कीर्तिमानी चीनी झूठ

चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग आज भारत आ रहे हैं।
भारतीय सीमा में चीनी अतिक्रमण और चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय सैनिकों की घेराबन्दी किए जाने की खबरों के बीच शी जिन पिंग की यात्रा को लेकर आशा भरे अनुमान कम और आशंकाएँ ज्यादा जताई जा रही हैं। आशाएँ पूरी तरह से भारत में चीनी निवेश को लेकर है और आशंकाएँ भारतीय भूमि पर उसकी अवांच्छित उपस्थिति को लेकर।

1962 में भारत पर चीनी आक्रमण के बाद चीन की दोस्ती पर आँखें मूँदकर विश्वास हम कभी नहीं जता पाए। इसके सर्वथा विपरीत, चीन हमारे लिए ‘मुँह में राम, बगल में छुरी’ का पर्याय बन गया। माओ त्से तुंग (या ‘दुंग’) हमारे लिए सबसे बड़े खलनायक बने हुए थे।

सत्तर और अस्सी के दशक में चीन के प्रति यह अविश्वास और सन्देह अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अनुभव किया जाता था। निकिता ख्रुश्चेव (उन्हें ‘ख्रुश्चोफ’ भी लिखा जाता रही है) के नेतृत्व में सोवियत संघ तब हमारे लिए सबसे बड़ा, सर्वाधिक विश्वस्त और सर्वाधिक सहयोगी मित्र बनकर उभरा था। हम ‘निर्गुट आन्दोलन के नेता’ होते हुए भी रूसी खेमे में मौजूद रहते थे।

चीन की कथनी और करनी के अन्तर का बखान करनेवाला एक चुटकुला (जो मुझे आज भी लघु कथा ही लगता है) तब काफी लोकप्रिय हुआ था। ‘चीनी झूठ’ शीर्षक से लोकप्रिय हुआ यह चुटकुला मैंने तब अनेक अखबारों और पत्रिकाओं में पढ़ा था। आज वही चुटकुला मुझे बड़ी ही शिद्दत से याद आ रहा है।

चुटकुला कुछ इस तरह है -

कॉमरेड माओ और कॉमरेड ख्रुश्चेव एक बार एक साथ शिकार खेलने गए। उन्होंने एक शेर मार गिराया। दोनों मरे शेर के पास पहुँचे तो पाया कि शेर बहुत बड़ा और बहुत भारी है। इतना और ऐसा कि दोनों के लिए उसे ढो कर ले जाना सम्भव नहीं।

दोनों ने तय किया कि कॉमरेड माओ मरे शेर की रखवाली करेंगे और कॉमरेड ख्रुश्चेव सहायता के लिए पास के गाँव जाकर कुछ लोगों को लेकर आएँगे।

दोनों, बड़ी मुश्किल से खेंच-खाँच कर शेर को एक बरगद के नीचे लाए। कॉमरेड माओ को मरे शेर के पास छोड़ कर कॉमरेड ख्रुश्चेव पड़ौस के गाँव में चले गए।

थोड़ी देर बाद, गाँव के आठ-दस लोगों को साथ लेकर कॉमरेड ख्रुश्चेव लौटे तो देखा कि कॉमरेड माओ, टाँगें फैलाए, बड़े आराम से सिगार पी रहे हैं और शेर का अता-पता नहीं है।

कॉमरेड ख्रुश्चेव ने पूछा - “कॉमेरड! शेर कहाँ है?”

सिगार फूँकना जारी रखते हुए कॉमरेड माओ बेपरवाही से बोले - “शेर! कौन सा शेर?”

कॉमरेड ख्रुश्चेव फौरन ही सारी बात समझ गए। बोले - “कोई बात नहीं कॉमरेड। सारी बात शुरु से शुरु करते हैं।”

और कॉमरेड ख्रुश्चेव शुरु हो गए। दोनों में सम्वाद कुछ इस तरह हुआ -

“अपन दोनों शेर के शिकार पर आए?”

“हाँ। आए।”

“अपन दोनों ने मिल कर एक शेर मारा?”

“हाँ। मारा।”

“मरा शेर इतना भारी था कि अपन दोनों के लिए उसे ढो पाना मुमकिन नहीं था?”

“हाँ। नहीं था।”

“तब तय हुआ कि आप मरे शेर की रखवाली करेंगे और मैं पड़ौस के गाँव जाकर मदद के लिए कुछ लोगों को लेकर आऊँगा?”

“हाँ। तय हुआ था।”

“आपको मरे शेर के पास छोड़कर मैं पास के गाँव में गया?”

“हाँ। गये।”

“वापस आकर देखा कि आप अकेले बैठे सिगार पी रहे हैं और शेर कहीं नहीं है?”

“शेर! कौन सा शेर?”
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इस अन्तरराष्ट्रीय चुटकुले को याद रखते हुए आईए! चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग का स्वागत करें।


(साथवाला चित्र मैं बड़ी मुश्किल से तलाश कर पाया हूँ। यदि चित्र गलत हो तो मुझे क्षमा किया जाए।)







7 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-09-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1740 में दिया गया है ।
    आभार

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  2. वाकई यह चुटकला चीन के चरित्र को दर्शाता है,ऐसे लोगों से तो लाठी हाथ में रख कर बात करनी चाहिए , ये नहीं होते , पाकिस्तान भी ऐसे देश है, और इसीलिए इन दोनों में खूब पटती है

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  3. हमारे यहाँ तो आस्तीन में ही साँप पलते हैं ,अंदरूनी बिखराव न हो ,राष्ट्र हित की भावना से नीति-निर्धारित हो तो बाहरवालों का हौसला इतना न बढ़े .

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  4. कम्युनिस्ट चीन के सभी शासकों ने इस चुट्कुले की आत्मा को सँजोकर रखा है। नियंत्रणवादी विचारधाराएँ अपने ही लोगों के प्रति वफादार नहीं होतीं तो पड़ोसियों के प्रति कैसे होंगी। अपने भोलेपन के लिए पड़ोसी खुद जिम्मेदार हैं।

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  5. आपका ब्लॉग मेरे ब्लॉग "नवीन जोशी समग्र" के हिंदी ब्लॉगिंग को समर्पित पेज "हिंदी समग्र" (http://navinjoshi.in/hindi-samagra/) में शामिल किया गया है। अन्य हिंदी ब्लॉगर भी अपने ब्लॉग को यहाँ चेक कर सकते हैं, और न होने पर कॉमेंट्स के जरिये अपने ब्लॉग के नाम व URL सहित सूचित कर सकते हैं।

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