दादा से जुड़े कागजों का पुट्टल उलटते-पलटते अचानक ही यह गीत सामने आ गया। जाहिर है, जवाहरलालजी के निधन के बाद ही यह गीत लिखा गया होगा।
होना तो यह चाहिए था कि इसे, जवाहरलालजी की पुण्य तिथि, 27 मई को दिया जाता। लेकिन क्या पता, तब तक मैं ही न जीयूँ! यह संयोग ही है कि आज जवाहरलालजी की जयन्ती है और आज ही यह गीत सामने आ गया।
सो, 27 मई की प्रतीक्षा किए बिना, आज ही इसे दे रहा हूँ।
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अमर जवाहर
- बालकवि बैरागी
जिसने अपनी राख बिछा दी, खेतों में, खलिहानों में।
जिसने अपने फूल बिछाए, ऊसर रेगिस्तानों में।
जिसने अपनी पाँखुरियाँ दीं, ऐटम के शमशानों को।
जिसने अपनी मुसकानें दीं, तीन अरब इंसानों को।
जिसने अपनी बाँहें दे दीं, मानवता की आहों को,
जिसने अपनी आँखें दे दीं, भटकों को, गुमराहों को।
जिसने अपनी आहुति दे दी, संकल्पों की ज्वाला में।
चमक रहा है जो सुमेरु सा, जननी की मणि माला में।
उसका यश गायेगा अम्बर, धरती और पाताल रे!
नहीं मरा है, नहीं मरेगा, अमर जवाहर लाल रे।
अभी करोड़ों साल जियेगा, अमर जवाहर लाल रे।
-1-
निर्मोही ने राजघाट से, ये जो नाता जोड़ा है।
यमुना-तट की ओर हठी ने, ये जो रथ को मोड़ा है।
ये जो माँ से अनपूछे ही, अमर तिरंगा ओढ़ा है।
ये जो तीन अरब लोगों को, नीर बहाते छोड़ा है।
ज्यों की त्यों रख कर के चादर, कर गया और कमाल रे।
नहीं मरा है, नहीं मरेगा, अमर जवाहर लाल रे।
अभी करोड़ों साल जियेगा, अमर जवाहर लाल रे।
-2-
आजीवन जो रहा हँसाता, क्यों-कर भला रुलायेगा?
मन कहता है, यहीं, कहीं है, अभी यहाँ आ जाएगा।
मेघ स्वरों में अगत-जगत के, हाल-हवाल बतायेगा।
भारत माता की जय हमसे, वो बार-बार बुलवायेगा।
शोर न करना वरना खुद को, कर लेगा बेहाल रे।
नहीं मरा है, नहीं मरेगा, अमर जवाहर लाल रे।
अभी करोड़ों साल जियेगा, अमर जवाहर लाल रे।
-3-
अमन दिया, ईमान दिया और, जिसने हमें जवानी दी।
नये खून को राहें देकर, जिसने नई रवानी दी।
इतिहासों को नई दिशा दी, जिसने नई कहानी दी।
चन्दन में जल कर भी जिसने, माँ को अमर निशानी दी।
हमसे दूर करेगा कैसे, उसे बिचारा काल रे।
नहीं मरा है, नहीं मरेगा, अमर जवाहर लाल रे।
अभी करोड़ों साल जियेगा, अमर जवाहर लाल रे।
-4-
नस-नस में भिद गया तुम्हारी, अपना खून टटोलो तुम।
कुछ तो सोचो, आँसू पोंछो, मोती और न रोलो तुम।
भावुकता भी भाषा साथी, और अधिक मत बोलो तुम।
तन की आँखें बन्द करो और, मन की आँखें खोलो तुम।
छूटी है माटी की ममता, बिछड़ा है कंकाल रे।
नहीं मरा है, नहीं मरेगा, अमर जवाहर लाल रे।
अभी करोड़ों साल जियेगा, अमर जवाहर लाल रे।
-5-
प्यार एक सा किया निठुर ने, बेला और बबूलों से।
पुजवा लिया स्वयं को जिसने, परबत जैसी भूलों से।
जिसने पावन कर दी गंगा, अपने पावन फूलों से।
वो आँसू से नहीं पुजेगा, पूजो उसे उसूलों से।
नहीं चाहिए उसको केसर, कुंकुम और गुलाल रे।
नहीं मरा है, नहीं मरेगा, अमर जवाहर लाल रे।
अभी करोड़ों साल जियेगा, अमर जवाहर लाल रे।
-6-
रोना-धोना बन्द करो और मस्तक जरा उठाओ रे!
भुजदण्डों पर ताल ठोेक कर, अंगद-चरण बढ़ाओ रे!
पीर पराई पी कर उसको, सच्चा सुख पहुँचाओ रे।
नीलकण्ठ के वंशज बेटों! कुछ तो जहर पचाओ रे।
उसका सरगम छूट न जाए, टूट न जाए ताल रे।
नहीं मरा है, नहीं मरेगा, अमर जवाहर लाल रे।
अभी करोड़ों साल जियेगा, अमर जवाहर लाल रे।
-7-
खेत-खेत में उगे जवाहर, नीलम फसलें लहरायें।
नहर-नहर की लहर-लहर में, श्रम का अमृत घुल जाये।
बाग-बगीचे, वन-उपवन में, नहीं कभी पतझर आये।
नये पसीने की नदियों से, रीते सागर भर जायें।
प्राण भले ही छूटें लेकिन, छूटे नहीं कुदाल रे।
नहीं मरा है, नहीं मरेगा, अमर जवाहर लाल रे।
अभी करोड़ों साल जियेगा, अमर जवाहर लाल रे।
-8-
होनी ने अनहोनी कर ली, बिगड़ी बात सँवारेंगे।
कर्मक्षेत्र को पीठ न देंगे, उसका कर्ज उतारेंगे।
उसके पद-चिह्नों पर चलकर, बाकी उम्र गुजारेंगे।
चाहे जो हो जाए लेकिन हा! हा! नहीं पुकारेंगे।
हम ही गौतम, हम ही गाँधी, हमीं जवाहरलाल रे।
नहीं मरा है, नहीं मरेगा, अमर जवाहर लाल रे।
अभी करोड़ों साल जियेगा, अमर जवाहर लाल रे।
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यहाँ प्रस्तुत चित्र गाँधी सागर बाँध के उद्घाटन समारोह (19 नवम्बर 1961) का है। 19 नवम्बर इन्दिराजी की जन्म तारीख है। उद्घाटन की यह तारीख डॉक्टर कैलाशनाथ काटजू ने तय की थी। उद्घाटन समारोह का संचालन दादा ने ही किया था।
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