अभी-अभी, भैया साहब (श्रीसुरेन्द्र कुमारजी छाजेड़) से बात हुई । वे इन्दौर स्थित सीएचएल अपोलो अस्पताल के कमरा नम्बर 210 से बोल रहे थे । 27 जुलाई रविवार को उन्हें वहां भर्ती कराया गया था, 28 को उनकी एंजियोप्लास्टी हुई । दो-एक दिन बाद उन्हें वहां से छुट्टी मिल जाएगी ।
उन्होंने तो नहीं बताया लेकिन उनके आस-पास से मालूम पड़ा कि वे जब घर लौटेंगे तब तक कोई दो लाख रुपयों का भुगतान कर चुके होंगे । यह आंकड़ा सुनकर मुझे पसीना आ गया । पता नहीं, उनके परिजनों ने कैसे इस रकम की व्यवस्था की होगी ?
भैया साहब ने बताया कि जब वे गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में थे, तब वहां पलंग प्राप्ति के लिए मरीजों की कतार लगी हुई थी । इसी तरह, भैया साहब को, आईसीयू से कमरे में शिफ़ट होने के लिए चैबीस घण्टे प्रतीक्षा करनी पड़ी क्यों कि कोई कमरा खाली नहीं था । कम से कम तीन सितारा व्यवस्थाओं वाले इस अस्पताल में कमरों की संख्या तो मुझे नहीं पता लेकिन आईसीयू में 30 बिस्तरों की व्यवस्था है । इससे वहां कमरों की संख्या का अनुमान आसानी से लगाया जा लगाया है ।
मेरे परिचित तीन परिवार, गर्मी की छुट्टियों में हरिद्वार गए थे । तीनों ही परिवार, तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारियों के हैं । तीनों परिवार अलग-अलग गए थे और अलग-अलग लौटे । वे लौटे तो उनके हालचाल पूछने गया । तीनों ने बताया कि इस बार उन्हें हरिद्वार में धर्मशालाओं में जगह मिलने में काफी कठिनाई हुई । यह विचित्र संयोग ही रहा कि तीनों परिवारों को, अलग-अलग धर्मशालाओं में कमरे पाने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ी ।
हम बीमा एजेण्टों को, बीमा व्यवसाय का एक निर्धारित स्तर प्राप्त करने के बाद, भारतीय जीवन बीमा निगम प्रबन्धन, यात्रा खर्च में 10 हजार रुपयों तक की सुविधा उपलब्ध कराता है । इस सुविधा के पात्रताधारी चार एजेण्ट, अपनी-अपनी जीवनसंगिनियों के साथ कोलकाता गए थे । वहां उन्हें मध्यम दर्जे के होटलों में जगह प्राप्त करने के लिए घण्टों घूमना पड़ा और उसके बाद कमरे मिले भी तो किराया तो भरपूर था लेकिन सुविधाएं उसके अनुरूप नहीं थीं।
तीनों अनुभव मुझे उलझन में डाल रहे हैं । एक ओर, मुंहमांगी कीमत देने के बाद भी जगह नहीं मिल रही है तो दूसरी ओर धर्मशालाओं के लिए भी प्रतीक्षा करनी पड़ रही हैं । चित्र का तीसरा आयाम तो हताशाजनक है ही - देश की 70 प्रतिशत से अधिक की आबादी मात्र 20 रुपये रोज पर जीवन-यापन करने को विवश है ।
हमारे देश की यह कौन सी तस्वीर है ?
चित्र का तीसरा आयाम तो हताशाजनक है ही - देश की 70 प्रतिशत से अधिक की आबादी मात्र 20 रुपये रोज पर जीवन-यापन करने को विवश है ।
ReplyDeleteहमारे देश की यह कौन सी तस्वीर है
"सच मे बहुत ही दयीनीय और वीचार्नीय है"
तस्वीर तो भयानक है ही, इसके और भी बदहाल होने के पूरे आसार हैं, जो आँकड़ेबाज भारत की जनसंख्या को उसकी ताकत बता रहे हैं, वे अगले कुछ सालों में अपनी धारणा खुद ही चबाने लगेंगे… जब खेती कम हो रही हो और बच्चे लगातार पैदा हो रहे हों तब हर जगह मारामारी मचना ही है… हर किसी को लाखों की नौकरी नहीं मिलती, न ही हर कोई विदेश जा सकता है… ये समस्या तो और भी गहराती जायेगी, जब तक जनसंख्या का प्रबन्धन सही नहीं होगा…
ReplyDeleteदेश प्रगति कर रहा है सर?
ReplyDeleteमैं नहीं कहता हमारे सरकारी आंकड़े कहते है.
अजीब बात है, न पैसा वाला खुश, न गरीब..
ReplyDeleteganimaat hai jee to rahe hain.warna kisaan to aatmahatya karne lag gaye hain.bharat ki sahi tasweer khinchane ke liye badhai
ReplyDeleteभाई साहब। यह व्यवस्था असफल होने के कगार पर है। टूटी नाव की तरह। मजबूर यूं हैं कि टूटी नाव बरसों से मरम्मत कर काम चला रहे हैं। लकड़ी भी है, उसे काट लाने वाले भी। मजूर भी मिल जाएंगे नई नाव बनाने को, लेकिन समस्य़ा ये हैं कि बढ़िया इंजिनियर नहीं है जो नयी नाव डिजाइन कर सके।
ReplyDeleteअब इंतजार है उस घड़ी का जब यह नाव मरम्मत से इन्कार कर दे या फिर किसी दिन डूब ही जाए। तब मजबूरी में जैसी तैसी नई बनानी ही पड़ेगी। डूब गई तो नुकसान बहुत होगा। एक गाँधी बाबा कहाँ से लाएँगे?
बहुत कुछ सोचने पर विवश करती आपकी पोस्ट.सवाल ढेर सारे हैं,जवाब नदारद.
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