रवि रतलामी सीएनएन आईबीएन पर

अत्यन्त मुदित मन से मैं यह पोस्ट लिख रहा हूं । आखिर बात मेरे गुरू श्री रवि रतलामी के, अन्तरराष्ट्रीय समाचार चैलन 'सीएनएन आईबीएन' पर आने की जो है ।


कल कोई सात घण्टे हम दोनों ने इसी उपक्रम में लगाए ।


परसों शाम अचानक ही मुझे रविजी का सन्देश मिला - 'शुक्रवार सवेरे नौ बजे मेरे निवास पर पहुंचें, कुछ काम है ।' आदेश के परिपालन में समय पर पहुंचा । रविजी ऐसे बैठे थे, मानों कोई काम ही नहीं हो । पूछा तो बोले - 'जिन्हें आना था, वे अब एक घण्टा देर से आएंगे । तब तक आप चाहें तो अपना कोई काम निपटा लें ।' मैं पूरी तरह से फुर्सत लेकर ही गया था । सो 'हजरत-ए-दाग' की तरह वहीं बैठ गया । बातों-बातों में रविजी ने बताया कि 'सीएनएन आईबीएन' का एक सम्वाददाता और केमरामेन गई रात रतलाम पहुचे हैं और छोटी जगहों पर आंचनलिक भाषाओं में ब्लागिंग करने वालों पर धारावाहिक साप्ताहिक स्टोरी के लिए रविजी को शूट करने के लिए आने वाले हैं । सुनकर अच्छा लगा । लेकिन यह देखकर तनिक अजीब लगा कि रविजी अत्यन्त असहज और परेशान हैं । मैंने कुछ भी नहीं पूछा, यह सोच कर कि हकीकत सामने आ ही जाएगी ।



निर्धारित समय पर हम लोग होटल पहुंचे तो पाया कि सम्वाददाता आसिम और केमरामेन अर्पित तैयार खडे थे । दोनों अपनी-अपनी उम्र के पचीसवें बरस में चल रहे थे । रविजी ने दोनों से मेरा परिचय कराया । नाश्ते की व्यवस्था रविजी ने अपने घर पर कर रखी थी लेकिन दानों ही नौजवान हमारे मेजबान बन कर हमसे नाश्ता करने का आग्रह कर रहे थे । हम दोनों को बहुत ही अटपटा लगा । हम मालवा वाले मेहमाननवाजी को ही अपनी पहचान और उससे भी पहले अपना संस्कार मानते हैं और दोनो नौजवान थे कि हमें 'संस्कारच्युत' करने पर तुले थे । वे दोनों अपनी बात पर अडे रहे और हम दोनों अपनी बात पर । अन्तत: उन दोनों ने नाश्ता किया और हम उन्हें देखते रहे ।



बात रतलाम और इसकी पहचान वाले कारकों पर होने लगी । निष्कर्ष निकला कि रतलाम की पहचान बनी हुई नमकीन, बेसन की, 'रतलामी सेव' को भी इस स्टोरी में शामिल किया जाए । यह निर्णय आसिम का था । बातों ही बातों में 'दुनिया में सबसे पहले' वाले फण्डे पर बात चली तो रविजी ने परिहासपूर्वक कहा कि चलती रेल में से, हिन्दी ब्लाग जगत में, सचित्र पोस्टिंग करने वाले वे दुनिया के पहले आदमी बन गए हैं । आसिम ने इस सूत्र को फौरन लपका और स्टोरी का पहला सीनेरियो लिखा कि रतलाम के किसी व्यस्त इलाके की किसी ऐसी दूकान को शूटिंग स्पाट बनाया जाए जहां सेव बन रही हो । रविजी वहां पहुंच कर केमरे से उस बनती सेव के फोटो लेंगे और फिर वहीं, दूकान पर बैठकर 'रतलामी सेव' पर अपनी पोस्ट लिख कर उसे, दूकान से ही अपने ब्लाग पर पोस्ट कर देंगे । यह पूरी प्रक्रिया शूट करने का फैसला हुआ ।



पहली समस्या आई डिजिटल कैमरे की । रविजी का कैमरा 'माइश्चर' खा कर आराम कर रहा था । मुझे अचानक याद आया - रेल्वे हेण्‍डलिंग काण्ट्रेक्टर फर्म मेसर्स मणीलाल झब्‍बालाल वाले मेरे प्रिय संजय जैन के पास आधुनिकतम डिजिटल कैमरा है । उन्‍होंने बताया कि उनके कार्यालय से कैमरा ले लूं । कैमरा लेते हुए मालूम पडा, कैमरे की कनेटिंग केबल तो संजय के घर पर है । वहां जाकर केबल ली । सब लोग रविजी के निवास पर आए । नाश्‍ते का आग्रह हुआ । आसिम और अर्पित मना करने लगे । तभी आसिम की नजर 'खमण ढोकला' पर पडी । उसने अगली मनुहार की प्रतीक्षा नहीं की और शुरू हो गया । अर्पित तनिक संकोच से तथा तनिक देर से शुरू हुआ ।



नाश्‍ते से निपटते-निपटते कोई एक घण्‍टा लग गया और हम लोग लगभग ग्‍यारह बजे अपने 'लोकेशन' पर पहुंचे । रेल्‍वे स्‍टेशन मार्ग वाले प्रमुख चौराहे पर स्थित खण्‍डेलवाल सेव भण्‍डार हमारी लोकेशन थी । अनवरत आवागमन और भरपूर भीड-भाड होने के बावजूद यहां काफी खुली जगह थी । भट्टी 'जाग्रत' थी, कढाही चढी हुई थी और सेव बनाने का क्रम ऐसे चल रहा था मानो सनातन से चला आ रहा है और प्रलय तक यूं ही चलता रहेगा । समूचा दृष्‍‍य देखकर केमरामेन अर्पित के चेहरा खिल उठा - मानो, मुन की मुराद पूरी हो गई हो । शूटिंग के लिए मैं दूकान मालिक से अनुमति मांगता उससे पहले ही खुद मालिक भाई श्री रामावतार खण्‍डेलवाल (जिन्‍हें सारा रतलाम उनके मूल नाम से कम और 'रामू सेठ' के नाम से ज्‍यादा जानता-पहचानता है) ने आगे रहकर नमस्‍कार कर लिया । अब सब कुछ आसान था । और अधिक अनुकूल बात यह रही कि समूचा खण्‍डेलवाल परिवार, रविजी का न केवल परिचित निकल आया बल्कि उनका मुरीद भी । इस मामले में रविजी 'कस्‍तूरी मृग' साबित हुए । उन्‍हें पता ही नहीं था कि उनके इतने सारे और इतने बडे प्रशंसक वहां हैं । इस परिवार के भाई प्रिय पुष्‍पेन्‍द्र खण्‍डेलवाल की पत्‍नी सौ. अपरा, रविजी की जीवन संगिनी डॉ रेखा श्रीवास्‍तव की सुशिष्‍या रही हैं । सो प्रिय पुष्‍पेन्‍द्र तो ऐसे आवभगत में लग गया मानो उसका सुसराल पक्ष वहां अवतरित हो गया है ।



आसिम और अर्पित काम पर लग गए । वे दोनों ही रवि जी को डायरेक्‍शन दे रहे थे और रविजी असहज हुए जा रहे थे । उन्‍होंने तो इस प्रकार 'अभिनेता' होने की कल्‍पना भी नहीं की थी । वे तो मान कर चल रहे थे कि सब कुछ घर में बैठ कर निपटा लिया जाएगा । लेकिन बात चूंकि 'दृष्‍य माध्‍यम' की थी सो 'विजूअल्‍स' तो उसकी अनिवार्यता और अपरिहार्यत होने ही थे । रविजी के लिए यह कल्‍पनातीत स्थिति असुविधाजनक हो रही थी । वे काम करने वाले आदमी हैं, काम करने में विश्‍वास करते हैं जबकि यहां तो उन्‍हें खुद को काम करते हुए 'दिखना' था । इतना ही नहीं, तयशुदा सवालों के तयशुदा जवाब भी देने थे । उनके लिए न तो सवाल नए थे और न ही जवाब । रोजमर्रा की जिन्‍दगी में उनके लिए जो सर्वाधिक प्रिय और सर्वाधिक सहज था, वही सब उन्‍हें कठिन लग रहा था । वे न चाहते हुए भी 'केमरा काशस' हुए जा रहे थे । लेकिन आसिम अपनी उम्र से अधिक परिपक्‍व हो कर अत्‍यधिक धैर्यपूर्वक और विनम्रतापूर्वक उन्‍हें बार-बार समझाए जा रहा था । उसके चेहरे पर पल भर के लिए भी खिन्‍नता या असहजता नहीं आई । जो बात अब तक रविजी के घर का राज बनी हुई थी वह सडक पर उजागर हो रही थी कि रविजी अत्‍यधिक अन्‍तर्मुखी ऐसे व्‍यक्ति हैं जो अपनी प्रत्‍येक बात अपने मुंह से नहीं, अपने काम से कहते हैं । संजाल पर हिन्‍दी को लोकप्रिय बनाने के लिए अपनी नींद दांव पर लगाने वाले और 'रचनाकार' के लिए चौबीसों घण्‍टों अपने लेपटॉप से खेलने वाले रविजी को सम्‍वाद बोलने में असुविधा हुए जा रही थी । एक कष्‍ट और था । हालांकि वे अंग्रेजी खूब अच्‍छी तरह जानते, लिखते, बोलते हैं लेकिन रतलाम के वातावरण में अंग्रेजी अभी भी 'पानी में तेल' वाली दशा में है, सो धाराप्रवाह बोलना तनिक अस्‍वाभाविक होना ही था ।



लेकिन दो बजते-बजते, 'आउटडोअर शूटिंग' अन्‍तत: पूरी हो गई । सब कुछ आसिम और अर्पित के मनमाफिक हुआ था । रविजी हतप्रभ तो थे ही कि उनसे अभिनय करवा लिया गया है, इसी बात से वे बच्‍चों की तरह खुश भी थे ।



आसिम 'फ्री फ्राम ऑल वरीज' की मुद्रा में आ गया और अर्पित अपना साज-ओ-सामान समेट लगा । इस शूटिंग के दौरान प्रिय पुष्‍पेन्‍द्र ने मालवा की मेहमाननवाजी की बानगी पल-पल दी । अब हम लागों को भूख लग आई थी । भोजन कहां किया जाए - हम इसी विचार में थे कि हमें अपनी 'कमअकली' पर हंसी आ गई । प्रिय पुष्‍पेन्‍द्र का 'होटल सन्‍तुष्‍टी' रतलाम की शान बना हुआ है और हम लोग ठीक उसी के सामने खडे होकर, उसके मालिक से बात करते हुए भोजन करने की जगह तलाश कर रहे थे । सो, भोजन हमने 'सन्‍तुष्‍टी' में ही किया । पुष्‍पेन्‍द्र ने, हाथापाई करने के सिवाय बाकी सब जतन कर लिए कि हम भुगतान नहीं करें लेकिन आसिम ने हम तीनों में से किसी की, एक न सुनी और भुगतान उसी ने किया । पत्रकारिता से जुडे लोगों का ऐसा व्‍यवहार कम से कम मेरे लिए तो अनपेक्षित ही था ।



अब हम लोग एक बार फिर रविजी के निवास पर थे । अब रविजी को न केवल घर में काम करते हुए शूट किया जाना था बल्कि इण्‍टरनेट पर हिन्‍दी को स्‍थापित करने के लिए किए गए उनके प्रयत्‍नों की तथा उनके और उनके मित्र समूह द्वारा, इस कठिन काम के लिए विकसित 'औजारों' पर भी बात होनी थी । मेरा 'जडमति' होना ऐसे क्षणों में मेरे लिए बडा सहायक कारक रहा । सो, मुझे चुपचाप बैठे-बैठे सब कुछ देखना-सुनना ही था । इसी बीच, रविजी की जीवन संगिनी डॉक्‍टर रेखा श्रीवास्‍तव कॉलेज से लौट आईं । अचानक ही रविजी ने आसिम से आग्रह किया कि इस सम्‍वाद में मुझे भी शामिल किया जाए । आसिम ने ऐसे सुना मानो उसने ही रविजी को यह सम्‍वाद बोलने को कहा हो । चूंकि यह 'स्‍टोरी' अंग्रेजी चैनल के लिए हो रही थी सो आसिम का आग्रह था कि सारे सवाल-जवाब अंग्रेजी में ही हों । मेरे लिए यह अत्‍यधिक कठिन काम था । न तो मुझे अंग्रेजी आती है, न ही मुझे अंग्रेजी बोलने का अभ्‍यास है और सबसे बडी बात कि यह मेरी मानसिकता में कहीं है ही नहीं । फिर भी, मेरे गुरूजी का आदेश था, सो मैं जैसा भी बन पडा, अंग्रेजी में बोला । वह सब बोलते हुए मुझे लगता रहा मानो मैं झूठ बोल रहा हूं ।



शाम कोई पांच बजे, आसिम और अर्पित ने हम सबको धन्‍यवाद देते हुए विदा ली । उनके जाते ही मैं ने रविजी और रेखाजी को धन्‍यवाद दे कर नमस्‍कार किया और अपने घर का रास्‍ता पकडा ।



जैसा कि आसिम ने बताया है, 'सीएनएन आईबीएन' 3 सितम्‍बर से इस साप्‍ताहिक समाचार कथा का प्रसारण शुरू करेगा । उसने वादा किया है कि 'रवि रतलामी' वाले अंक के प्रसारण की तारीख वह समय पूर्व सूचित करेगा । लेकिन एक कुशल, जिम्‍मेदार और समझ‍दार सम्‍वाददाता की जिम्‍मेदारी निभाते हुए उसने कहा कि हम लोग बहुत ज्‍यादा उम्‍मीद नहीं करें । क्‍योंकि, रतलाम की शूटिंग में से कितना हिस्‍सा इस कथा में शामिल किया जाएगा, यह उसे भी नहीं पता । इस मामले में अन्तिम निर्णय 'स्‍टोरी डिपार्टमेण्‍ट' करेगा । मुझे यह देख कर बहुत अच्‍छा लगा कि इतनी कम उम्र में ही इस नौजवान को अपनी क्षमताओं की ही नहीं, अपनी सीमाओं की जानकारी भी इतनी स्‍पष्‍टता से है । इन क्षणों में आसिम मुझे एक समाचार चैनल का सम्‍वाददाता नहीं बल्कि अपनी समूची पीढी का प्राधिकृत-उत्‍तरदायी प्रवक्‍ता अनुभव हुआ ।



मैं दो बातों से अत्‍यधिक मुदित हूं । पहली तो यह कि मेरे गुरू रवि रतलामी अन्‍तरराष्‍ट्रीय समाचार चैनल पर नजर आएंगे । दूसरी बात यह कि इस महत्‍वपूर्ण काम में मैं मेरे गुरूजी के लिए सहायक बन पाया ।



मेरी प्रसन्‍नता का अनुमान लगाने का कष्‍ट करते हुए आप, इस समाचार कथा के प्रसारण के दिनांक की प्रतीक्षा भी कीजिएगा । युदि मुझे इस तारीख की सूचना पर्याप्‍त समय पहले मिली तो आप सबको खबर करूंगा ही । मुझ पर कृपा कीजिएगा और मेरे ब्‍लाग को देखते रहिएगा

19 comments:

  1. आपको और रवि जी को ढेर सारी बधाईयां विष्णु जी;
    रवि जी के ऊपर तो इतनी सारी मिठाईयां ड्यू होती जा रहीं हैं कि मुझे वसूली करने रतलाम ही जाना पड़ेगा.

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  2. बहुत ही खुशी की बात वह भी पुरे विस्तार से आपने बताई है. रविजी व आपको बहुत बहुत बधाई.

    बहुत मिठाई उधार हो गई है, यह बात एकदम सही है. वसुली के लिए रतलाम आना ही पड़ेगा :)

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  3. अरे! बैरागी जी, आपने तो मुझे उस विशाल वृक्ष पर चढ़ा दिया जिसे 'चना' कहते हैं. लगता है जब गिरूगा तो धरती सिर्फ हिलेगी ही नहीं, वो फट भी जाएगी.

    बहरहाल, बोरियत भरे पलों का इतना रोमांचक, मनोरंजक विवरण देना कोई आपसे सीखे. :)

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  4. पढ़ कर अच्छा लगा। हिन्दी चिट्टाकारी और आगे जायगी, यही आशा है।

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  5. गुरु-शिष्य दोनो आदरणीयों को बधाई!!

    मिठाई में हमारी भी हिस्सेदारी याद रहे।

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  6. रतलाम के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा. "मणीलाल झब्‍बालाल" की बात की है - सुभाष जैन और मणीलाल जैन के क्या हाल हैं?
    रवि रतलामी के साथ रतलामी सेव की बहुत याद आ रही है.

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  7. रवि जी को बधाई और आपको धन्यवाद ये हम तक पहुंचाने के लिए।

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  8. बहुत बहुत बधाईयाँ आप दोनों को।
    अंग्रेजी तो हमें भी नहीं आती पर हमारे वरिष्ठ साथी ( गुरु नहीं कहेंगे वरना रविजी गुस्सा करेंगे) रविजी को एक बार तो टीवी पर देख चुके अब आपने जिस तरह वर्णन किया है यह कार्यक्रम देखने की उत्सुकता बढ़ सी गई है। जरूर देखेंगे, आप हमें जल्दी से सूचित करियेगा।

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  9. एक तो अच्छा लगा यह जानकर कि अंग्रेज़ी चैनल CNN -IBN भी ऐसी story करने में रुचि रखते हैं.
    इंतज़ार रहेगा,
    रवि जी बधाई के पात्र है साथ ही बैरागी जी भी.

    पूरे कथानक की रिपोर्टिंग में तो मज़ा ही आ गया.

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  10. रवि जी को बहुत बहुत बधाई।
    कार्यक्रम का इंतजार रहेगा।

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  11. विवरण् बढि़या है। अब् रविरतलामी जी को किसी ट्रेनिंग् सेन्टर् में इंटरव्यू देना सीख लेना चाहिये। :)
    वैसे यह् कुछ् अटपटा सा है कि रविरतलामी आंचलिक् ब्लागर् के रूप् में जाने जायें। :)

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  12. रवि जी को बहुत बहुत बधाई। कार्यक्रम का इंतजार रहेगा।

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  13. गुरु-शिष्य दोनो को बधाई!!

    अनूपजी ने सही कहा है "वैसे यह् कुछ् अटपटा सा है कि रविरतलामी आंचलिक् ब्लागर् के रूप् में जाने जायें।"

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  14. रवि जी हमारे भी गुरु हैं पर वैसे ही जैसे द्रोणाचार्य एकलव्य के थे। :)

    रवि जी को बधाई, आपने पूरे संस्मरण का बहुत ही रोचक विवरण प्रस्तुत किया।

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  15. रवि जी के कथन से मैं पूरी तरह सहमत हूँ उन पलों का बैरागी जी ने सच में इतना रोमांचक, मनोरंजक तरह से विवरण किया, कि चहरे पर स्वतः ही मुस्कान आ गई. लेकिन उन पलों को मैंने बहुत एन्जॉय किया, और आप लोगों से मिल के बहुत अच्छा लगा.

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  16. रवि भैया की इस खबर से हम सभी गदगद हो उठे हैं। आपका वृत्तांत इतना मनोहर और सटीक था कि सारे दृश्य आँखों के सामने से गुज़र गये। अगर कोई बंधु इसका विडियो नेट पर डाल सके तो मज़ा आ जाये। रवि भैया को बधाई, आपने ब्लॉगजगत ही नहीं रतलाम का नाम भी रोशन किया है।

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  17. Hello Sir

    You have really caught the whole experience in words, full of spice like the Ratlami Sev :)

    Will surely confrim the day of the telecast very soon!!!\
    Cheers
    Aasim

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  18. Ravi ji ko badhai..
    aakhir voh hamare group ek channel me aane wale hain

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  19. आपको और रवि जी को बधाई ब्‍लॉगरों की दुनिया को नई ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए। रवि जी मेरे भी मित्र हैं। आपने बेहद सुंदर लिखा। रवि जी की स्‍टोरी मेरे मीडिया समूह के चैनल पर चलेगी यह जानकार खुशी हुई है। साधुवाद

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.