नेता की विश्वसनीयता आज की सर्वाधिक अनुपलब्ध ‘चीज’ है । बेशर्मी को गहना बना कर, सीनाजोरी की सीमा तक जाकर नेता किस तरह से सार्वजनिक रूप से झूठ बोलते हैं इसका ताजा उदाहरण इसी 25 जुलाई को, मन्दसौर जिले के छोटे से गाँव ‘बूढ़ा’ में सामने आया है ।
बूढ़ा, एक समृध्द गाँव है । कोई पचीस बरस पहले से ही इसे ‘ट्रेक्टर ग्राम’ का खिताब मिला हुआ है । इसकी आबादी पाँच हजार से कम ही है लेकिन यहाँ ट्रैक्टर ट्राली बनाने की तीस-पैंतीस ‘वर्क शाप’ हुआ करती थी । समृध्दि इस गाँव का पर्याय है । राजनीति इस गाँव में भी खूब होती है । समृध्दि ने इसे अतिरिक्त खाद-पानी दे रखा है । यहाँ के भाजपा कार्यकर्ताओं ने नागरिकों से धन-संग्रह कर, पण्डित दीनदयाल उपाध्याय की, वक्ष तक की मूर्ति (बस्ट) लगवाई । इसका अनावरण बाकी था । कोशिश की जा रही थी कि मुख्यमन्त्री के हाथों इसका अनावरण कराया जाए । इस हेतु, बूढ़ा भाजपा मण्डलाध्यक्ष अपने साथियों सहित एकाधिक बार भोपाल जाकर मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चैहान से मिल चुके थे लेकिन कोई तारीख तय नहीं हो पाई थी । सो, यह मूर्ति, गाँव के चैराहे पर कपड़े से बँधी खड़ी थी ।
मध्यप्रदेश में इन दिनों बिजली कटौती सरकार का सबसे बड़ा सरदर्द बनी हुई है । आम लोगों को तो छोड़िए, बिजली कम्पनी के अधिकारियों तक को पता नहीं कि बिजली कब आएगी और कब जाएगी । प्रदेश में, गाँव-गाँव में किसान और नागरिक सड़कों पर उतर रहे हैं । धरना, चक्का-जाम, घेराव, अधिकारियों की पिटाई और बिजली सब स्टेशनों को जलाने की घटनाएँ अखबारों की स्थायी सुर्खियाँ बनी हुई हैं ।
25 जुलाई को, उमा भारती की पार्टी, भारतीय जन शक्ति (भाजश) ने, बूढ़ा और आस-पास के कोई बीस गाँवों में हो रही बिजली कटौती के विरोध में, बूढ़ा में जंगी प्रदर्शन किया । प्रदर्शन के दौरान, प्रदर्शनकारियों की नजर, कपड़ों में लिपटी, उपाध्याय-प्रतिमा पर पड़ी और सर्वथा अनायोजित स्तर पर, आकस्मिक-अनपेक्षित रूप से, मूर्ति पर लिपटे कपड़े को पूरी तरह से फाड़कर, मूर्ति का अनावरण और लोकार्पण कर दिया । भाजश के कार्यकर्ताओं ने, मौके पर मौजूद ग्रामीणों के हाथों, मूर्ति को फूलमालाएँ पहना कर, अपनी कर्रवाई को अच्छे-खासे समारोह का रूप दे दिया । इस ‘जनता अनावरण-लोकार्पण समारोह’ को हजारों लोगों ने देखा भी और बार-बार तालियाँ बजाकर इसमे भागीदारी भी की । चूँकि समूचा प्रदर्शन पूर्व-घोषित और पूर्व आयोजित था, सो पुलिस और प्रशासन का भरपूर अमला भी मौके पर मौजूद था । उस समय ‘बूढ़ा भाजपा’ के तमाम पदाधिकारी और अधिकांश कार्यकर्ता, जिला मुख्यालय मन्दसौर में, मल्हारगढ़ विधानसभा क्षेत्र के भाजपा कार्यकर्ता सम्मेलन में भाग ले रहे थे । वहीं सबको इस घटना की जानकारी मिली तो हड़बड़ाहट और अफरातफरी मच गई ।
भाजपा कार्यकर्ता, मन्दसौर से लौटते उससे पहले ही सरकारी कारिन्दों ने मूर्ति को फिर से कपड़े में बाँध दिया । खिसियाए और असहाय भाजपाइयों ने कलेक्टर से शिकायत की और फिर अपना सार्वजनिक बयान प्रसारित किया कि मूर्ति का न तो अनावरण हुआ है और न ही लोकार्पण । इस हेतु विधिवत आयोजन जल्दी ही करने की बात भी इन नेताओं ने अपने बयान में कही ।
भाजश कार्यकर्ताओं द्वारा, उपाध्याय प्रतिमा के इस ‘जनता अनावरण-लोकार्पण समारोह’ के सचित्र समाचार अंचल के और स्थानीय अखबारों में विस्तृत रूप से और प्रमुखता से प्रकाशित हुए । हजारों लोगों ने मौके पर इस घटना को देखा, तालियाँ बजाईं । लेकिन बूढ़ा के तमाम भाजपा नेता ऐसा कुछ भी होने से इंकार कर रहे हैं । सामने तो कोई कुछ भी नहीं बोल रहा, लेकिन पीठ पीछे लोग भाजपाइयों की खिल्ली उड़ा रहे हैं और हकीकत को झुठलाने के लिए उन्हें ‘झूठों का सिरमौर’ तक कह रहे हैं । ऐसे प्रसंग पर लोग वह सब कह-कह कर मजे ले रहे हैं जिसकी कल्पना आप-हम आसानी से कर सकते हैं । लेकिन भाजपाइयों पर किसी बात का असर नहीं हो रहा है । वे ऐसी कोई घटना होने से बार-बार इंकार कर रहे हैं ।
यहाँ मुझे, माधवराव सिन्धिया का एक किस्सा याद आ रहा है । तब वे रेल राज्य मन्त्री थे । रतलाम में, सैलाना मार्ग पर रेल्वे-ओवर ब्रिज बन चुका था लेकिन उद्घाटन समारोह आयोजित करने के चक्कर में उसे चालू नहीं किया जा रहा था । लोगों को अत्यधिक कठिनाई और असुविधा हो रही थी लेकिन कांग्रेसी और रेल अधिकारी आँखें मूँदे, उद्घाटन समारोह आयोजित करने की जिद पर अड़े हुए थे । लोगों ने, छुट-पुट स्तर पर ओवर ब्रिज का उपयोग शुरू कर दिया था । देखा जाए तो पुल पर आवागमन की शुरूआत हो चुकी थी । लेकिन ‘आलंकारिक समारोह’ तो बाकी ही था ।
ऐसे में, रतलाम नगर विधान सभा क्षेत्र के विधायक हिम्मत कोठारी एक शाम अपने कुछ कार्यकर्ता साथियों के साथ पहुँचे और पुल का ‘जनता-लोकार्पण’ कर दिया । (तब वे प्रतिपक्ष के विधायक थे और आज वे प्रदेश के गृह तथा परिवहन मन्त्री हैं ।) पेरशान लोग तो उतावले बैठे, पुल की शुरूआत की प्रतीक्षा कर रहे थे । रतलाम के कांग्रेसियों को यह हरकत नागवार तो गुजरी लेकिन वे कर ही क्या सकते थे ? मन मारकर, चुप बैठे रहे । किसी ने कोई वक्तव्य जारी नहीं किया और पुल के ‘जनता-लोकार्पण’ को स्वीकार कर लिया ।
लेकिन कुछ लोगों ने फिर भी सिन्धिया से सम्पर्क कर न केवल शिकायत की बल्कि ओवर ब्रिज के लोकार्पण समारोह का आग्रह भी किया । तब सिन्धिया ने जो कुछ कहा था उसका मतलब था कि पुल के लोकार्पण में अकारण देरी करना अपने आप में गलती थी । अब यदि लोकार्पण समारोह करेंगे तो यह मूर्खता होगी । सो, उस पुल का कोई औपचारिक और विभागीय लोकार्पण नहीं हुआ । परिणाम यह हुआ कि लोग, कोठारी के ‘जनता-लोकार्पण’ को तो भूल गए और सिन्धिया की यह समझदारी लम्बे समय तक याद रखे रहे । चुप रहकर सिन्धिया ने न केवल समझदारी दिखाई बल्कि खुद को, अपने विभाग और अपनी पार्टी को जग हँसाई से भी बचा लिया ।
बहुत सही व्यंग्य है। बधाई
ReplyDeleteइन नंगो कॊ कोई फ़र्क नही पडता साले सब नगे हे,ओर सभी साथी हे एक दुसरे के, आप ने अच्छे तीर मारे हे व्यंगो के, धन्यवाद
ReplyDeletebairagi sir,
ReplyDeletebeeti baaten padhkar vapas tarotajaa ho aai.
ek asptaal chandragarh me bana hai
dinesh jain aur me dono hi yahan aate jaate rahe hain. shri jain iske thekedaar rahe hai.
badi kathi paristhitiyon me yahan nirmaan huaa hai.
aadivasi kshetra ka yah asptaal bane 6 mah ho gaye hai aur yah baat dekh rahaa hai udghatan ki.
rajeshghotikar.blogspot.com
लगता है पुल बनाए ही उदघाटन के लिए जाते हैं जन सुवि्धा के लिए नहीं।
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