नहीं अण्णा! 16 से अनशन बिलकुल नहीं

सरकार द्वारा ‘अच्छा लोकपाल विधेयक’ प्रस्तुत न करने की दशा में, 16 अगस्त से, अण्णा के अनशन पर बैठने का निर्णय, अण्णा-समूह को, निम्नांकित कुछ ‘जग जाहिर’ कारणों से, फिलहाल स्थगित कर देना चाहिए -


- चार जुलाई की सर्वदलीय बैठक में यह बात साफ हो गई है कि जिन 6 मुद्दों पर अण्णा-समूह और केन्द्र सरकार में असहमति बनी हुई है, उनमें से, कम से कम 5 मुद्दों पर लगभग सारे के सारे दल, केन्द्र सरकार के साथ हैं। केवल, लोकपाल के दायरे में प्रधानमन्त्री को लाए जानेवाले (एक ही) मुद्दे पर कुछ दल सहमत हैं।

- यह भी साफ है कि ‘अच्छे लोकपाल विधेयक’ की बात करनेवाली काँग्रेस और केन्द्र सरकार वैसा विधेयक तो नहीं ही लाएगी जैसा कि अण्णा-समूह चाहता है।


- कोई भी (एक भी) दल, उस मसविदे के शब्दशः समर्थन में नहीं है जो अण्णा-समूह ने प्रस्तुत किया है।

- रोचक, विसंगत और हास्यास्पद बात यह है कि भाजपा सहित प्रत्येक राजनीतिक दल ‘मजबूत लोकपाल विधेयक’ की बात तो कर रहा है किन्तु कोई भी नहीं बता रहा कि ‘मजबूत लोकपाल विधेयक’ से उसका आशय क्या है।


- जाहिर है, प्रत्येक राजनीतिक दल इसकी आड़ में अपनी-अपनी राजनीति रोटियाँ सेकने की सुविधा अपने पास सुरक्षित रख रहा है।

- यदि इन सबकी नीयत साफ है तो ये सब, ‘मजबूत लोकपाल विधेयक’ की अपनी-अपनी व्याख्या स्पष्ट क्यों नहीं कर रहे?


- जाहिर है कि इनमें से कोई भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई के लिए गम्भीर और ईमानदार नहीं है। राष्ट्रहित की रक्षा और भ्रष्टाचार का विरोध इनका लक्ष्य बिलकुल ही नहीं है।

- केन्द्र सरकार और काँग्रेस की मजबूरी नहीं होती तो वह भी अपने मसविदे के मुख्य बिन्दु सार्वजनिक नहीं करती।


- हम सबको भले ही बुरा लगे और हमें चिढ़ छूटे, यह बात तो सच है कि बड़बोले सिब्बल समेत तमाम सत्ताधारियों ने, विधेयक को मानूसन सत्र में प्रस्तुत करने की बात कही थी। इसी सत्र में पारित कराने की बात तो किसी ने, कभी नहीं कही।

- ऐसे में (जबकि एक भी दल, अण्णा-समूह के ‘जन लोकपाल मसविदे’ के शब्दशः समर्थन में नहीं है) सामान्य समझ वाला प्रत्येक आदमी भली प्रकार जानता-समझता है कि सरकार तो वही मसविदा प्रस्तुत करेगी जो उसे (और तमाम राजनीतिक दलों को) अनुकूल तथा सुविधाजनक होगा।


- इस मसविदे के आधार पर यदि अण्णा 16 अगस्त से अनशन पर बैठ गए तो तमाम राजनीतिक दल, अण्णा का नाम लेकर, अण्णा की दुहाई दे-दे कर सरकार की खटिया खड़ी करके अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेकने में लग जाएँगे।

- इस स्थिति में, अण्णा पर यह आरोप चस्पा कर दिया जाएगा कि वे सरकार के विरोध में, विरोधी दलों के हाथों में खेल रहे हैं।


- सरकार यही चाहती है कि अण्णा के अभियान को विरोधी दलों का अभियान साबित घोषित कर दिया जाए।

- अण्ण-समूह, सरकार की यह ‘शुभेच्छा’ पूरी होनेे का सुनहरा मौका उपलब्ध न कराए।


- अच्छा होगा कि, सरकारी प्रस्ताव पर, संसद में बहस होने दी जाए। तब प्रत्येक राजनीतिक दल के पत्ते जाजम पर सामने आ जाएँगे।

- तब हम भौंचक्के होकर देखेंगे कि वे तमाम लोग, जो आज अण्णा की आड़ लेकर सरकार और काँग्रेस पर हमला कर रहे हैं, ‘अण्णा-लाइन’ के बजाय ‘पार्टी लाइन’ पर बोल रहे हैं।


- इसके बाद ही अण्णा-समूह की ‘मूल पूँजी’ सामने आ सकेगी।

- पूरा चित्र स्पष्ट होने के बाद ही अगले कदम के बारे में विचार किया जाना बेहतर और श्रेयस्कर होगा।


- इसलिए, इस क्षण तो यही उचित अनुभव हो रहा है कि 16 अगस्त से, अण्णा के अनशन पर बैठने के निर्णय को, अण्णा-समूह स्थगित करे।

लगे हाथों कुछ बातें और।


- यह स्पष्ट है कि अण्णा-समूह वाला प्रस्तावित ‘जन लोकपाल मसविदा’ भी यदि शब्दशः लागू हो जाए तो भी इस देश से भ्रष्टाचार मिटेगा नहीं। ‘लोकपाल’ कैसा भी हो, वह भ्रष्टाचार हो जाने के बाद ही हरकत में आ सकेगा। याने, ‘लोकपाल’ भ्रष्टाचार की जड़ो पर प्रहार नहीं करता। वह तो भ्रष्टाचार की फुनगियों की छँटाई मात्र करता है।

- ऐसे में, भ्रष्टाचार को जड़ों से नष्ट करने के लिए, चुनाव सुधारों सहित अन्य उपायों पर ध्यान देना और उन्हें लागू कराना अनिवार्य होगा।


- ‘मजबूत लोकपाल मसविदे’ के साथ-साथ इन ‘अन्य उपयों’ पर भी अभी से विचार शुरु करना श्रेयस्कर होगा।

7 comments:

  1. राजनीति में भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार की राजनीति

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  2. बात सही है. इस देश का लोकपाल महाभ्रष्ट हो जाएगा.
    सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश महोदय और उनके परिवार की भ्रष्ट संपत्ति के समाचार तो जब तब छपते ही रहते हैं !

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  3. हमारा उद्देश्य बिल संसद में लाना था, वह किस प्रकार होगा यह तो चोर-चोर सोंच लें कि चोरी करे और पकडे भी न जाय, ऐसा कानून बने:)

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  4. आप से सहमत हूँ। जनलोकपाल बिल को कानून बनाने के लिए पहले जन की ताकत एकजुट करने की जरूरत है।
    भारत के गावों की 72% जनता में से कितनी अण्णा के आंदोलन के साथ है?

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  5. "ek chidiya se mukya mantri har gaya" aap ka blog padha .. yahan ek Anna se poora desh haar gaya.kya ruling party kya opposition aur kya is desh ke buddhijivi.. sab ke sab keval "politically correctness " ke maare hai...Anna ne kabhi nahi kaha ke ek lokpal sab kuch fix kar dega .. ek shuruaat to hai... uski kyo "bhroon hatya key jaye"..

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  6. SARKARI BILL,par Sansad me bahas hogi to hi dusri Partyo ki asliyat ujagar hogi, Aisa kyo ??? ulta Jabki Asli Lokpal bill Sarkar Sansad me rkhegi aur us par bahas hogi to hi sabki pol khulegi, sarkari bill ko to sabhi Party man legi.
    agar mujhe ratlam me dukan par kachori khane jana he to me paise pehle hi ghar se mang kar le jaunga, ya ki pehle dukan par sidhe jaunga dekunga ki bani ki nahi fir wapas ghar aaunga phir paise le kar dukan par jaunga.........

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  7. aur mujhe lagta he ki dusre Rajnitik dal is mudde par kya kar rahe he kya nahi kar rahe he, is par Anna ji ko un partiyo ke piche lagana, keval is Andolan ko kamjor karne me Sarkar ka sath dena jaisa hoga

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