सरकारी दफ्तर में जाने से पहले
- मुकेश नेमा
(मुकेश भाई को आप यहॉं पढ चुके हैं।)
मैं कोई उपदेश नहीं दे रहा। मैं तो फकत बस इतना ही चाहता हूँ कि किसी सरकारी दफ्तर में अपना काम करवाने के लिये पहली बार जाने के पहले आप वहाँ के बारे में, वहाँ के कायदों, चाल-चलन के बारे मे थोड़ा बहुत जान लें। ऐसे ही मुँह उठाये ऐसी खतरनाक जगह पर जाने से आप दिक्कत में पड़ सकते हैं। सरकारी आदमियों और सरकारी दफ्तर के बारे में अता पता करके जाना ही ठीक रहता है। इससे आपको ही सुविधा ही होगी। आपको अचानक कोई धक्का नहीं लगेगा और आप जैसे नासमझ से जूझने में, दफ्तरों में काम करने वाले भले लोगों का वक्त भी ख़राब नहीं होगा।
पहले तो यह समझिये कि सरकारी दफ्तर कैसे होते हैं और क्यों होते हैं? सरकारी दफ्तर, आम तौर पर किसी पुरानी, रोती-पीटती सी इमारत में, ऊँघते-अनमने लोगों का जमावड़ा होता है। ये लोग किसी आने वाले की औकात देख कर तय करते है कि क्या ज्यादा फायदेमन्द होगा - ऊँघते रहना या चौकन्ना हो जाना? आमतौर पर यह जमावड़ा कुछ भी नहीं करता और करता है तो वो करता है जो उसे नहीं करना चाहिये। अधिक सरल तरीके से इसे ऐसे समझिये कि सरकार ने हर सरकारी दफ्तर को आम आदमी की किसी खास जरूरत के मद्देनजर किसी खास काम को करने लिये बनाया हुआ होता है। पर सरकारी आदमी अपनी पूरी ताकत इस बात के लिये लगा देते हैं कि कम से कम हमें वो काम तो नहीं ही करना है जिसकी हमें तनख्वाह मिल रही है। वे तयशुदा काम को न करने के लिये इतने कट्टरधर्मी होते हैं कि आपको ऐसा लग सकता है कि हो ना हो ये भले लोग ‘यही सब’ करने के लिये यहाँ बैठाये गये हैं। ये सारे लोग सावधान रहते हैं कि कहीं ऐसा ना हो कि कोई शातिर आम आदमी अपना काम करवा कर फटाफट निकल ले और बाहर, जमाने भर में गाना गाता, बेइज्जती करता फिरे कि यहाँ इस दफ्तर मंे सब ऐसे ही हैं, सब कुछ आसान सा ही है। आप खुद सोचिये, किसी भी सरकारी आदमी के लिये यह कितनी शरम की बात है कि उसे ‘ऐसा-वैसा लुंजपुंज टाईप का’ समझ लिया जाये? यदि कोई दफ्तर में हँसता हुआ आये और मुस्कराता हुए चल दे तो यह तो किसी भी स्वाभिमानी सरकारी बाबू के लिये सरासर डूब मरने जैसी बात है! यदि आने वाले को ऐसे ही चले जाने देना है तो फिर सरकारी दफ्तर का और वहाँ बाबू होने का मतलब ही क्या रह जायेगा?
ख़ुदा ना खास्ता, हमारे दफ्तर कभी ऐसे ईमानदार टाईप के, नियमानुसार काम करने वाले हो जायें तो हमारे बाबू ऐसे बकवास दफ्तर में टाईम खराब करने के बजाय किसी बड़े आदमी के बँगले के लॉन की घास छीलना ज्यादा बेहतर समझेगें। अब, चूँकि कोई भी सरकारी बाबू घास छीलना नहीं चाहता इसलिये वो आने वालों को छीलता है। खाली वक्त में आने वालों को छीलने के लिये नये नये तरीके इजाद करता रहता है ताकि उसके और उसके ऑफिस के होने की वजहें और हैसियत बनी रहे।
वैसै सरकारी बाबुओं की, सालों-साल से, इस दिशा में की जा रही मेहनत से इतना तो हो ही गया है कि आजकल हमारे देश में इन दफ्तरों में आने वाला कोई भी शरीफ आदमी फौरन और फोकट में अपना काम करवाने की जिद करता ही नहीं है। वह ऐसी कोई अहमकाना जिद करने की हिम्मत कर भी ना सके, इसलिये सरकारी दफ्तरों का माहौल पर्याप्त डरावना बनाये रखा जाता है, छोटे अँधेरे कमरे, मन मार कर, बीमार, मद्धिम पीली रोशनी में जलते मनहूस बल्ब, कमरों में बिखरी पड़ी गन्दगी, चारों तरफ झूलते मकड़ी के जाले ,टूटा-चरमराता फर्नीचर, धूल खाती फाइलें और इन फाइलों के पीछे पान की पीक बहाते सफेद बालों वाले बाबू। ये सब मिल कर वह हाहाकारी दृश्य रच देते हैं कि आने वाले की हिम्मत वैसे ही टूट जाए। इन सारी ‘व्यवस्थाओं’ के बावजूद यदि आने वाला नियमानुसार काम करवाने की जिद पर अड़ा रहता है तो हमारे अनुभवी बाबू उसकी अनदेखी करके उसे इशारों-इशारों मे समझाने की कोशिश करते हैं और यदि फिर भी वो नहीं मानता तो बेचारे बाबूओं को उसकी लानत-मलामत करनी ही पड़ती है।
लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं हमारे बाबू काम करते ही नहीं। करते हैं। ख़ूब करते हैं। पर तभी करते हैं जब आप इन कामों के लिये इन दफ्तरों में काम करने के लिये नियत मार्गदर्शक सिद्धान्तों, शर्तों का पालन करने के लिये राजी हों। आपके राजी होने पर ही आपको समझदार माना जायेगा वरना यह तय मानिये कि नासमझों को सरकारी बाबू मुँह लगा कर अपना समय बर्बाद नहीं किया करते। चूँकि वक्त तो आपके पास भी नहीं होगा और काम तो आपको करवाना ही करवाना है! इसलिये किसी से फोन करवा कर अपनी सिफारिश करवाने जैसी हिमाकत न ही करें तो अच्छा है। ऐसी ‘ओछी हरकत’ करने वालों को सरकारी दफ्तरों में सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता। और यदि किसी ऑफिस से आपको बार-बार काम करवाना है तो किसी दंबग या किसी नेताजी को साथ ले जाना तो अपने होने वाले काम की हत्या कर देने जैसा ही होगा। आपको इन सभी गलतियों से बचना चाहिये।
यह सब ब्यौरा केवल इसलिये है ताकि आप कम से कम सरकारी दफ्तर में अपनी उपस्थिति पर्यन्त सावधान और समझदार बने रहें। मैं उम्मीद करता हूँ कि यह सब पढ़कर आप ऐसे नाज़ुक वक्त में इन सब बातों का ध्यान रखेंगे (और मेरे प्रति कृतज्ञ भी बने रहेंगे)।
उपयोगी पोस्ट।
ReplyDeleteकृतज्ञ हुये!
ReplyDeleteमेरो नाम केभिन एडम्स, बंधक ऋण उधारो एडम्स तिर्ने कम्पनी को एक प्रतिनिधि, म 2% ब्याज मा ऋण दिनेछ छ। हामी विभिन्न को सबै प्रकार प्रदान
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