आपकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है


26 सितम्बर 2010, रविवार
आश्विन कृष्ण तृतीया, 2067

माननीय श्रीयुत गुप्ताजी,

सविनय सादर नमस्कार,

‘साप्ताहिक डिम्पल’ में आपके, दोहा (कतर) विदेश यात्रा के संस्मरण पढ़ रहा हूँ। कल की डाक से ‘डिम्पल’ का, 24 सितम्बर वाला अंक मिला। उसी मे आपके संस्मरणों की दूसरी किश्त पढ़ी। संस्मरणों में जानकारियाँ प्रचुर और महत्वपूर्ण तो हैं ही, रोचक भी हैं। आपके अन्दर एक अच्छा लेखक मौजूद है। अभिनन्दन।

एक महत्वपूर्ण बात की ओर आपका ध्यान आकर्षित कर रहा हूँ। अपने लेखन में आप अंगे्रजी शब्दों के बहुवचन रूप प्रयुक्त कर रहे हैं। ‘डिम्पल’ के 24 सितम्बर वाले अंक में छपी दूसरी किश्त में आपने ‘ब्लाक्स’, ‘कॉल्स’, ‘इंजिनियर्स’, ‘ड्रायफ्रूट्स’ और ‘टेलीफोन्स’ प्रयुक्त किए हैं। यह भाषा और व्याकरण के सन्दर्भ न तो उचित है और न ही अनुमतेय।

दुनिया की प्रत्येक भाषा के व्याकरण का यह सामान्य नियम है कि जब भी कोई शब्द अपनी मूल भाषा से अन्य भाषा (इतर भाषा) में जाता है तो उस पर उसकी मूल भाषा का व्याकरण लागू नहीं होगा। उस पर उस ‘अन्य भाषा’ (इतर भाषा) का व्याकरण लागू होगा जिस भाषा में वह जा रहा है।

अंग्रेजी में हिन्दी के डोसा, समोसा, साड़ी जैसे अनेक शब्द समाहित कर लिए गए हैं। अंग्रेजी में जब ये शब्द प्रयुक्त किए जाते हैं तो वे उनके अंग्रेजी बहुवचन स्वरूप (‘डोसास’, ‘समोसास’, ‘सारीज’) में काम में लिए जाते हैं, उनके हिन्दी बहुवचन स्वरूप (डोसे, समोसे, साड़ियाँ) में नहीं। इसीलिए हिन्दी में कारें, बसें, रेलें, सिगरेटें, माचिसें, टिकिटें आदि प्रयुक्त किए जाते हैं, कार्स, बसेस, रेल्स, सिगरेट्स, माचिसेस, टिकिट्स आदि नहीं।
इसी तर्ज पर आपके लेख में ‘ब्लाक’ (ब्लाकों), ‘कॉल’, ‘इंजिनियर’ (इंजिनियरों), ‘ड्रायफ्रूट’, ‘टेलीफोन’ (टेलिफोनों) प्रयुक्त किए जाने चाहिए थे। आप तनिक कष्ट उठा कर, संस्मरणों की दूसरी किश्त में वापरे गए अंग्रेजी बहुवचन स्वरूपवाले शब्दों के अन्त में लगाए गए अंग्रेजी के ‘एस’ को हटा कर पढ़िएगा। आप पाएँगे कि अर्थ में कहीं अन्तर नहीं आता।

हिन्दी इन दिनों गम्भीर संकट से गुजर रही है। इसके स्वरूप का शील भंग तो किया ही जा रहा है, इसके व्याकरण को भी भ्रष्ट किया जा रहा है। आपके लिखे को पढ़कर बच्चे उसकी नकल करेंगे। इसलिए, मेरे विचार में, आपकी जिम्मेदारी तनिक अधिक बढ़ जाती है।

इसलिए आपसे मेरा साग्रह, सानुरोध, करबद्ध निवेदन है कि कृपया तनिक अधिक सतर्क होकर हिन्दी लेखन करें। हिन्दी हमें रोटी दे रही है, नाम दे रही है, पहचान दे रही है, हैसियत दे रही है। बदले में हम हिन्दी को यदि कुछ दे न पाएँ तो इतना तो कर ही सकते हैं कि उसे नुकसान नहीं पहुँचाएँ।

सम्भव है, मेरी बातें आपको अप्रिय, अनुचित, अनावश्यक, आपत्तिजनक लगें। यदि ऐसा हो तो मैं आपसे करबद्ध क्षमा याचना करता हूँ। किन्तु यह करते हुए भी अपना आग्रह दोहराता हूँ।

अपने हिन्दी लेखन से आप यशस्वी बनें और हिन्दी आपके कारण पहचानी जाए।

इन्हीं शुभ कामनाओं सहित।

विनम्र,
विष्णु बैरागी

प्रतिष्ठा में,
श्रीयुत राम शंकरजी गुप्ता,
सेवा निवृत्त डिप्टी कलेक्टर,
द्वारा - साप्ताहिक डिम्पल,
डिम्पल चौराहा,
शामगढ़ - 458883
(जिला - मन्दसौर)


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