बर्लिन की पहचान और आकर्षण: टेलीविजन टॉवर

‘बर्लिन से बब्बू को’ - चौथा पत्र: तीसरा हिस्सा



बर्लिन में मुख्य चौक पर वहाँ का आधुनिकतम विशाल टेलीविजन टॉवर है। यह टॉवर विज्ञान का एक चमत्कार ही कहा जाएगा। जमीन से 365 मीटर ऊपर गगनचुम्बी ऊँचाई लिये यह टेलीविजन टॉवर मीलों दूर से दिखाई पड़ता है। इसकी लिफ्ट अनूठी है। कोई 260 मीटर ऊपर इसमें एक आधुनिकतम रिवाल्विंग कैफे बना हुआ है, जिसमें बैठकर दर्शक चाय काफी पीते हुए एक घण्टे तक बर्लिन को दूर-दूर तक आराम से देख सकते हैं। दर्शक अपनी सीट पर ही बैठे रहते हैं और होटल पूरा एक चक्कर लगा लेता है। सारे संसार में यह काफी हाऊस “टेली  कैफे  के नाम से मशहूर है। हम 21 लोगों का इस काफी हाऊस में काफी और केक खाने का बिल कोई 220 मार्क याने केवल 880 भारतीय रुपयों का आया। टॉवर की प्रवेश फीस अलग है, जो कि प्रति व्यक्ति शायद दो या पाँच मार्क है। इस टॉवर पर से पूर्वी और पश्चिमी बर्लिन साफ दिखाई पड़ता है। बर्लिन की ऐतिहासिक दीवाल यहाँ बैठकर देखने वालों के लिए अपने सारे अर्थ खो देती है। इस टॉवर पर हमारे दल के अधिकांश सदस्यों ने एक काम जानबूझकर किया। वह काम है धरती पर 260 मीटर की ऊँचाई से पेशाब करना।

बर्लिन टॉवर के केफे गलियारे का एक दृष्य

बर्लिन में प्रायः तीन तरह के पेशाब घर बने होते हैं। होटल के अपने कमरों में पेशाब करने के सिवाय यदि कोई बाहर किसी मूत्रालय में मूत्र विसर्जन करता है तो उसे वहाँ के दस, बीस या तीस पैसे चुकाने पड़ते हैं। याने भारतीय हिसाब से 40, 80 और 120 पैसे हुए। व्यवस्था और स्थान के हिसाब से मूत्रालय तीन श्रेणियों में बँटे हुए हैं। भारतीय जलवायु में पले हुए शरीरों से, ठण्डे प्रदेशों में चाय, काफी, बीयर और व्हिस्की तथा कोला आदि पेय अधिक पीने के कारण बार-बार मूत्र विसर्जन के लिए जाना पड़ता है। तुम इसे मजाक समझोगे, पर यदि कोई व्यक्ति बर्लिन में एक महीना रहे और दिन में 4-5 बार भी पेशाब करने के लिए ऐसे पेशाब घरों में जाए तो भारत सरकार जितनी विदेशी मुद्रा उसे देती है वह सारी की सारी केवल इसी काम में खर्च होने की पूरी सम्भावना सर पर मँडराती रहती है। पर टेलीविजन टॉवर पर जब मैंने इस काम की शुरुआत की तो लोग एक दूसरों से चिल्लर-पैसा उधार लेकर बाथरूम में घुस गये। इस टॉवर को देखने के लिए संसार भर के यात्री यहाँ भीड़ बनाये खड़े रहते हैं।

बर्लिन टॉवर का गलियारा रात में



अचानक मिल गईं ग्‍वालियर की पत्तोबाई

इस टॉवर के ठीक नीचे मैंने पहली बार भारत की प्रसिद्ध पुतली विशेषज्ञा पत्तोबाई से बात की। जिन दिनों हम लोग जी. डी. आर. में घूम रहे थे, उन दिनों वहाँ भारतीय हस्त शिल्पकला की एक प्रदर्शनी चल रही थी। कोई श्रीमती प्रसाद इस प्रदर्शनी की इंचार्ज थी और मधुबनी तथा राजस्थान के कई कलाकार वहाँ अपनी कलाओं का प्रदर्शन कर रहे थे। पत्तोबाई ग्वालियर की हैं और राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत हैं। यह दल गये कुछ महीनों से यूरोप में घूमकर अपनी कला प्रदर्शनी लगा रहा है। मकवाना के एक राजस्थानी शिल्पी से जब मैंने मालवी बोली में बात शुरु की तो वह अपनी कठपुतलियों का तमाशा रोककर मेरे पास आकर मुझसे बात करने लगा। महीनों बाद उसने अपनी बोली सुनी। उसे बिलकुल विश्वास नहीं हुआ कि यहाँ कोई उससे उसकी बोली में बोलने इस तरह आ जाएगा।

और बच्चे तब भी नहीं रोएँगे

बर्लिन शहर में घूमते हुए हमारी गाईड, हमारी चलती हुई बस में हमें लाउडस्पीकर पर अंग्रेजी में गलियों और इमारतों का परिचय दे रही थी। तब एक स्थान पर एकाएक श्रीमती रुथ ने गाड़ी रुकवाकर मुझसे कहा कि मिस्टर बैरागी आप कुछ देर के लिये सामने वाली इमारत में चले जाईये, आपकी इच्छा पूरी हो जाएगी। आप दो हफ्तों से हमारे देश में रोता हुआ बच्चा ढूँढ रहे हैं, वह आपको इस इमारत में मिल जाएगा। जब मैंने उस इमारत का परिचय जानना चाहा, तो रुथ ने हँसते हुए बताया कि वह बर्लिन का प्रसिद्ध जच्चाखाना है और हमारे बच्चे यहाँ जन्म लेते हैं। पर जब बस चली तो श्रीमती रुथ ने बहुत गम्भीर होकर मुझसे कहा कि मेरे कवि मित्र! हम लोग समाजवाद की ओर से साम्यवाद की ओर बढ़ रहे हैं। हमारा बस चला तो हम यह प्रयत्न करेंगे कि हमारी व्यवस्था में बच्चा पैदा होते समय भी नहीं रोये। बच्चों को प्रसन्न रखना हमारा एक राष्ट्रीय दायित्व है। यद्यपि यह बात तब हँसी में उड़ा दी गई थी, पर इस बात के पीछे एक छटपटाता हुआ संकल्प मुझे साफ दिखाई दे रहा है। असम्भव को सम्भव करने के लिये ये लोग कितने आतुर हैं!

जब बी. बी. सी. पर समाचार आया कि पाकिस्तान ने हमारे अपहृत हवाई जहाज को अपनी सूझबूझ और विवेक से बचा लिया है तथा सभी यात्रियों को अपना मेहमान बना लिया है, तब हम लोगों में हर्ष की लहर व्याप्त हो गई। हमारे मेजबान देश ने भी अच्छा महसूस किया। तुम्हें मालूम है कि इस हवाई जहाज में राजस्थान के मन्त्री श्री गुलाबसिंह शक्तावत (जो मेरे निजी मित्र हैं) भी सफर कर रहे थे। मैं बहुत चिन्तित था। 

जी. डी. आर. में हमारे राजदूत श्री अरविन्द देव एक सुलझे हुए व्यक्ति हैं और अत्यन्त आदर पाते हैं। जिस इमारत में भारतीय दूतावास है, उसी में पाकिस्तान का दूतावास भी है। नीचे की मंजिल पर पाकिस्तान और ऊपर की मंजिल पर भारत के झण्डे लहराते हुए दूर से दिखाई पढ़ते हैं। श्री देव से हमारी मुलाकात कोई तीन बार हुई। पहली बार उनके कार्यालय में। दूसरी बार इण्डिया क्लब के स्वागत समारोह में और तीसरी बार आज की काकटेल पार्टी में। काकटेल पार्टी को मैंने मयूरपंखी पार्टी कहना ठीक समझा। लोगों ने रात को कोई दो बचे तक शराब पी। शराब क्या, तरह तरह की शराबें पी। मैं वहाँ से रात साढ़े आठ बजे ही लौट आया और तुझे पत्र लिखने बैठ गया। अभी तक लोग उस पार्टी से लौट रहे हैं। अधिकृत तौर पर यह कार्यक्रम हमारा इस यात्रा का अन्तिम कार्यक्रम था।
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चौथा पत्र: चौथा हिस्सा निरन्तर


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