अखबारों और पत्र/पत्रिकाओं में आए दिनों कभी ‘हिंगलिश’ के पक्ष में सीनाजोरी से दिए तर्क सामने आते हैं तो कभी हिन्दी के पक्ष में, गाँव-खेड़ों, कस्बों से उठते एकल स्वर सुनाई देते हैं। सीनाजोरी का विरोध करने और एकल स्वरों में अपना स्वर मिलाने को मैंने अपनी फितरत बना रखी है ताकि सीनाजोरों की निर्द्वन्द्वता, नाम मात्र को ही सही, बाधित हो और एकल स्वरों को अकेलापन न लगे। ऐसे सैंकड़ों पत्र मैंने लिखे किन्तु उनका कोई रेकार्ड नहीं रखा। 5 सितम्बर को अचानक ही विचार आया कि इन पत्रों का रेकार्ड रखा जाना चाहिए। इसीलिए इन पत्रों को 5 सितम्बर से अपने ब्लॉग पर पोस्ट करना शुरु कर दियाँ। ये मेरे ब्लॉग की पोस्टों में शरीक नहीं हैं। मैं जानता हूँ इनकी न तो कोई सार्वजनिक उपयोगिता है और न ही महत्व। यह जुगत मैंने केवल अपने लिए की है।
13 सितम्बर 2010, सोमवार
भाद्रपद शुक्ल षष्ठमी, 2067
माननीया रेखाजी,
सविनय सादर नमस्कार,
एक परिवार में बीमे की बात करने पहुँचा तो वहाँ, ‘नईदुनिया’ के कल, 12 सितम्बर 2010, रविवार के अंक में 'सारी किताबें अँग्रेजी में हैं' शीर्षक के अन्तर्गत आपकी टिप्पणी पढ़ी। यह जानकर आत्मीय प्रसन्नता हुई कि आप हिन्दी के बारे में सोचती हैं और हिन्दी की चिन्ता करती हैं।
आपकी टिप्पणी के इस अंश ने मेरा ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया - ‘यदि सभी चिकित्सक एकमत होकर दवाइयों के पर्चे हिन्दी में लिखने पर सहमति व्यक्त करें तो मुझे अपने पर्चे हिन्दी में लिखने में कोई आपत्ति नहीं है।’ आपकी इस बात से यह तो प्रकट है कि आप हिन्दी में अपने पर्चे लिखना चाहती हैं और लिख सकती हैं किन्तु चाहती हैं कि इसकी शुरुआत कोई और करे या फिर हिन्दी में पर्चे लिखनेवाली आप अकेली न रहें।
आपकी यह मनःस्थिति कहीं न कहीं हिन्दी का मूल संकट ही उजागर करती है। अपने दैनन्दिन जीवन-व्यवहार में हिन्दी के उपयोग को लेकर हम लोग अकारण ही हीनता बोध से ग्रस्त हैं, यही तथ्य आपकी उक्त बात से प्रकट होता है।
आपके डॉक्टरी पेशे में कई बातें ऐसी होंगी जो शाजापुर के अन्य डॉक्टर प्रयुक्त नहीं करते होंगे। इसी प्रकार अन्य डॉक्टरों की कई बातें ऐसी होंगी जिन्हें आप व्यवहार में नहीं लाती होंगी। कुछ बातों में आप अन्य डॉक्टरों से अलग होंगी तो कुछ बातों में अन्य डॉक्टर आपसे अलग होंगे। हिन्दी में अपने पर्चे लिखनेवाली बात भी ऐसी बात हो सकती है जो आपको शाजापुर के समस्त डॉक्टरों से अलग करे।
दो बातें तो तय हैं - पहली यह कि हम अतीत की मरम्मत नहीं कर सकते। और दूसरी यह कि हमारा नियन्त्रण केवल हम तक ही सीमित है। दूसरों पर हमारा कोई नियन्त्रण सम्भव नहीं। और तो और, हमारे जीवन साथी पर भी हमारा नियन्त्रण सम्भव नहीं। ऐसे में, अब तक जो हो गया है, उस पर विचार किए बिना यह तय करना ही श्रेयस्कर और बुद्धिमानी होगी कि अब हमें क्या करना है। और चूँकि हमारा नियन्त्रण किसी और पर सम्भव नहीं, इसलिए जो भी करना है, हमें ही करना है।
इसलिए मेरा आपसे करबद्ध अनुरोध है कि कृपया अपने पर्चे हिन्दी में लिखने के विचार को तुरन्त अमल में लाना शुरु कर दें। यह श्रेयस्कर शुरुआत आप अविलम्ब ही कर दें। यह श्रेय अपने खाते में जमा करने में पल भर भी देर मत कीजिए। बाकी लोगों की प्रतीक्षा में आप, हिन्दी के स्वाभिमान को लौटाने के नेक काम को विलम्बित बिलकुल मत कीजिए। इस मामले में आप हिन्दी का ‘शकुन पक्षी’ बनने का ऐतिहासिक अवसर मत गँवाइए। आप शुरुआत करेंगी तो कुछ दिनों बाद पाएँगी कि शाजापुर के बाकी डॉक्टर आपके पद चिह्नों पर चल रहे हैं। हिन्दी में पर्चे लिखने के कारण आपको आपके मरीजों का (और दवाई दुकानदारों का) अतिरिक्त विश्वास प्राप्त होगा। आपकी लोकप्रियता ही नहीं, आपकी विश्वसनीयता भी बढ़ेगी। आपकी टिप्पणी के साथ ही प्रकाशित श्री अशोक गुप्ता की टिप्पणी से भी मेरी बात को बल मिलता है।
हिन्दी हमारी ताकत है, कमजोरी नहीं। यह अलग बात है कि हमने अपनी कमजोरी को हिन्दी की कमजोरी बना रखा है। कोई भी भाषा कमजोर नहीं होती। सो, हिन्दी को कमजोर, अक्षम अथवा असमर्थ समझना खुद पर ही अविश्वास करना है।
यदि अकादमिक गतिविधियों में आपकी रुचि हो और आपको समय मिल पाता हो तो मेरा आपसे अनुरोध है कि चिकित्सा-शिक्षा की पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद करने पर भी विचार अवश्य कीजिएगा। किन्तु इसके समानान्तर यह सावधानी भी बरतिएगा कि ‘अनुवाद’ के नाम पर हिन्दी असहज, अप्राकृतिक और क्लिष्ट न हो जाए। जहाँ भी अँग्रेजी शब्द प्रयुक्त करना आवश्यक अनुभव हो, वहाँ बेझिझक अँग्रेजी शब्द प्रयुक्त करें। ‘शुद्धतावाद का दुराग्रह’ हिन्दी का भला नहीं करेगा।
आपके लिए दो आलेखों की फोटो प्रतियाँ संलग्न कर रहा हूँ। विश्वास है, दोनों आलेख आपका आत्म बल बढ़ाने मे सहायक होंगे।
मेरे इस पत्र में आपको यदि कोई भी बात, कोई भी उल्लेख अनुचित, आपत्तिजनक, अन्यथा, अपमानजनक अनुभव हो तो उसके लिए मैं आपसे, अपने अन्तर्मन से करबद्ध क्षमा याचना करता हूँ।
ईश्वर आपको यशस्वी बनाए और आप हिन्दी की पहचान बनें।
हार्दिक शुभ-कामनाओं सहित।
विनम्र,
विष्णु बैरागी
संलग्न-उपरोक्तानुसार 2.
प्रतिष्ठा में,
माननीया डॉक्टर रेखाजी जारवाल,
स्त्री एवम् प्रसूति रोग विशेषज्ञ,
शाजापुर - 465001
पत्र के साथ भेजे गए आलेख -
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आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने हेतु मैं प्रस्तुत हूँ। यदि अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे bairagivishnu@gmail.com पर मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।
यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें । यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें । मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर - 19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.
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