ब्लॉग ने बचाया ठगी से

मैं इसे, स्थानीय स्तर पर ब्लॉग की बड़ी सफलता मानता हूँ। और यह भी कि ‘ब्लॉग’ आनेवाले दिनों में सामाजिक चेतना और बदलाव का धारदार औजार बनेगा - जैसा कि मैं इससे जुड़ने के पहले ही दिन से मान रहा हूँ।

रातों-रात लखपति बनने के लालच में, ‘स्पीक एशिया’ के चंगुल में आकर अपनी कड़ी मेहनत की रकम फँसाए बैठे अनेक लोगों को सर्वोच्च न्यायालय ने बहु प्रतीक्षित राहत दी है। निवेशकों की याचिका पर निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कम्पनी को निर्देश दिया है कि वह दो सप्ताह में निवेशकों को उनकी रकम (जो पहली नजर में लगभग 1300 करोड़ रुपये है) लौटाए।

अब ठीक-ठीक दिन और महीना याद नहीं किन्तु कुछ ही महीनों पहले श्री विवेक रस्तोगी ने अपने ब्लॉग कल्पनाओं का वृक्ष पर ‘स्पीक एशिया’ द्वारा लोगों के साथ, व्यापक स्तर पर की जा रही ठगी का सविस्तार वर्णन किया था।

रस्तोगीजी की उस पोस्ट को छाप कर मैंने अपने, अधिकाधिक बीमा अभिकर्ता मित्रों को बाँटी थी। मेरे कस्बे में, भारतीय जीवन बीमा निगम की तीन शाखाएँ हैं। मैंने लगातार कई दिनों तक, तीनों शाखाओं में जा-जा कर अभिकर्ता साथियों को, आते-जाते, रोक-रोक कर ‘स्पीक एशिया’ की कारगुजारियों की जानकारी दी। मेरी शाखा में तो मैंने बीमा अभिकर्ताओं के हमारे संगठन ‘लियाफी’ के सूचना पटल पर भी इस बारे में विस्तृत जानकारी प्रदर्शित की। उन दिनों न जाने कहाँ-कहाँ से हम अभिकर्ताओं के पास फोन आ रहे थे - स्पीक एशिया से जुड़कर आर्थिक लाभ उठाने के लिए।

मुझे आत्म सन्तोष तो हुआ ही, अपने साथी अभिकर्ताओं पर गर्व भी हुआ कि मेरे कस्बे का, भारतीय जीवन बीमा निगम का एक भी (जी हाँ, एक भी) अभिकर्ता साथी इस कम्पनी से नहीं जुड़ा।

कल जब यह समाचार अखबारों में छपा तो मेरे अनेक अभिकर्ता साथियों ने मुझे फोन पर और व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद दिया और आभार प्रकट किया।

मैं कल्पना कर रहा हूँ कि यदि मैंने अभियान नहीं चलाया होता तो भले ही गिनती के ही सही, बीमा अभिकर्ता इस ठग कम्पनी से खुद भी जुड़ते और मुमकिन है कि अपने मिलनेवालों को भी जोड़ते। वे सब के सब, इस ठग कम्पनी के चंगुल में आने से बच गए।

यदि यह किसी प्रकार की सफलता है तो मैं इसे श्री विवेक रस्तोगी के खाते में और उससे पहले ‘ब्लॉग विधा’ के खाते में जमा करता हूँ।

इस घटना से मेरा उत्साह बढ़ा है। मैं चुनाव सुधारों को लेकर ब्लॉग के जरिए कुछ करने का मन कई दिनों से बना रहा था किन्तु साहस नहीं हो रहा था। इस घटना ने मेरा साहस भी बढ़ाया है।

मैं समस्त ब्लॉग लेखकों को इस नेक काम के लिए बधाइयाँ देता हूँ और अभिनन्दन करता हूँ कि वे सब आनेवाले दिनों में ऐसे अनेक परिवर्तनों के वाहक और निमित्त बनेंगे जिनकी आवश्यकता आज सारे देश में तीव्रता से अनुभव की जा रही है।

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर सटीक प्रस्तुति। धन्यवाद।

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  2. जागरुकता तो निश्चित तौर पर आएगी।

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  3. आर्थिक क्षेत्र में विवेकजी के अवलोकनों से हम भी लाभान्वित होने की प्रक्रिया में हैं।

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  4. कल मेरा एक व्याख्यान है. विषय है - "इम्पैक्ट ऑफ लोकलाइजेशन इन सोशल मीडिया". इस व्याख्यान की शुरूआत ही मैं इस पोस्ट का उदाहरण देते हुए करूंगा.

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  5. विवेक जी और आप दोनों बधाई के पात्र हैं......उन्होंने इस विषय पर लिखा...और आप ने लोगों तक यह जानकारी पहुंचाई.
    ब्लोगिंग का सकारात्मक रूप देख अच्छा लगा.

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  6. हां विवेक जी की वह पोस्ट मैंने भी पढ़ी थी। अच्छा लगा आपकी यह पोस्ट पढ़कर। विवेक जी को साधुवाद और आपको बधाई!

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  7. अत्‍यंत उपयोगी पोस्‍ट, धन्‍यवाद.

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  8. Jagrukta hi hamen thagon se bacha sakti hai.
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