सबके यहाँ तो दीपावली आज आई किन्तु मेरे यहाँ तो रविवार, इकतीस अक्टूबर की शाम से आने लगी थी। तीन और चार नवम्बर की सेतु-रात्रि दो बजे से तो दीपावली की रोशनियॉं अपने चरम पर मेरे घर में बिखरी हुई हैं।
नौकरी के कारण बड़ा बेटा वल्कल और पढ़ाई के कारण छोटा बेटा तथागत बाहर हैं। जैसा कि इन दिनों सबके साथ हो रहा है, यहाँ, घर पर ‘हम दोनों अकेले’ ही रहते हैं। घर के सब लोग साथ हों तो त्यौहार! बिना बच्चों के कैसा त्यौहार?
हम दोनों मान कर ही चल रहे थे कि तीन नवम्बर से पहले कोई नहीं आ सकेगा। किन्तु तथागत ने हमारी धारणा ध्वस्त होने का सुख दे दिया। बिना किसी पूर्व सूचना के रविवार, इकतीस अक्टूबर की अपराह्न साढ़े चार बजे वह अचानक आ पहुँचा। मोटर सायकिल से। हमें अच्छा तो लगना ही था किन्तु उसे मोटर सायकिल पर आया देख परेशान हुए। घबराए भी। हमारी शकलें देखकर हँसते हुए बोला - 'अब घबराईए मत। मेरे आने पर खुश हो जाईए। आने की सूचना देने के लिए फोन करता तो आप पूछताछ करते और मोटर सायकिल से आने के लिए मना कर देते। इसीलिए बिना कहे चला आया।' मैं तो भगवान को धन्यवाद देकर रह गया किन्तु देखा कि उसकी माँ की आँखें पनीली हो आई हैं। किन्तु थोड़ी ही देर में प्रसन्नता ने आँसुओं को पोंछ दिया। तथागत के आगमन ने दीपावली को रास्ता दिखाने के लिए देहरी के सामने दीपक रख दिया। घर में दीपावली की शुरुआत हो गई।
उसी शाम को वल्कल का फोन आया। मालूम हुआ कि वह और बहू प्रशा, तीन नवम्बर को निकलेंगे। वल्कल कह रहा था - ‘रेल में बहुत भीड़भाड़ होती है और वक्त भी काफी लगता है। सो, मोटर सायकिल से आना चाहता था किन्तु प्रशा ने मना कर दिया। इसलिए अब हम दोनों, तीन की की आधी रात पहुँचेंगे और रेल से ही आएँगे।’ हम दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा ओर पाया कि हम दोनों ही प्रशा को धन्यवाद दे रहे थे।
तीन नवम्बर की शाम से ही हम आधी रात होने की प्रतीक्षा करने लगे थे। मुझे तो करने के लिए कोई न कोई काम था किन्तु उत्तमार्द्ध तो अपना सारा काम समाप्त कर चुकी थीं। प्रतीक्षा करना उनके लिए कठिन हो रहा था। रात ग्यारह बजे तक तो वे बुद्धू बक्से की चैनलें खँगालती रहीं और अन्ततः थक गईं। बोलीं - ‘अब धीरज खत्म हो रहा है। मैं तो सोने जा रही हूँ। आपकी आप देखिएगा।’ अब मैं था और मेरा लेपटॉप। उत्तमार्द्ध के हाथों से छूटे रीमोट को तथागत ने लपक लिया था और किसी अंग्रेजी फिल्म में उलझ गया था।
मैं काम करता रहा। मीटर गेज की रेलों का चरित्र और दुर्दशा के चलते मालूम था कि साढ़े बारह बजे आने वाली रेल साढ़े बारह बजे नहीं ही आएगी। देखना यही था कि कितनी देर से आती है।
डेढ़ बजे के आसपास उत्तमार्द्ध सामने खड़ी थीं। वे बिस्तर पर लेटी तो थीं किन्तु बेटे-बहू के आगमन के उल्लास ने शायद नींद के रास्त में ‘गतिरोधक’ खड़े कर दिए थे। बोलीं - ‘तलाश कीजिए ना? बच्चे कहाँ तक पहुँचे हैं?’ सवाल का जवाब तलाशने की जिम्मेदारी मैंने तथागत को थमा दी। उसने मोबाइल लगाया और वल्कल से बात कर बोला - ‘नौगाँवाँ पहुँच गए हैं।’ उत्तर उत्तमार्द्ध के लिए ही था। सुनकर बोलीं - ‘अभी तो बीस मिनिट और लगेंगे। इन रेल वालों को समझ नहीं पड़ता कि टाइम टेबल का ध्यान रखें और लोगों को समय पर घर पहुँचाएँ?’ इस सवाल का जवाब न तो मेरे पास था और न ही तथागत के पास। उत्तमार्द्ध की दशा देख हम दोनों अपनी मुस्कुराहट पर काबू नहीं कर पाए। वे, मुदितमन झेंपकर चली गईं।
रात लगभग दो बजे घर के सामने ऑटो रिक्शा के रुकने की आवाज आई। वल्कल और प्रशा पहुँच चुके थे। हम तीनों ने उन दोनों की अगवानी की। अब हमारा घर सचमुच में घर बन चुका था। गली में अँधेरा था और हमारे घर में दीपावली की रोशनियाँ समा नहीं रही थीं।
बाकी तीनों तो जल्दी ही सो गए लेकिन मैं और वल्कल लगभग तीन बजे तक बातें करते रहे।
तब से मेरे घर में दीपावली बनी हुई है, बसी हुई है। मेरा जी करता है, हम पाँचों के पाँचों कोई काम न करें। बस! बैठे रहें। बातें करते रहें। बातें न हों तो भी बस, बैठे रहें। एक दूसरे को देखते रहें। यह समय यहीं ठहर जाए। घर, घर बना रहे।
सो, मैं तो इकतीस अक्टूबर की शाम से ही दीपावली की रोशनी में नहा रहा हूँ। ईश्वर को धन्यवाद देने के लिए शब्द या तो मिल ही नहीं रहे हैं और यदि मिल रहे हैं भी तो कम पड़ रहे हैं।
जितना सुख मुझे मिल रहा है, उससे करोड़ों गुना सुख आप सबको मिले। दीपावली की रोशिनियाँ आप सबके घरों में सदैव अपने चरम पर बनी रहें। कभी, कहीं कोई कमी न हो।
जैसे मेरी दीपावली मनी, सबकी मने।
हार्दिक शुभ-कामनाएँ।
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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
ReplyDeleteशुभम करोति कल्याणम, आरोग्यम धन सम्पदा , शत्रुबुद्धि विनाशाय दीपम ज्योति नमस्तुते .
ReplyDeleteaap ko aur aake parivaar ko diwali ki shubkamnaye
ReplyDeletemai bhi ghr se dur rehta hu is baar diwali me bhi nhi japaya
accha laga padker
सपरिवार दीवाली का आनन्द मिले आपको, शुभकामनायें।
ReplyDeleteआप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
ReplyDeleteमैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
आदरणीय द्विवेदी जी,
ReplyDeleteआपने सच कहा, प्रेम का प्रकाश हो तो हर क्षण दीवाली है। आपको, परिजनों एवम मित्रों को दीवावली मंगलमय हो!
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
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