बादल और मोर

बादल गरजा जोर से,
बोला प्यासे मोर से,
‘क्यों दिन भर चिल्लाता है?
आखिर किसे बुलाता है?
जब देखो तब हो-हल्ला
हो-हल्ला भी खुल्लम-खुल्ला
कल से शोर मचाना मत
घड़ी-घड़ी चिल्लाना मत।’

अब नबर था मोर का,
लगा ठहाका जोर का,
बाला- ‘सुन रे! सुन बादल!,
तू क्या जाने रे पागल!
मैं मस्ती में गाता हूँ,
गा कर तुझे बुलाता हूँ।

‘तू आता, गर्जन करता,
तब भी मैं नर्तन करता।
जब तू गा नहीं पाता है,
(तो) रोने लग जाता है।

‘बात-बात में रोना क्या?
पानी-पानी होना क्या?
मन चाहे तब आया कर।
लेकिन सुर में गाया कर।’
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