मेरे पापाजी की कार

अड़ती तो बस! अड़ जाती है,
बढ़ती तो बस, बढ़ती जाती है।
जो भी इसके आगे आता,
उसके पीछे पड़ जाती है।

अपनी आदत से लाचार,
मेरे पापाजी की कार।

पेड़ो को भी गले लगाती,
लिप-लिपट खम्भों से जाती।
सिवा हार्न के सब बजता है,
पूरी बॉडी गाना गाती।

जीवों का करती उद्धार,
मेरे पापाजी की कार।

गेरेज से जब बाहर आती,
बस्ती मे हलचल मच जाती।
पूजा की थाली ले-ले कर,
गलियों से बहिनें आ जातीं।

इसकी महिमा अपरम्पार।
मेरे पापाजी की कार
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