भय और स्वार्थ के कारण जुड़े लोग


वह क्या चीज या भावना है जो हमें परस्पर जोड़े हुए है? यह सवाल पहली बार मेरे मन में नहीं उठा है और न ही मैं ऐसा पहला व्यक्ति हूँ जिसके मन में यह बात आई हो। अनगिनत लोगों के मन में यह सवाल उठा होगा और हर बार कोई न कोई उत्तर भी सामने आया ही होगा। मुझे विश्वास है कि ऐसा प्रत्येक उत्तर, पहले वाले उत्तर से अलग ही रहा होगा।


मेरे कस्बे से कोई 35 किलामीटर दूर स्थित एक कस्बे में दो अज्ञात व्यक्ति एक व्यापारी को गोली मार कर भाग गए। व्यापारी को गले में गोली लगी। उसे गम्भीर दशा में अस्पताल लाया गया। वहाँ से उसे पहले रतलाम और बाद में रतलाम से इन्दौर भेजा गया जहाँ उसके गले से गोली निकाली गई। ईश्वर की कृपा है कि वह खतरे से बाहर है। यह व्यापारी सिन्धी समुदाय का था और स्थानीय सिन्धी पंचायत का महत्वपूर्ण पदाधिकारी भी था। घटना गम्भीर थी किन्तु उसकी प्रतिक्रिया जिस व्यापकता से होनी चाहिए थी वैसी न होकर सिन्धी समुदाय तक सीमित होकर हुई। सिन्धी समुदाय ने सड़कों पर उतर कर आक्रोश प्रकट किया और फौरन ही अपराधियों को पकड़ने की माँग करते हुए, अधिकारियों को ज्ञापन दिए।


इससे पहले, कोई दो-तीन साल पहले, उसी कस्बे में सिन्धी समुदाय के ही एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी। तब भी इसकी प्रतिक्रिया सिन्धी समुदाय में ही हुई थी। तब सिन्धी समुदाय ने नगर बन्द करवा कर अपना रोष प्रकट किया था। मेरे कस्बे में भी कुछ बरसों पहले बोहरा समुदाय ने अपनी दुकानें बन्द रख कर, मौन प्रदर्शन निकाला था और प्रशासकीय अधिकारियों को ज्ञापन दिया था। जहाँ तक मेरी याददाश्त काम करती है, तब मामला बोहरा समुदाय की महिलाओं के साथ दुव्र्यहार का था। मुमकिन है, कारण कुछ और भी रहा हो। किन्तु यह मुझे अच्छी तरह याद है कि वाद-विवाद से दूर रहने वाला, शान्ति से रहने के लिए प्रख्यात और पहचाने जाने वाला बोहरा समुदाय आक्रोशित होकर सड़कों पर उतरा था।


ऐसे प्रसंग प्रत्येक नगर, कस्बे, गाँव में आते ही रहते हैं। कोई समुदाय अपने किसी सदस्य पर हुए अत्याचार के विरोध में, अपराधियों को पकड़कर दण्डित करने की माँग करते हुए अपना काम-काज बन्द रखता है और सड़कों पर उतरता है। ऐसे समाचार मैं जब-जब भी पढ़ता हूँ तब-तब मुझे अपने आप पर शर्म आती है। यदि किसी पर आक्रमण हुआ है, किसी पर अत्याचार हुआ है, यदि किसी की हत्या हुई है तो उसे ‘किसी भारतीय के साथ हुई घटना’ के रूप में क्यों नहीं लिया जाता? क्या किसी पर आक्रमण इसलिए हुआ क्योंकि वह किसी समुदाय विशेष का सदस्य या उस समुदाय के संगठन का पदाधिकारी था? किसी महिला के साथ दुव्यर्वहार क्या केवल इसलिए हुआ क्यों कि वह किसी विशेष जाति-समुदाय की थी? निश्चय ही ऐसा कुछ भी नहीं हुआ होता है। ऐसी प्रत्येक घटना, अन्य घटनाओं की ही तरह सामान्य घटना होती है। फिर वह क्या कारण है कि ऐसी घटना, किसी समुदाय विशेष को ही उत्तेजित/आक्रोशित/आन्दोलित करती है? अन्य समुदायों/समाजों/जातियों के लोग उस घटना से खुद को क्यों नहीं जोड़ते? कोई अपराध, किसी जाति/समुदाय विशेष के व्यक्ति के साथ हुआ क्यों मान लिया जाता है? जब एक समुदाय के लोग सड़कों पर उतरते हैं तो बाकी लोग उस प्रदर्शन को निस्पृह भाव से क्यों टुकुर-टुकुर देखते रहते हैं? क्यों हमें सूझ नहीं पड़ता कि आज जो कुछ किसी एक के साथ हुआ है, कल वही सब कुछ हमारे साथ भी हो सकता है? ‘भारतीयता’ तो बहुत बड़ी बात हो जाएगी, क्यों नहीं हमें याद आता है कि प्रभावित व्यक्ति हमारे ही कस्बे का, हमारे ही मुहल्ले का है? उसके साथ हुई दुर्घटना हमें भयभीत क्यों नहीं करती?


मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं है। मुझे यह भ्रम बिलकुल ही नहीं है कि ‘भारतीयता’ हमें परस्पर जोड़े रखती है। वह तो विदेशों में भी शायद ही हमें जोड़ती होगी। विदेशों में भारतीय चूँकि ‘अल्पसंख्यक’ की दशा में होते हैं सो वहाँ तो ‘सुरक्षा भाव’ के अधीन ही आपसी जुड़ाव होता होगा। अल्पसंख्यक जहाँ भी होते हैं, खुद को असुरक्षित अनुभव करते हैं और इसीलिए संगठित भी रहते हैं। असुरक्षा से उपजे इसी भाव के कारण, जो पाकिस्तानी और भारतीय परस्पर शत्रु की तरह व्यवहार करते हैं, वे विदेशों में ‘एशियाई’ बन कर संगठित रहते हैं।


मुझे लगता है कि हम सब किसी न किसी स्वार्थ-भाव या अज्ञात हानि से बचने की चिन्ता या लोकाचार के अधीन ही परस्पर जुड़े हुए हैं। अपने-अपने जाति-समुदाय में भी हममें से अधिकांश केवल लोकाचार जनित विवशता के अधीन ही उपस्थित होते हैं। नागरिकता बोध तो हमें आज तक जोड़ नहीं पाया।


पल-पल रूखे होते जा रहे इस समय में हम सबको अपनी-अपनी पड़ी है। ’कल मुझ पर संकट आ जाए तो मैं अकेला न पड़ जाऊँ’ से उपजी दहशत भी परस्पर जुड़ाव का बड़ा कारण अनुभव होती है।


ऐसे में, यह कल्पना करना कि भारतीयता हमें परस्पर जोड़े हुए है, सुन्दर आत्म-भ्रम के सिवाय और कुछ नहीं लगता। यह भी बुरा नहीं है। सुखद जीवन जीने के लिए भ्रमों का होना बहुत जरूरी है। बिलकुल उसी तरह जैसे कि भूल जाने का ईश्वर प्रदत्त अनुपम उपहार।


इसके बाद भी यह कामना करने में कोई बुराई नहीं है कि जब भी कभी किसी के साथ दुर्घटना हो तो उसके विरोध में लोग सड़कों पर उतरें तो यही सोच कर उतरें कि यह सब किसी भारतीय के साथ हुआ है, न कि किसी सिन्धी के साथ या कि किसी बोहरे के साथ या कि किसी जाति विशेष के सदस्य के साथ।


जिन्दगी को बेहतर बनाने के लिए आशावादी होना पहली शर्त है। मैं इसी आशावाद को जीने की कोशिश में हूँ।

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4 comments:

  1. आप ने बहुत गंभीर प्रश्न सामने रखा है। इस पर विचार होना चाहिए कि इस के क्या कारण हैं?

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  2. जब भारतीय समाज जातियों में बंटता जा रहा हो तब कैसे समग्रता की बात की जा सकती है। ऐसी घटनाओं के समय अपने-अपने समाजों की मजबूती के लिए ही सब जुटते हैं। स्‍वार्थ या फिर डर, इनके बिना एकता नहीं होती। अच्‍छा विषय है लेकिन एकता का कोई मार्ग दिखायी नहीं देता। यदि भारतीय समाज में एकता होती तब न तो हम मुगलों के और न ही अंग्रेजों के गुलाम बनते।

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  3. सरकारी सेवा में रहते हुये मुझे किसी जाति/समुदाय की जरूरत नहीं पड़ी। सामाजिकता की प्रगाढ़ता की भी नहीं। पर अब लगता है कि जब यह नहीं रहेगा, तब शायद एक जाति/सम्प्रदाय निरपेक्ष व्यक्ति के रूप में रह पाना कठिन हो।
    आपकी इस पोस्ट से वह सोच फिर जोर मारने लगी!

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  4. adarniya vishnu ji bairagi sir mai apki baat se sat pratisat sehmat hu parantu ek sawal man mai ye bhi tha ki apko DEEPAK SALWI hatya kand ka udaharan yaad kyo nahi raha agar uski hatya ho jati hai aur tathakathit hinduwadi sangthan hatyaro ko sigrha pakde jane ki baat karte hai to koi muslim sangthan kyo samne nahi ata k FARZA[vivahoprant puja] k katilo ko jald pakda jaye ya phir hatyaro ke pakde jane ke upraan kaha chhup gaye wo bhagwa chehre kyo gyapit nahi hua dhanyawad unki sari ki sari tayyari dhari ki dhari reh gayi jo lagbhag ye maan chuke the ke hatyare samaj vishesh ke log hi the halaki galti unki bhi nahi thi kyoki FARJANA khud yahi maan rahi thi parantu tab tak bhala nahi ho sakta is samaj ka jab tak ki kisi FARJANA K PATI KE KATILO KO PAKADNE KE LIYE KOI MUSLIM SANGTHAN AWAJ NA UTHAYE,JAB TAK KI HUNDUWADI SANGTHANO KI KALUSHIT VICHARDHARA KO SAAF NA KIYA JAYE....APKE VICHAR HAMESHA HI SAMAJ KI PRAGTI K ANDHERE RASTO MAI TIMTIMATI LALTEN SE HOTE HAI JO HAR THODE ANTARAL PAR RAKHE HOTE HAI AUR UNSE UJALA PAKAR SAMAJ AGEY BADH SAKTA HAI APKO DHANYAWAD........AISE JWALANT MUDDO KO UTHANE KE LIYE

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