यह अनुभव मेरे लिए वर्णनातीत है। इससे पहले ऐसा मैंने कभी नहीं देखा। यहाँ मैं केवल सूचनाएँ दे पा रहा हूँ। अपने अनुभव को व्यक्त कर पाना मेरे लिए सम्भव नहीं हो रहा।
मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद् की ओर से, कालिदास संस्कृत परिषद्, उज्जैन के तत्वावधान में मेरे कस्बे में, पहली फरवरी से एक चित्रकला उत्सव चल रहा है। कालिदास की कृतियों पर आधारित, पारम्परिक और लोक शैलियों पर केन्द्रित इस चित्रांकन उत्सव को ‘वर्णागम वनजन’ नाम दिया गया है इसका अर्थ मैं नहीं समझ पाया हूँ। शिमला, मणीपुर, राजस्थान से लेकर चैन्नई तक के, देश भर के स्थापित और नवोदित 32 कलाकार इसमें भाग ले रहे हैं। 18-20 वर्ष से लेकर 80 वर्ष तक के स्त्री-पुरुष चित्रकार यहाँ मौजूद हैं। सुबह नाश्ता-पानी कर सब अपने-अपने कैनवास पर जुट जाते हैं।
गोंड चित्रांकन शैली के आठ-दस कलाकारों ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। ये सब मध्य प्रदेश के मण्डला और डिण्डोरी जिलों से आए हैं। बाकी सब कलाकार या तो हॉल में या बरामदे में बैठकर काम कर रहे हैं किन्तु गोंड शैली में का कर रहे ये सारे खुले में, पेड़ों के नीचे बैठ कर चित्रांकन कर रहे हैं।
पारम्परिक गोंड वेष-भूषा में चित्रांकन कर रही महिलाएँ आँखों में समाए नहीं समाती। दीन-दुनिया से बे-भान ये महिलाएँ मानो समूचे आकाश पर अपनी मनोभावनाएँ अपने मनपसन्द रंगों में पोत देना चाहती हों, कुछ इसी तरह डूब कर ये अपने काम में लगी हुई नजर आईं मुझे। मैं हिम्मत नहीं कर पाया कि इनसे पूछूँ कि ये कहाँ तक पढ़ी-लिखी हैं और कालिदास तथा उनकी कृतियों के बारे में कितना जानती हैं? और यह भी कि यदि कुछ जानती हैं तो कैसे?
अब तक तो चित्र प्रदर्शनियाँ देखने का ही काम पड़ा है मुझे। किन्तु चित्रों को बनते देखना पहला ही अनुभव है मेरा। रंगों के संसार का रहस्य मुझे सदैव जिज्ञासु बनाए रखता है। पहली बार ऐसा हुआ कि मैं सृजन प्रक्रिया को प्रत्यक्षतः देख पा रहा हूँ।
मैं कल वहाँ गया था। कोई दो-ढाई घण्टे इन कलाकारों को देखता रहा। आज भी गया था। डॉक्टर मुरलीधरजी चाँदनीवाला और उनकी उत्तमार्द्ध प्रतिभाजी पहले से ही मौजूद थे वहाँ। चाँदनीवालाजी, कालिदास के ‘पागल प्रेमी’ से कम नहीं हैं। वे परम् जिज्ञासा भाव से, इन महिला कलाकारों के पास गए। उनमें से एक का कैनवास देखते ही, चकित भाव से बोले - ‘यह तो कुमार समवम् है!’ अपने कैनवास और कूची पर नजर गड़ाए कलाकार बोली - ‘जी! सर। कुमार सम्भवम् ही है।’ कह कर उसने चाँदनीवालाजी की ओर गरदन घुमाई और चित्र सन्दर्भ की जानकारी दे दी। चाँदनीवालाजी निहाल हो गए।
कोई ढाई-तीन घण्टे हम लोग वहाँ रहे। चाँदनीवालाजी ने कहा - ‘अपना जो प्रिय काम हम नहीं कर पाते, वही काम इन कलाकारों को करते देख कर बहुत अच्छा लग रहा है। आपको कैसा लग रहा है?’ मैंने कहा - ‘मुझे तो ये लोग देवता लग रहे हैं। मेरी मनोकामनाएँ पूरी करनेवाले देवता।’ चाँदनीवालाजी ने कहा - ‘अपने इस अनुभव को आप कैसे बयान करेंगे?’ मैंने कहा - ‘मेरे लिए मुमकिन नहीं।’ उन्होंने उकसाया - ‘नहीं! नहीं! आपको कुछ तो कहना ही पड़ेगा।’ मैंने कहा - ‘आप साहित्यिक आदमी हैं और मैं अनगढ़। आप जिद ही कर रहे हैं इसलिए कह रहा हूँ। मुझे ऐसा लग रहा है मानो किसी विवाह समारोह की भोजनाशाला में अपना मनपसन्द व्यंजन बनते हुए देख रहा हूँ।’ चाँदनीवालाजी उछल पड़े। बोले - ‘आपकी इस अनगढ़ता में सम्प्रेषण पूरा-पूरा है।’
दो बातें मुझे तकलीफ दे रही हैं। पहली तो यह कि इस आयोजन का पूर्व प्रचार नाम मात्र को भी नहीं हुआ। दूसरी यह कि जानकारी होने के बाद भी मेरे कस्बे के चित्र कलाकार और इस विधा के विद्यार्थी वहाँ अब तक नहीं पहुँचे हैं। उन्हें तो, इस शिविर अवधि तक यहीं जम जाना चाहिए था।
मैं आपके आनन्द का अनुभव कर सकता हूँ, पूर्णता से वह अनुभव जी लीजिये।
ReplyDeleteजनगण को याद करते हुए, भज्जू श्याम को तलाशता हूं.
ReplyDeleteआपके लिए अनगद की दो लाइने
ReplyDeleteकुम्हार गीली मिटटी से अनगड़ गड़ गया
वेदों की बातें लकड़हारा कह गया
वाक़ई आनन्दम् आनन्दम् .....
ReplyDeleteतस्वीर बेहद सुन्दर है. मेरे भी समझ में नहीं आता की ऐसे आयोजनों का पूर्व प्रसार क्यों नहीं होता है. आजकल कुछ दिनों से चेन्नई में हूँ. बहुत सारे आयोजन हो रहे हैं. अखबार में जब तक पढ़ पाता हूँ, आयोजन समाप्ति पर होती है या समाप्त हो चुकी होती है. आज की खबर है, भारत की सबसे पुरानी स्टीम इंजन दशकों बाद पुनः एकबार पटरी पर दौड़ने वाली है. वह आज ही सुबह. अब कैसे देख सकेंगे. आपतो भाग्यशाली थे, आयोजन स्थल में पहुच सके.
ReplyDeletekuch sudhar public response main kal dikha
ReplyDeleteaapki upastithine waise hi is aayojan ko sajiv bana rakha hai
चान्दनीवाला दम्पति को मेरा नमस्कार कहियेगा।
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