‘ऐसा न तो पहली बार हुआ है और न ही आखिरी बार। यह तो आपके जन्म से ही आपके साथ लगा हुआ है। इसलिए पेरशान मत होईए और जिस मिनिट आपका मन बन जाए, उस मिनिट से ही लिखना शुरु कर दीजिएगा।’ यह विवेक भाई थे जो मुझे, मेरे बारे में बता रहे थे।
विवेक भाई मेरे कस्बे के अग्रणी और स्थापित ‘नागर यन्त्री’ (सिविल इंजीनीयर) तो हैं ही, अनेक वित्तीय संस्थानों के ‘सम्पत्ति मूल्यांकक’ (प्रापर्टी वेल्यूअर) भी हैं। ‘अनेक’ से मतलब, खुद विवेक भाई को संस्थानों की संख्या अब याद नहीं। किसी संस्थान से मूल्यांकन का पत्र आता है तो पूछते हैं - ‘मैं आपके पैनल पर हूँ?’ हाँ में जवाब मिलने पर कहते हैं - ‘आप देख लीजिएगा। कहीं ऐसा न हो कि आप मुझे रेमुनरेशन पे कर दें और मेरी रिपोर्ट आपके काम ही न आए।’ चिट्ठी लानेवाला पहले भी यह बात सुन चुका होता है, सो हँसते-हँसते पूछता है - ‘कब दे देंगे?’ और तारीख लेकर हँसते-हँसते ही चला जाता है।
चित्र में इनके साथ है इनकी उत्तमार्द्ध (याने कि बेटर हाफ याने की जीवन संगिनी याने कि पत्नी) अ. सौ. प्रतिभा। विवेक भैया यदि ‘नागर यन्त्री’ हैं तो प्रतिभा ‘उपाधिधारी वास्तुविद्’ (डिप्लोमाहोल्डर आर्किटेक्ट) है। व्यवसाय में दोनों एक दूसरे के शानदार पूरक हैं। भवन/परियोजना की, विवेक भैया की कल्पना को प्रतिभा, रेखाओं और आकृतियों के जरिये उकेरती है और दोनों मिलकर लोगों के आवास/परिसर की कल्पनाओं को मकानों की शकलें देते हैं। ईश्वर ने दोनों के हाथ में भरपूर यश दिया है सो, इन्हें जानने वाले और चाहनेवाले, आसपास के पचीस-पचास कोसों तक फैले हुए हैं।
किन्तु दोनों का यह ‘मणि-कांचन योग’ केवल व्यवसाय तक सीमित नहीं रह गया। विवेक भैया का बाराती बन कर गया था तब से ही मैं इस युगल के नामों का आनन्द लेता चला आ रहा हूँ। मेरा मानना है कि नामों के सन्दर्भ में ऐसा जोड़ा आपको शायद ही कहीं मिले। ‘विवेकवान प्रतिभा’ और ‘प्रतिभावान विवेक’ एक साथ, एक घर में, जीवन साथी के रूप में आपको केवल मेरे कस्बे में ही मिलेंगे। मैं कहता हूँ - ‘‘ईश्वर ने यही जोड़ी सही मिलाई है। ये ही वास्तव में ‘एक दूजे के लिए’ हैं। ‘विवेकविहीन प्रतिभा’ परमाणु की तरह ध्वंस कर सकती है और ‘प्रतिभाविहीन विवेक’ किसी के, किसी काम का नहीं।’’
इनका ‘कुल नाम’ (सरनेम) हर्देकर हैं और चारों ओर इन्हें ‘हर्देकर साहब’ और ‘हर्देकर मैडम’ के नाम से ही जाना, पहचाना और पुकारा जाता है।
‘मणि-कांचन योग’ और ‘सुन्दर पूरक’ होने के बाद भी दोनों ही ‘आदर्श दम्पति’ की तरह अनेक बातों पर परस्पर असहमत रहते हैं। विवेक भैया सन्त प्रकृति के हैं। मैं इन्हें ‘देव पुरुष’ न केवल कहता हूँ अपितु (मेरा ईश्वर साक्षी है कि आयु में मुझसे पूरे अठारह बरस छोटे होने के बाद भी) इस विशेषण के अनुरूप ही मैं इनका आदर भी करता हूँ। किन्तु जैसा कि होता ही है, देव पुरुषों की पत्नियाँ अपने पतियों के देवत्व से परेशान ही रहती हैं। उन्हें घर जो चलाना होता है! सो, जब भी कोई काम आता है तो परामर्श शुल्क और पारिश्रमिक के निर्धारण तथा भुगतान की विधि और समय को लेकर प्रतिभा को अतिरिक्त सतर्क रहना ही पड़ता है। ऐसी सतर्कता विवेक भैया के स्वभाव में नहीं। इसी के चलते आज तक एक भी मामला ऐसा नहीं रहा जिसमें विवेक भैया को, पूर्व निर्धारित शुल्क पूरा-पूरा मिला हो। वे लिहाज पाल लेते हैं और इसी कारण हर साल ‘कुछ लाख’ रुपयों का नुकसान झेलते चले आ रहे हैं। ऐसे में प्रतिभा असहज क्यों न हो? वह चिढ़ती है तो ‘देव पुरुष’ सस्मित कहते हैं -‘क्यों गुस्सा होती हो? मकान बनने में बेचारे के पैसे खत्म हो गए होंगे। अगला काम रास्ते में चल ही रहा होगा। उससे भरपाई कर लेंगे। और फिर, अपनी जरूरतें तो पूरी हो ही रही हैं ना?’ ऐसे जवाब प्रतिभा को शुरु-शुरु में परेशान करते थे। अब नहीं करते। लेकिन अपनी मेहनत का पैसा और वह भी पहले से खरा-पक्का किया पैसा डूबता देख किसे तकलीफ नहीं होती? विवेक भैया को घर चलाना पड़ता तो शायद देवत्व से मुक्ति पा लेते। ऐसा ही कुछ सोच-सोच कर, प्रतिभा थोड़ा-बहुत भुनभुना लेती है और विवेक भैया फिर शुरु हो जाते हैं अगले काम में।
पता नहीं विवेक भैया ने खुद ही छोड़ दिया या काम इतना अधिक हो गया है कि उन्हें छोड़ना पड़ गया किन्तु ज्योतिष में उनका यथेष्ठ हस्तक्षेप रहा है। जन्म कुण्डली और अंक ज्योतिष के साथ ही साथ प्रश्न कुण्डली में उनका अध्ययन उन्हें पर्याप्त यशदायी रहा है। प्रश्न कुण्डली के कम से कम दो मामलों में तो उन्होंने मुझे चमत्कृत ही किया। दोनों मामलों में उनकी बातें इस तरह सच हुईं मानों घटनाओं की पटकथा उन्होंने ही लिखी हों।
मैं ज्योतिष पर न तो आँख मूँदकर भरोसा करता हूँ और न ही उसे सिरे से खारिज ही करता हूँ। अपनी सुविधा (जिसे पाखण्ड कहना अधिक उपयुक्त होगा) से इसे स्वीकार और निरस्त करता रहता हूँ और कभी-कभी ‘टाइम पास मूँफली’ की तरह इसे उपयोग में ले लेता हूँ।
दो सप्ताह से मैंने कुछ भी नहीं लिखा। लिखने को काफी कुछ है किन्तु मन ही नहीं हुआ। एक बीमे के लिए विवेक भैया के मुहल्ले में गया तो उनका दरवाजा भी खटखटा दिया। परस्पर ‘कुशल क्षेम’ के बाद बात मेरे ब्लॉग पर आ गई। मैंने अपने अनमनेपन की बात कही तो विवेक भैया ने वही कहा जिससे मैंने अपनी यह पोस्ट शुरु की।
जिस सहज भाव से (मैं यहाँ ‘लापरवाही’ वापरना चाह रहा हूँ किन्तु विवेक भैया का ‘देवत्व’ आड़े आ रहा है) विवेक भैया ने कहा उससे लगा, वे मुझे टाल रहे हैं। मैंने कहा - ‘आप टाल रहे हैं। मेरी इस मनोदशा का कोई तो कारण होगा?’ आक्षेप ने विवेक भैया को सतर्क कर दिया। कलम एक ओर रख कर बोले - ‘टाल नहीं रहा। आपकी जन्म राशि मिथुन है। इस राशि की विशेषता है - निरन्तर चंचलता। इस राशि वाले लोग, कोई भी काम लगातार और लम्बे समय तक कर ही नहीं सकते। वे या तो काम बन्द कर देंगे या काम बदल लेंगे। आपके साथ यही हो रहा है।’ सुनकर मुझे अचानक याद आया कि एक बार विवेक भैया ने अपनी जन्म राशि भी मिथुन ही बताई थी। मैंने पलटवार किया - ‘आपकी जन्म राशि भी तो मिथुन है? फिर आप लगातार और निरन्तर कैसे काम कर रहे हैं?’ मानो मैंने विवेक भैया की दुखती रग छू ली। दयनीय मुद्रा और करुण स्वरों में बोले - ‘आप समझते हैं मैं काम कर रहा हूँ। ऐसा नहीं है। मैं काम करता दीख रहा हूँ। मुझे तो अनचाहे, बिना मन, काम करना पड़ता है। मुझसे मेरी मर्जी तो पूछिए? अभी आपके साथ चल दूँगा। किन्तु मैंने तो लोगों से एडवांस ले रखा है। मुझे अपने लिए नहीं, लोगों के लिए काम करना पड़ रहा है। और यह मत समझिए कि राशि-प्रभाव से मुक्त हूँ। एक साइट से छूटकर दूसरी साइट पर जाने के बीच में, कई बार मैं तड़ी मार लेता हूँ। आप जैसों के साथ, सड़क पर, चाय की गुमटी पर खड़े होकर, चाय की चुस्कियाँ लेते हुए गपिया लेता हूँ। यदि राशि प्रभाव न होता तो मैं एक साइट से छूटकर, तीर की तरह दूसरी साइट पर पहुँच कर ही दम लेता।’ मुझे तसल्ली हुई। अपने से बेहतर आदमी भी जब अपने जैसी बदतर दशा में मिले तो असीम, अवर्णनीय आनन्द मिलता है। वही आनन्द मुझे मिल चुका था।
मैं चलने को हुआ तो विवेक भैया ने टोका - ‘बहुत हो गया आराम। जल्दी लिखना शुरु कीजिए। याद रखिए, मैं आपका नियमित पाठक हूँ।’ मैंने हैरत से उन्हें देखा और कहा - ‘लेकिन राशि प्रभाव का क्या?’ बोले - ‘बस! एक डॉक्टर की तरह मैंने आपका ईलाज कर दिया है। आज से राशि प्रभाव खत्म और लिखना शुरु।’
लगता है, विवेक भैया ने सही कहा। वर्ना, अचानक ही यह पोस्ट कैसे लिख पाता?
-----
आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने हेतु मैं प्रस्तुत हूँ। यदि अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे bairagivishnu@gmail.com पर मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें। यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें। मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर - 19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.
विवेकवान प्रतिभा ! वाह दंपत्ति से मिलकर बहुत खुशी हुई
ReplyDeleteमेरी भी राशि मिथुन ही है। बहुत अच्छी शैली में लिखा आलेख। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteफ़ुरसत में .... सामा-चकेवा
विचार-शिक्षा
इस अनोखे दंपत्ति से परिचित कराने का आभार.
ReplyDelete` मैं आपका नियमित पाठक हूँ।’
ReplyDeleteहां जी, पाठक तो हम भी हैं, भले ही नियमित टिप्पणी न करते हों :)
मणिकांचन योग तो दोनों के नाम में ही है। शुभकामनायें।
ReplyDeleteआदरणीय श्री विष्णु भैया,
ReplyDeleteआज आपने हमारे नगर की एक, नहीं दो और प्रतिभाओं से परिचय जिस शानदार अंदाज में कराया उसके लिए आपको अनेकानेक धन्यवाद.
केवल परिचय ही नहीं उनके स्व अर्जित गुणों और प्रकृति प्रदत्त वरदानों से भी हमें अवगत कराया उसके लिए आभार. विवेक एवं प्रतिभा संपन्न युगल को हार्दिक शुभकामना.(मिलने की तमन्ना दिलमें लिए)