मैं जयललिता को बधाई और धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने तमिलनाडु में विधान परिषद् के गठन का निर्णय निरस्त कर दिया। इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि मैं जयललिता की राजसी जीवन शैली, उनकी मनमानी और उनके भ्रष्टाचार का समर्थन कर रहा हूँ। भली प्रकार जानता हूँ उन्होंने यह निर्णय जनता की भलाई के लिए नहीं, करुणानिधि से प्रतिशोध लेने और उन्हें नीचा दिखाने के लिए लिया है। किन्तु अन्ततः इससे, जन-धन की स्थायी रूप से होने वाली हानि रुकेगी और तमिलनाडु के लोगों को एक विधायी सदन में होनेवाली राजनीतिक नौटंकियों से मुक्ति मिलेगी।
राज्य सभा और विधान परिषदें अपनी मूल अवधारणा खो चुकी हैं और आज ये संस्थाएँ राजनीतिक तुष्टिकरण और अपनेवालों को लाभान्वित करने का माध्यम बन कर रह गई हैं। इनके गठन का मूल लक्ष्य पूरी तरह से परास्त कर दिया गया है।
इन विधायी सदनों की परिकल्पना इसलिए की गई थी कि देश को, अपने-अपने क्षेत्र के उन विशेषज्ञों और विद्वानों का योगदान मिल सके जो चुनाव लड़ने की और जीतने की कला नहीं जानते या जो चुनावी राजनीति से दूर रहते हैं। किन्तु आज वैसा लेश मात्र भी नहीं है। राज्य सभा अब राज्य सभा नहीं रह गई है। आज तो वहाँ, मतदाताओं द्वारा नकारे गए लोग नजर आते हैं। सारी दुनिया जानती है कि प्रधानमन्त्री मनमोहनसिंह दिल्ली के निवासी हैं किन्तु राज्य सभा में वे असम का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। ऐसा यह इकलौता उदाहरण नहीं है। तमाम राजनीतिक दल इस पाखण्ड को निभाए जा रहे हैं। हमें भी कहाँ अन्तर पड़ रहा है?
कहते हैं कि भगवान गंजे को नाखून नहीं देता। अच्छा हुआ जो मुझे वे अधिकार और शक्तियाँ नहीं मिली हैं जिनके दम पर मैं ‘कुछ’ कर पाता। तब मैं, राज्य सभा और विधान परिषदों को उनके मूल स्वरूप् में ले आता और यदि ऐसा नहीं कर पाता तो फिर इन सबको स्थायी रूप से भंग कर देता।
नाखूनों के साथ आपको और अस्त्र-शस्त्र भी मिलने चाहिये थे:)
ReplyDeleteउम्दा इरादे हैं आपके।
आपकी निसंदेह अच्छी नीयत (नियत नहीं).
ReplyDeleteन जाने कितनों को राजनैतिक पुनर्वास मिल जाता है इस माध्यम से, अब वह भी गया।
ReplyDeleteइस तरह के विचार इनके दिमाग में क्यों नहीं आते
ReplyDelete@सारी दुनिया जानती है कि प्रधानमन्त्री मनमोहनसिंह दिल्ली के निवासी हैं किन्तु राज्य सभा में वे असम का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
ReplyDeleteअगर यह हमारे लोकतंत्र के "क्लीनतम" उदाहरण हैं तो बाकी का हाल कहने की आवश्यकता ही कहाँ बचती है? बहुत प्रासंगिक आलेख है। व्यवस्था में ऐसे कई सुधारों की आवश्यकता है।