माँ से ज्यादा मौसी प्यारी

दिन भर मौसा पर गुर्राती,
बेलन का जौर दिखलाती

कोप-भवन में लेटी-लेटी,
घर-भर का खाना खा जाती।

फिर भी भूखी है बेचारी
,
माँ से ज्यादा मौसी प्यारी

जब-जब हमसे मिलने आती,
घर में शोक-सभा जुड़ जाती

वो भी रोए, माँ भी रोए,
हम हँसते तो डाँट पिलाती

कहती है खुद को दुखियारी,
माँ से ज्यादा मौसी प्यारी

माँ ने तो बस जनम दिया है,
(पर) मौसी ने जनम लिया है

हमको अपना मान रही है,
क्या यह कम उपकार किया है?

मेरी मौसी की बलिहारी
,
माँ से ज्यादा मौसी प्यारी

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