‘इस कार्यालय के पत्र क्रमांक फलाँ-फलाँ, दिनांक फलाँ-फलाँ द्वारा आपको सूचित किया गया था कि आप रुपये 6,846/- जमा कराएँ। आपने उपरोक्त रकम अब तक जमा नहीं की है। इस पत्र द्वारा आपको अन्तिम सूचना दी जाती है कि दिनांक फलाँ-फलाँ तक उपरोक्त रकम जमा कर दें। ऐसा न करने की दशा में आपके विरुद्ध गिरफ्तारी वारण्ट जारी करने कार्रवाई शुरु कर दी जाएगी।’ कर्मचारी भविष्य निधि के उज्जैन स्थित कार्यालय से जारी यह पत्र पाकर हैरान ही हुआ।
हम तीन मित्रों ने 1977 में दवाइयाँ बनाने की लघु उद्योग इकाई शुरु की थी जो 1992 में बन्द करनी पड़ी। उसे विसर्जित करने हेतु तमाम कानूनी कार्रवाइयाँ पूरी कीं और तमाम आर्थिक जिम्मेदारियाँ अन्तिम रूप से चुकता कर दी गईं।
किन्तु अब, कोई 30 वर्षों के बाद उपरोक्त पत्र मिला। मालूम हुआ कि ऐसा पत्र हम तीनों भागीदारों को भेजा गया है। हम तीनों में से किसी के पास अब उस इकाई से सम्बन्धित कोई कागज-पत्तर नहीं है।
पत्र पाकर पहले तो हम तीनों खूब हँसे। फिर, कर्मचारी भविष्य निधि कार्यालय से सम्पर्क रखनेवाले परामर्शदाता से सम्पर्क किया। उन्होंने तलाश कर बताया कि इकाई के चलते रहने के दौरान हम लोगों ने कोई भुगतान देर से किया था। नोटिस में वर्णित रकम, चुकाई गई रकम पर, उसी विलम्बित अवधि के ब्याज की रकम थी।
नोटिस और रकम से अधिक रोचक बात हमें यह लग रही थी कि 30 वर्षों बाद यह वसूली क्यों और किस तरह सतह पर आई? इसके समानान्तर हम तीनों इस बात के लिए भी विभाग को धन्यवाद दे रहे थे कि केवल विलम्बित अवधि का ब्याज जोड़ा गया था - अब तक की, 25-30 वर्षों की अवधि का ब्याज नहीं जोड़ा गया था।
परामर्शदाता ने बताया कि कर्मचारी भविष्य निधि कार्यालय का कम्प्यूटरीकरण अभी-अभी पूरा हुआ है। इस प्रक्रिया को पूरी करने के लिए, कार्यालय में पड़ी सारी फाइलों की धूल झाड़ी गई। उसी में हमारी इकाई की फाइल भी निकल आई। परामर्शदाता ने कहा - ‘आपमें से किसी के पास कोई कागज नहीं है। फिर भी आप कानूनी लड़ाई लड़ें तो मुमकिन है कि इस रकम से मुक्ति पा लें। लेकिन ऐसा कितने समय में और कैसे होगा, यह आप खुद ही देख लें। किन्तु उससे पहले आप तीनों की गिरफ्तारी जरूर हो जाएगी, भले ही वह कागजों पर ही हो। आखिर सरकारी काम है। इसलिए मेरी सलाह तो यही है कि आप यह रकम जमा करा दें और सारी झंझट से बचें। आगे आपकी मर्जी।’
हम तीनों ने पहले ही क्षण में परामर्शदाता की सलाह मान ली। अपने-अपने हिस्से की रकम परामर्शदाता को सौंप दी। बैंक ड्राफ्ट बनवाना और उज्जैन कार्यालय में जमा करवाने का काम वे कर लेंगे।
हम तीनों परम प्रसन्न हैं कि हमने सरकारी काम पूरा करने में सहायता की।
देर आये, दुरुस्त आये, अब ३० साल का ब्याज विभाग जमा करे सरकार को।
ReplyDeleteनियम, नियम होता है जनाब.
ReplyDeleteअब पत्र लिखकर अपना पैसा वापस भी मंगाइये। ज़रा सोक्ज=हिये कि कम्प्यूटराइज़ेशन की आड़ में न जाने कितने लोगों को इस तरह के पत्रों द्वारा धमकाया जा रहा होगा और वे बकाया को दुबारा न चुकाने की हालत में मोटी रिश्वत के लिये फांसे जा रहे होंगे.
ReplyDeleteचलिए दादा ,देर है पर अंधेर नहीं .
ReplyDeleteकागज कभी मरता नही
ReplyDeleteदिलचस्प। नियम पालन सरदर्द भी है और सन्तोष भी।
ReplyDeleteकानून के लंबे हाथ:)
ReplyDeleteSarkar sirf sach bolti hai.........
ReplyDeleteAapne chahe jaisa ho......... sach maan kar sweekar kiya.........
SATYA ka saath diya
Jai Bharat