कूरीयर सेवाएँ: जाएँ तो जाएँ कहाँ?

एक निजी कूरीयर कम्पनी ने मेरा कार्यक्रम घ्वस्त कर दिया।

अपने बीमा रेकार्ड के लिए मैंने जयपुर की निजी साफ्टवेयर कम्पनी का साफ्टवेयर ले रखा है। उसमें आई तकनीकी गड़बड़ दूर करने के लिए उसका ताला मुझे जयपुर भेजना पड़ा। शनिवार, 4 फरवरी को मैंने ताला स्पीड पोस्ट से भेजा जो कम्पनी को सोमवार, 6 फरवरी को मिल गया। कम्पनी ने तत्परता बरतते हुए ताले को उसी दिन ठीक कर दिया। मैंने अनुरोध किया था कि वे मुझे ताला स्पीड पोस्ट से ही भेजें। किन्तु एक तो कर्मचारियों की आदत और दूसरे, कूरीयर कम्पनी से रोज का सम्पर्क - इन्हीं कारणों से कम्पनी ने ट्रेकान कूरीयर्स से मुझे 6 फरवरी को ही ताला भेज दिया।

मुझे उम्मीद थी कि ताला मुझे या तो 7 फरवरी को और बहुत हुआ तो 8 फरवरी को तो मिल ही जाएगा। किन्तु 8 फरवरी की अपराह्न 4 बजे तक मुझे ताला नहीं मिला तो मैंने जयपुर फोन लगा कर कूरीयर सेवा के रतलाम कार्यालय का पता और फोन नम्बर जानना चाहा। मुझे उतावली इसलिए थी क्यों कि, बीमा अभिकर्ताओं के अधिवेशन के लिए मुझे 9 फरवरी की सुबह भोपाल के लिए निकलना था।

साफ्टवेयर कम्पनी की रिसेप्शनिस्ट ने मुझे होल्ड करने को कहा और दूसरे फोन से कूरीयर कम्पनी को फोन लगाया। कूरीयर वाला क्या बोल रहा था यह तो मुझे सुनाई नहीं पड़ रहा था किन्तु रिसेप्शनिस्ट का कहा तो मैं साफ-साफ सुन रहा था। उसकी बातों से लग रहा था कि कूरीयर वाले को उनेक रतलाम कायालय का पता और फोन नम्बर मालूम नहीं है। अलबत्ता वह आश्चर्य कर रहा था कि ताला अब तक क्यों नहीं पहुँचा! रिसेप्शनिस्ट को मैंने कहते हुए सुना कि उसे ‘आर्टिकल की लोकेशन’ नहीं जाननी, उसे तो कूरीयर कम्पनी के रतलाम सम्पर्क के ब्यौरे चाहिए। थोड़ी ही देर में रिसेप्शनिस्ट ने, समुचित और अपेक्षित सहायता न कर पाने के लिए मुझसे क्षमा माँगते हुए कूरीयर कम्पनी की वेब साइट का पता और स्लिप नम्बर लिखवा दिया।

मैंने ताबड़तोड़ कूरीयर कम्पनी की वेब साइट खोली और सन्दर्भित स्लिप का ट्रेकिंग चार्ट देखा तो पाया कि उसमें केवल जयपुर से भेजने के ब्यौरे अंकित थे। आगे का कुछ भी अता-पता नहीं था।

मैंने फिर जयपुर फोन लगा कर रिसेप्शनिस्ट से मदद माँगी। उसने फिर मुझे ‘होल्ड’ पर रखकर कूरीयर कम्पनी को फोन लगाया। इस बार उसने एक मोबाइल नम्बर लिखवाया। फोन रखकर मैंने उस मोबाइल नम्बर को डायल किया तो सन्देश मिला कि यह मोबाइल बन्द है।

मैंने फिर जयपुर फोन लगाया। मदद माँगी। रिसेप्शनिस्ट ने फिर सम्पर्क किया और कहा कि मुझे कूरीयर कम्पनी की वेब साइट से ही उनके रतलाम कार्यालय का अता-पता और फोन नम्बर तलाश करना पड़ेगा।

मैंने फिर पूरा उपक्रम दोहराया। थोड़ी उठापटक की तो ज्ञान प्राप्ति हुई कि रतलाम में उस कम्पनी का अपना कोई कार्यालय है ही नहीं। दूसरे नाम की कूरीयर कम्पनीवाले से उन्होंने अनुबन्ध कर रखा था। वहाँ फोन लगाया तो मुझे थोड़ी देर बाद फोन करने को कहा गया क्योंकि ‘मालिक अभी नहीं है।’

इस उठापटक में शाम के 6 बज गए। जयपुर में साफ्टवेयर कम्पनी का कार्यालय बन्द हो चुका था। मेरे पास कोई चारा नहीं था सिवाय इसके कि मैं अगले दिन तक प्रतीक्षा करूँ। याने, मेरा भोपाल कार्यक्रम स्थगित।

अगले दिन मैंने रतलामवाली कूरीयर कम्पनी को फोन लगाया तो बताया गया कि मेरा सामान तो आ गया है किन्तु वितरण करने के लिए कोई लड़का अभी नहीं है। आएगा, तब भेज देंगे। मैंने अपनी स्थिति बताई और चाहा कि मेरा सामान मुझे तत्काल भेज दिया जाए। उसने कहा कि ऐसा मुमकिन नहीं है और यदि मैं प्रतीक्षा नहीं कर सकता तो बेहतर है कि मैं उसकी दुकान पर आकर अपना सामान ले लूँ।

मुझे यही करना पड़ा। उसकी दुकान पर गया तो मुझसे पहले दो और लोग खड़े थे, अपना सामान लेने के लिए। अपना नम्बर आने पर मैंने अपना सामाना लिया और घर आया और जयपुर से सम्पर्क कर अपनी समस्या हल करने में लग गया।

मैं 10 फरवरी को ही, चौबीस घण्टे विलम्ब से भोपाल हेतु निकल पाया।

बड़े-बड़े नामवाली और ‘अनुपम-उत्कृष्ट ग्राहक सेवा’ देने के बड़े-बड़े तथा लुभावने वादे करनेवाली इन कूरीयर कम्पनियों की यह छोटी सी हकीकत है। बड़े शहरों में तो ये कम्पनियाँ हवाई जहाज से सामान/पत्र पहुँचा देती होंगी किन्तु मेरे कस्बे जैसे छोटे स्थानों के लिए इनके पास वे ही व्यवस्थाएँ हैं जो छोटे कस्बों में चल रही स्थानीय कूरीयर कम्पनियों की होती हैं।

‘नाम बड़े और दर्शन खोटे’ इसी को कहते होंगे। लोगों की विवशताओं का अनुमान लगाया जा सकता है - वे क्या करें और क्या न करें? डाक विभाग परोक्षतः, ऐसी कम्पनियों के लिए मैदान छोड़ता जा रहा है और ये कम्पनियाँ इस तरह लोगों को परेशान कर रही हैं।

5 comments:

  1. क्षणिक और त्वरित लाभ से अधिक आगे न देख/सोच पाने वाले व्यवसाइयों के साथ यह बड़ी समस्या है। इसीलिये ग्राहक सेवा, ट्रेनिंग का महत्व समझने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े कार्पोरेशंस की आवश्यकता सदा रहेगी भले ही वे सरकारी हों या जनता के निवेश से चलने वाले।

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  2. कूरियर कंपनियों का सभी जगह यही हाल है. मैं कल्पना कर सकता हूँ की आप कितने तनावग्रस्त हो गए होंगे.

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  3. एक बार सब सह लेने के बाद इनके दावों का सच समझ आ जाता है..

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  4. Bhoo-mandlikaran ke is daur me sab log aapki tarah sidhe-saral sewabhavi aur Nibhau nahi hote.Anyway........Ant bhala to sab bhala...! ALL IS WELL BHAIYYA............

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  5. मेरे साथ भी कुरियर कंपनी ने बिलकुल ऐसा ही काम किया था . मैंने अपने एक प्रमाण पत्र की मूल प्रतिलिपी रतलाम भेजी थी और में चाहता था की वोह २४ घंटे के अंदर रतलाम पहुच जाये. हैदराबाद में जब मैंने कुरियर (Blue Dart) वाले को अपनी परेशानी बताई तो उसने कहा के उसकी कंपनी priority delivery कर सकती है और २४ घंटे में लिफाफा रतलाम में आपके घर पहुच जायेगा.
    इस बात के उसने मुझसे ३४० रुपये ऐठे. मैंने सोचा चलो जरुरी कागज है और मेरी मज़बूरी है तो ३४० रुपये दे दिए. उसके बाद जब ४८ घंटे बीतने के बावजूद भी लिफाफा घर नहीं पंहुचा तो मैंने वेब साईट पर तरसकर चलाया . उसमें सिर्फ हैदराबाद से निकलने की तारिख थी उसके बाद कुछ भी नहीं. रतलाम के कार्यालय का नंबर ढूंढ कर जब उसे फोन किया तो बिलकुल वही जवाब मिला की लिफाफा आज ही आया है और मेरे पास वितरण करने के लिये लड़का नहीं है. आप आ कर ले जायें. नहीं तो में कस्तूरबा नगर का चक्कर ३ दिन बाद लगाऊँगा तब ही दे सकता हूँ आपके घर पे.
    मैंने कहा की में आपके मुख्य कार्यालय में आपकी शिकायत करूँगा. ३४० रुपये लेने के बाद अगर आप घर पे लिफाफा नहीं दे रहे हैं आप. तो उनका जवाब था की आप शौक से शिकायत करें क्योंकि इससे शायद कंपनी पर कुछ असर पड़े और मुझे नए लड़के भारती करने की अनुमति मिल जाये.
    उपभोक्ता मंच पर जाने के लिये कहीं भी लिखित विवरण नहीं है की लिफाफा २४ घंटे में घर पहुचेगा. न ही इस तरह की कोई समय सीमा का विवरण उनकी पर्ची पर है
    जबरदस्त धांधली है :) लेकिन सबक ये है की जब भी कुछ भेजें भारतीय डाक विभाग से ही भेजें. आज की तारीख में उनकी सेवाएं सचमुच अद्भुत हैं :)

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