2 फरवरी 2009 को ‘सम्बन्ध’ तोड़ दिया मेरी वाली ‘इस लड़की’ ने शीर्षक पोस्ट में मैं वचनबद्ध हुआ था कि मेरीवाली ‘इस लड़की’ का विवाह होने पर मैं आपको इससे मिलवाऊँगा। वह दिन आ गया।
मिलिए मेरी मीठी-मीठी पूजा से। मेरे दुःख बाँटने में मुझसे पहले तैयार मिलनेवाले, उज्जैन निवासी मेरे आत्मीय, डॉक्टर श्रीयुत् विनोद वैरागी की छोटी बिटिया।
पूजा शुरु से ही पूना में, किसी सूचना प्रौद्यिगिकी (आई. टी.) कम्पनी में नौकरी कर रही है। उसकी पहचान छुपाने के लिए मैंने बैंगलोर लिखा था। विनोद भैया भले ही रह रहे हैं आज के जमाने में लेकिन आज के जमाने की हवा उन्हें अब तक गिरत में नहीं ले पाई है। सो, वे पारम्परिक ही बने हुए हैं। किन्तु पूजा के लिए उपयुक्त पात्र तलाश करने के लिए उन्होंने इस बार पारम्परिक तरीकों के साथ ही साथ, ‘नेट’ का सहारा भी लिया और यहीं उन्हें अपना छोटा दामाद मिला भी।
मयंक पनाके (भारद्वाज) नाम है विनोद भैया के छोटे दामाद का। वह यवतमाल से है और मजे की बात यह रही कि वह भी पूना में ही, एक अन्य सूचना प्रौद्योगिकी कम्पनी में नौकरी करता मिला। लेकिन विनोद भैया ने सीधे मयंक से बात नहीं की। पहले उसके परिजनों से बात की और पूजा को इसकी जानकारी अन्तिम चरण में दी गई। पूजा तो पहले से ही अपनी बात पर कायम थी - ‘पापा जो करेंगे, वही मेरा फैसला होगा। बस, विवाह के बाद भी मेरी नौकरी जारी रहे।’
पाणिग्रहण समारोह धूम-धाम से सम्पन्न हुआ। मुझे तो इसमें शामिल होना ही था किन्तु एक अतिरिक्त आकर्षण था मेरे लिए इस आयोजन में - यह अन्तःभाषी विवाह था। वर मराठी और वधू हिन्दी, ठेठ मालवी। याने अब पूजा के मायके में पोरण पोळी बनेगी और सुसराल में दाल-बाटी।
मेरी सुनिश्चित धारणा है कि अन्तःभाषी, अन्तःधर्मी, अन्तःसंस्कृति, अन्तःजाति विवाह, हमें भाषायी, प्रान्तीय जैसे अनेक विवादों-समस्याओं से राष्ट्रीय और सामाजिक स्तर पर मुक्ति दिला सकते हैं।
इसका एक नमूना यह रहा कि मेरी शब्द सम्पदा में एक नया शब्द जुड़ गया। नाश्ता करते हुए मैंने एक बाराती की मनुहार की - ‘और लीजिए।’ उत्तर मराठी में मिला जिसमें ‘पुष्कल’ भी एक शब्द था। मैंने इसे किसी फूल से जोड़ा। जबकि इसका अर्थ बताया गया - ‘पर्याप्त, यथेष्ठ, भरपूर।’ इसके साथ यह भी बताया गया कि यह शब्द मूलतः संस्कृत का है जिसे मराठी का मान लिया गया है। मुझे तत्क्षण ही लगा कि यदि अन्तःभाषी सम्बन्ध प्रचुरता से हों तो अंग्रेजी को इस देश से जाना ही पड़ेगा। अपने तक ही सिमटे रह कर हमने मौसेरी बहनों (भारतीय भाषाओं) को सौतनें बना दिया है और इसके पीछे अंग्रेजी सबसे बड़ा ही नहीं, एकमात्र कारण है।
यह तो विषयान्तर हो गया। मुद्दे की बात यही कि विवाह के बाद भी पूजा नौकरी कर रही है और केवल मयंक ही नहीं, उसका समूचा परिवार भी प्रसन्नतापूर्वक इस निर्णय में शामिल है।
पूजा के विवाह में मेरी भागीदारी का प्रमाण यहाँ दिया गया चित्र है। सबसे बाँयी ओर मैं हूँ फिर मयंक, पूजा और सबसे दाहिनी ओर मेरी उत्तमार्द्ध वीणा।
आप भी अपने आशीषों से इस युगल को समृद्ध करें। वही तो इनकी मूल पूँजी होगी!
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मेरी सुनिश्चित धारणा है कि अन्तःभाषी, अन्तःधर्मी, अन्तःसंस्कृति, अन्तःजाति विवाह, हमें भाषायी, प्रान्तीय जैसे अनेक विवादों-समस्याओं से राष्ट्रीय और सामाजिक स्तर पर मुक्ति दिला सकते हैं।
ReplyDeleteलोग कितना भी बाँध कर रखें पर भविष्य में आपकी धारणा वास्तविकता बनेगी।
shubhkaamnaayein..
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ॥
ReplyDeleteपूजा को बधाई!
ReplyDelete@अन्तःभाषी, अन्तःधर्मी, अन्तःसंस्कृति, अन्तःजाति विवाह, हमें भाषायी, प्रान्तीय जैसे अनेक विवादों-समस्याओं से राष्ट्रीय और सामाजिक स्तर पर मुक्ति दिला सकते हैं।
@यदि अन्तःभाषी सम्बन्ध प्रचुरता से हों तो अंग्रेजी को इस देश से जाना ही पड़ेगा।
मेरा भी यही विचार है।
जानकर ख़ुशी हुई की पुनः पूजा का घर बस गया. वर वधु को आशीष.
ReplyDeleteशुभकामनायें!!
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