हर मौसम में फसलें देती,
देती हमको, फल औ’ फूल।
घर-आँगन की मस्ती देती,
बस्ती, बस्ता और स्कूल।
नद्दी-नाले, परबत देती,
देती है पीपल की छैंया।
कितना देती धरती मैया!
कण लेती है, मन देती है,
नहीं बाँधती कोई गाँठ।
हँसते-हँसते सब सहती है,
देती है धीरज का पाठ।
तुमको घर औ’ मुझे घरौंदा,
देकर लेती रोज बलैंया।
कितना देती धरती मैया!
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