहुँचे। बात सचमुच में गम्भीर और उत्तेजित करने वाली थी। अगली सुबह लोग जब उठे तो उन्हें मालूम हुआ कि आज नगर बन्द की घोषणा की गई है। बन्द की यह घोषणा इतनी आकस्मिक थी कि पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर को भी अत्यन्त विलम्ब से इसकी सूचना मिली। पुलिस अधीक्षक तो अपने निर्धारित कार्यक्रमानुसार यात्रा पर निकल चुके थे। उन्हें रास्ते में खबर मिली तो उल्टे पाँव लौटकर जिला मुख्यालय पहुँचे।ऐसे अवसर पर जैसा कि होता ही है, इन संगठनों ने ‘शत प्रतिशत बन्द’ के लिए यथा सम्भव जोर जबरदस्ती की। ‘अपनी सरकार’ होने के कारण ये अतिरिक्त उत्साहित और निश्चिन्त तो पहले से ही थे। अपराह्न में बड़ा जुलूस निकला जिसमें विभिन्न समाजों के संगठन भी शरीक हुए। इनमें वे समाज भी शामिल थे जो ‘अहिंसा और जीव दया’ को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं। छुटपुट अप्रिय घटनाओं को छोड़कर बन्द निपट गया। प्रशासन ने अपनी सूझबूझ के अनुसार स्थिति को सामान्य बनाए रखने के यथा सम्भव प्रयास किए। वे सफल भी हुए।
प्रशासन ने मृत गायों को अपनी देखरेख में गड़वाया और शाम होते-होते सब सामान्य हो गया।
अगले दिन इन संगठनों के कार्यकर्ता उस स्थान पर बड़ी संख्या में एकत्र हुए जहाँ गायों को गाड़ा गया था। इन्होंने ‘महा आरती’ की, गायों को श्रध्दांजलि दी और शासन से माँग की कि ‘इस स्थान’ पर मृत गायों का स्मारक बनाया जाए। इसके बाद प्रशासन ने अपना काम शुरु किया। ट्रक से सम्बन्धित लोगों की धर पकड़ के लिए भाग दौड़ हुई। कुछ दिनों तक अखबारों में छुटपुट समाचार छपते रहे। उसके बाद, क्या हुआ, किसी को पता नहीं। गायों की अकाल मृत्यु से आक्रोशित, उत्तेजित ‘गौ प्रेमियों' ने क्या किया, किसी को कुछ पता नहीं।
दूसरी घटना इसके कुछ ही दिनों बाद हुई। लोगों ने देखा कि मेरे कस्बे से 34 किलोमीटर दूर स्थित जावरा के पास, मन्दसौर की दिशा में, कोई सात-आठ किलोमीटर दूर, सड़क के दोनों ओर कुछ मृत गायें पड़ी हुई हैं। इस बार भी विहिप और बजरंग दल के लोग ही सबसे पहले पहुँचे और आक्रोश प्रकट करते हुए महू-नीमच प्रान्तीय राज मार्ग पर चक्का जाम कर दिया। दोनों दिशाओं में वाहनों की लम्बी कतारें लग गईं। जावरा नगर पालिका पर कांग्रेस काबिज है और एक मुसलमान अध्यक्ष है। सो इस घटना में, मेरे कस्बेवाली घटना के मुकाबले ‘भाई लोग’ तनिक ‘अतिरिक्त उत्साहित’ थे। (मेरे कस्बे में नगर निगम पर भाजपा काबिज है और महापौर भी भाजपा की ही है, सो यहाँ ‘उतनी गुंजाइश’ नहीं रह गई थी।) ‘भाई लोगों’ ने नगर पालिका और अध्यक्ष को निशाने पर लिया। कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और तमाम अधिकारी भाग कर मौके पर पहुँचे। घटना की पूरी जानकारी ली तो मालूम हुआ कि मृत गायें जावरा की एक गौ शाला की थीं जिन्हें मरने के बाद ‘अन्तिम संस्कार’ के लिए लाया गया था और सड़क किनारे, खुले में ही डाल दिया गया था। नगर पालिका की लिप्तता न होने से ‘भाई लोगों’ को निराशा हुई। प्रशासन ने इस बार भी मामले को तत्परता से निपटाया। बाद में, सभी पक्षों की बैठक हुई जिसमें विहिप पदाधिकारियों ने गौ शाला के लोगों को खूब फटकारा और पूछा कि यदि मृत गायों का अन्तिम संस्कार ढंग से नहीं कर सकते हैं तो गौ शाला चलाने का क्या मतलब है? यहां यह उल्लेखनीय है कि गौ शाला के संचालन में इन 'भाई लोगों' का संस्थागत/सांगठनिक स्तर पर न तो कोई आर्थिक योगदान है और न ही प्रबन्धन में किसी प्रकार की भागीदारी। बैठक समाप्ति के बाद सब अपने-अपने घर चले गए। इस घटना के बाद भी अब तक मालूम नहीं हो सका है कि ‘गौ प्रेमियों ने क्या किया।
इन दोनों घटनाओं में ‘कुछ करने’ के नाम पर ‘गौ प्रेमी’ उत्तेजित/आक्रोशित हुए, घटना के जिम्मेदार लोगों के विरुध्द कार्रवाई की माँग की, प्रदर्शन किया, जुलूस निकाला, ज्ञापन दिया, नगर बन्द कराया, मृत गायों का स्मारक बनाने के लिए शासन से माँग की, गौ शाला के संचालकों को डाँटा/फटकारा। बस।
दोनों घटना क्रमों को मैंने ध्यान से देखा तो अनुभव किया कि विहिपियों और बजरंगियों ने गौ रक्षा के नाम पर खुद तो कुछ भी नहीं किया! इनमें से एक को भी, कस्बों में ‘आवारा’ की दशा में घूमती हुई और मैला या पोलिथीन खाती हुई गायें नजर नहीं आईं। इस तरह घूमती और पेट भरती गायों के शरीर में इन्हें न तो तैंतीस करोड़ हिन्दू देवी/देवताओं के निवास करने की बात याद आती है न ही इन्हें गाय ‘पवित्र और पूजनीय पशु’ अनुभव होता है। इनमें से अनेक लोग अपने-अपने व्यापार और काम-धन्धे में पोलिथीन थैलियों का उपयोग प्रचुरता से करते हैं-यह जानते हुए भी कि पोलिथीन की ये थैलियाँ खाने से अनेक गायें (मेरे कस्बे में ही) मर चुकी हैं। किन्तु एक भी माई के लाल ने, पोलिथीन थैलियों का उपयोग बन्द करने की सौगन्ध नहीं खाई। और तो और, मेरे कस्बे के जुलूस में शामिल विभिन्न समाजों ने भी इस दिशा में अपने सदस्यों को संकल्पित करने के बारे में आज तक नहीं सोचा।
हम सब जानते हैं कि गायों के ‘ऐसे’ व्यापार में मुसलमानों का प्राधान्य है। लेकिन हम सब यह भी जानते हैं कि मुसलमान तो गाय पालते नहीं। फिर ये लोग इतनी गायें कहाँ से ले आते हैं? स्पष्ट है कि हिन्दू लोग ही इन्हें बेचते हैं। मैंने, क्षीण होती अपनी स्मृति पर भरपूर जोर डाला किन्तु याद नहीं आया कि विहिपियों, बजरंगियों ने गायों की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाने की माँग की हो या हिन्दुओं से, घर-घर जाकर कहा हो कि वे ‘अपनी बूढ़ी माँ’ को बेचें नहीं, किसी गौ शाला को सौंप दें। अपनी बूढ़ी माँ को बेचने वाले हिन्दुओं के खिलाफ इन ‘हिन्दू धर्म रक्षकों’ ने एक बार भी आवाज नहीं उठाई।
लेकिन इन सबसे पहले मुद्दे की बात यह कि इन सबने जीवित गायों की सुरक्षा, देख भाल के लिए अपनी ओर से कुछ भी नहीं किया। बात बेहद कड़वी है किन्तु इनका अब तक का आचरण बताता है कि जीवित गायों में (और गायों को जीवित बनाए रखने में) इनकी कोई दिलचस्पी है ही नहीं। जीवित गाय के मुकाबले मरी गाय इन्हें अधिक उपयोगी लगती है। लेकिन उसकी चिन्ता भी ये तभी तक करते हैं जब तक कि उसके नाम पर उत्तेजना और आक्रोश फैलाया जा सके। उसके बाद तो ये अपनी उस ‘मरी हुई माँ’ का स्मारक बनाने के लिए भी शासन से माँग करते हैं या फिर गौ शाला के संचालकों को सार्वजनिक रूप से ऐसे प्रताड़ित करते हैं मानो गौ शाला के संचालन का सारा खर्च ये लोग ही दे रहे हों।
इनका व्यवहार कहने को विवश करता है कि सारी दुनिया तो जीवित गाय को दुहती है किन्तु ये ‘भाई लोग’ तो मरी गाय को दुहते हैं। ये जीवित आवारा गाय देख कर (लज्जित होना तो सपने की बात होगी) न तो असहज होते हैं न ही चिन्तित किन्तु मरी गाय की खबर मिलते ही उछल पड़ते हैं। प्रत्येक माँ अपने जीते जी अपने बच्चों का लालन-पालन करती है किन्तु गाय इनकी ऐसी माता है जो मरने के बाद भी इन्हें अपना दूध पिलाती है।
अब आपको जब भी किसी गाय (या किन्हीं गायों) के मरने पर ‘भाई लोग’ हरकत में आते नहर आएँ तो तनिक सावधानीपूर्वक देखने की कोशिश कीजिएगा कि ये लोग जीवित गायों के बारे में क्या करते हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि मेरी एक-एक बात आपको सच होती नजर आएगी।
भगवान करे, मेरी ये बातें झूठ निकलें। किन्तु ‘इनकी’ हरकतों से ऐसा लगता तो नहीं।
-----
आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने हेतु मैं प्रस्तुत हूँ। यदि अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे bairagivishnu@gmail.com पर मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर - 19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.
बहुत दिनों से दिखाई नहीं दे रहे थे आप .. आज के आलेख के एक एक शब्द से सहमत हूं मैं .. उम्मीद है अब ब्लाग जगत में आपकी उपस्थिति बनीं रहेगी।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteआज ही दस दिनों की टेक्सस यात्रा से लौटा. अब सक्रिय होने का प्रयास है.
अब लगातार पढ़ना है, नियमित लिखें..
सादर शुभकामनाऐं.
आपकी सभी बातें पूरी तरह सत्य हैं। गायों के इन हितैषियों के दर पर कोई आवारा गाय आ जाए तो डंडा लेकर उसके पीछे पड़ जाते हैं। इन्हें तो गाय के बहाने अपनी दुकानदारी चमकानी है।
ReplyDeleteगाय के प्रति हमारा व्यवहार दिखावा रह गया है।
ReplyDeleteDear Sir,
ReplyDeleteFirst of all I would like to congratulate you that you are having all the yes men in your surroundings who don't even think waht is right or wrong but they just keep on praising all the rubbish things posted by you.
any ways
I don’t know why people like you, mulayam and congress bets for pleasure of Muslims, they just want to make Muslims happy by proving that Bajrang Dal are terrorists.
If any one think so than tell me about Bajarang Dal -
Are they involved in any serial blasts?
Are they involved with any anti national activities?
Fact is -
They are giving strength to Hindus,
In J&K due to contribution of Bajrang Dal only Hindus are survived there,
Yes they are purely against Muslims & Christian but it is due to kind of "dadagiri" of minorities regarding riots, conversions etc.
Final words its time to wake up regarding what is right and what is wrong otherwise to ban BD or VHP can be big lose to Hindu community and a big lose to congress as people will understand their one side love at minorities.
Finally one question-
If these muslims will kill one of your family members then would you still praising their act. can you tell me that banning Simi is wrong as when BJP government banned Simi first all the people like you started crying that it is wrong?
Shame on you. You all are today's Jaychand
Thanks
"खबर मिलते ही विहिप और बजरंग दल के लोग मौके पर पहुँचे।"- और कोई क्यों नहीं पहुंचा? आगे आप ही लिखते हैं कि "बात सचमुच गंभीर और उत्तेजित करने वाली थी।" फिर नगर बंद से आपको एतराज क्यों?
ReplyDeleteदूसरे घटनाक्रम में आप कहते हैं कि "बाद में, सभी पक्षों की बैठक हुई जिसमें विहिप पदाधिकारियों ने गौ-शाला के लोगों को खूब फटकारा और पूछा कि यदि मृत गायों का अन्तिम संस्कार ढंग से नहीं कर सकते हैं तो गौ-शाला चलाने का क्या मतलब है?" अब आप या कोई और बताए कि फटकारा तो गलत किया कि सही? यहां आपकी बुिद््ध छोटे बच्चे की बुिद््ध को भी मात दे गई। अगर हम किसी गौशाला को दान न दें या वहां सेवा न करें तो इसका मतलब है कि वे वहां जो चाहें अत्याचार करें?
इस तर्क के अनुसार तो तस्कर पैसा देकर गउओं को ले जा रहे थे तो फिर वे मारे चाहे जो करें किसी को क्या? उन गायों के मालिक विहिप के लोग तो थे नहीं कि लगे चिल्ल-पों मचाने। आपको अपने लिखे के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।
Dear Ved Ratna Shukla Ji.
ReplyDeleteThanks for your courage. Atleast there is one person like you has the courage to tell Mr. Bairagi the truth.
Many many thanks to you.