पागलों ने ही इतिहास बनाए हैं

अखबारों और पत्र/पत्रिकाओं में आए दिनों कभी ‘हिंगलिश’ के पक्ष में सीनाजोरी से दिए तर्क सामने आते हैं तो कभी हिन्दी के पक्ष में, गाँव-खेड़ों, कस्बों से उठते एकल स्वर सुनाई देते हैं। सीनाजोरी का विरोध करने और एकल स्वरों में अपना स्वर मिलाने को मैंने अपनी फितरत बना रखी है ताकि सीनाजोरों की निर्द्वन्‍द्वता, नाम मात्र को ही सही, बाधित हो और एकल स्वरों को अकेलापन न लगे। ऐसे सैंकड़ों पत्र मैंने लिखे किन्तु उनका कोई रेकार्ड नहीं रखा। आज अचानक ही विचार आया कि इन पत्रों का रेकार्ड रखा जाना चाहिए। इसीलिए इन पत्रों को आज से अपने ब्‍लॉग पर पोस्ट करना शुरु कर रहा हूँ। ये मेरे ब्‍लॉग की पोस्टों में शरीक नहीं हैं। मैं जानता हूँ इनकी न तो कोई सार्वजनिक उपयोगिता है और न ही महत्व। यह जुगत मैंने केवल अपने लिए की है।



05 सितम्बर 2010, रविवार
भाद्रपद कृष्ण द्वादशी, 2067

माननीय श्रीयुत श्रीमालजी,

सविनय सादर नमस्कार,

कल, 04 सितम्बर 2010, शनिवार के ‘नईदुनिया’ में, आपका, ‘माँ के सम्मान में शर्म कैसी?’ शीर्षक पत्र पढ़ा।

पत्र भले ही आपका है किन्तु बातें सब मेरे मन की हैं। पत्र पढ़कर पहली बात जो मन में आई, वह थी - ‘काश! इस पत्र में, अरविन्द श्रीमाल के नाम के स्थान पर मेरा नाम लिखा होता।’

कृपया हिन्दी के प्रति अपनी इन भावनाओं को न केवल बनाए रखें अपितु पागलपन की हद तक बनाएँ। इश्क में पागल हुए लोगों ने ही इतिहास बनाए हैं।

आज ही लिखे मेरे दो पत्रों की प्रतिलिपियाँ संलग्न हैं। अनुमान है कि आपको न केवल भला लगेगा अपितु यह भरोसा भी होगा कि इस लड़ाई में आप अकेले नहीं हैं।

बिना थके, अविराम यात्रा की मंजिल तक पहुँचने की शुभ-कामनाएँ स्वीकार करें। ईश्वर आपके प्रयत्नों को सफलता अवश्य प्रदान करेगा।

धन्यवाद।

विनम्र,
विष्णु बैरागी

संलग्न-उपरोक्तानुसार।

प्रतिष्ठा में,
श्रीयुत अरविन्दजी श्रीमाल,
22/1, शक्कर बाजार,
इन्दौर
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इस पत्र में उल्‍लेखित दो पत्र ये हैं -

‘माता’ कभी ‘सुमाता’ या ‘कुमाता’ नहीं होती


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आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने हेतु मैं प्रस्तुत हूँ। यदि अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे bairagivishnu@gmail.com पर मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।

यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर - 19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.

2 comments:

  1. तीनों पत्र पढ़े, आपके इस प्रयास को सलाम!!

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  2. <>कृपया हिन्दी के प्रति अपनी इन भावनाओं को न केवल बनाए रखें अपितु पागलपन की हद तक बनाएँ। इश्क में पागल हुए लोगों ने ही इतिहास बनाए हैं।

    सही कहा आपने!

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