डाक विभाग की खबर: सब कुछ राजी-खुशी नहीं है

मर्मान्तक पीड़ा से यह सब लिख रहा हूँ।

भारतीय डाक सेवा पर मैं सदैव ही गर्व करता रहा हूँ। न केवल इसका प्रशंसक हूँ अपितु इसकी समुचित सहायता करने हेतु भी सन्नद्ध और प्रयत्नरत भी रहता हूँ। भारत संचार निगम लि. के रतलाम जिला महाप्रबन्धक ने एक बार, अपने निहित स्वार्थों के अधीन, टेलीफोन बिल वितरण का काम निजी कूरीयर सेवा को सौंप दिया था। रतलाम डाक सम्भाग के तत्कालीन अधीक्षक अहमद अलीजी ने इस मामले में नागरिकों की मदद चाही थी। तब आदरणीय डॉक्टर जयकुमारजी जलज और मैं, हम दो ही इस मामले में आगे आए थे और लगातार झगड़ा करके यह काम फिर से डाक विभाग को दिलवाया था।

डाक विभाग को मैं ‘अन्नदाता विभाग’ मानता हूँ। इसके माध्यम से ही मैं अपने ‘वर्तमान अन्नदाताओं’ (पॉलिसीधारकों) को ग्राहक सेवाएँ उपलब्ध करा पाता हूँ और ‘सम्भावित अन्नदाताओं’ से सम्पर्क कर पाता हूँ। व्यक्तिगत खर्चों में मेरा सबसे बड़ा खर्च, ‘डाक खर्च’ ही है। किन्तु लग रहा है कि अब यह विभाग अपना, विशिष्टतावाला चरित्र और स्वरूप खोकर, पुरातत्व संग्रहालय की वस्तु बनने की दिशा में चल पड़ा है।

अपने ‘अन्नदाताओं’ को उनकी प्रीमीयम जमा कराने के लिए मैं प्रतिमाह नियमित रूप से पोस्ट कार्डों पर सूचना भेजता हूँ। इनके साथ हर बार मैं अपने पतेवाला एक पोस्ट कार्ड भी शामिल कर देता हूँ। ऐसा अनेक बार हुआ कि मेरे पतेवाला पोस्टकार्ड मुझे नहीं मिला।

मेरे मित्र धर्मेन्द्र रावल की दो पॉलिसियाँ परिपक्व हो रही थीं। उनका भुगतान प्राप्त करने के लिए मैंने उसे दो ‘विमुक्ति पत्र’ (डिस्चार्ज वाउचर) 26 नवम्बर को इन्दौर के लिए, सुबह साढ़े आठ बजे डाक के डिब्बे में डाले। वे उसे चौदहवें दिन, 9 दिसम्बर को मिले। रतलाम से इन्दौर की दूरी मात्र 135 किलोमीटर है और रतलाम से इन्दौर के लिए डाक के थैले सीधे भेजे जाते हैं।

इसी तरह, मेरे साले की एक पालिसी का विमुक्ति पत्र सावेर भेजा। सावेर इन्दौर जिले में आता है और इन्दौर से 30 किलोमीटर दूर है। मैंने बार-बार पूछताछ की तो मेरा साला दसवें दिन, सावेर डाक घर पहुँचा और वहाँ पड़े, डाक के ढेर में से अपना पत्र निकाल कर लाया।

इन्दौर निवासी, सेवा निवृत्त प्रोफेसर जगदीश चन्द्रजी लाड से मेरा नियमित पत्र व्यवहार चलता है। हम दोनों को एक दूसरे के पत्र कभी भी समय पर नहीं मिलते। इन्दौर से पोस्ट किया उनका एक पत्र मुझे अभी-अभी, दसवें दिन मिला।

भोपाल के लिए मैंने एक ही दिन, एक ही समय पर, दो पत्र स्पीड पोस्ट से भेजे। एक पत्र तो चौबीस घण्टों से भी कम समय में पानेवाले को वितरित कर दिया गया जबकि दूसरा पत्र चौथे दिन पहुँचा। उल्लेखनीय बात यह है कि दोनों पत्र, डाक विभाग की एक ही ‘बीट’ में थे। मेरे जिस मित्र को चौबीस घण्टों से भी कम समय में मेरा स्पीड पोस्ट पत्र मिल गया था, उसने मुझे जो पत्र स्पीड पोस्ट से भेजा वह मुझे चौथे दिन मिला।

श्रीसुरेशचन्द्र करमरकर एक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य हैं। वे ब्लॉग भी लिखते हैं। उन्होंने 5 दिसम्बर को, अपने मित्र जुबेर आलम कुरेशी के नाम लिखा पत्र, रतलाम के ही पते पर, जुबेर आलम के हाथों ही डाक में डलवाया। वह पत्र आज तक जुबेर को नहीं मिला। करमरकरजी ने दूसरा पत्र फिर जुबेर के हाथों डाक में डलवाया। वह भी अब तक नहीं मिला है।

पंजीकृत (रजिस्टर्ड) पत्रों की पावती (एकनॉलेजमेण्ट) के लिए डाक विभाग अपने ग्राहकों से अतिरिक्त शुल्क लेता है। मेरे पास ऐसे एकाधिक प्रकरण हैं जिनमें ग्राहकों से पावती-शुल्क तो लिया गया किन्तु किसी को पावती नहीं मिली है। ऐसे मामलों में यदि किसी ग्राहक ने पत्र के पहुँचने की तारीख और समय जानने के लिए सम्पर्क किया तो केवल पत्र के वितरित होने की सूचना दे दी गई। किसी को यह नहीं बताया गया कि पत्र किस दिनांक को, किस समय सामनेवाले को सौंपा गया।

रतलाम के अपने कृपालुओं के नाम, 21 अक्टूबर को मैंने दीपावली अभिनन्दन पत्र पोस्ट किए थे। इन्हीं में से, मेरे मित्र डॉक्टर गोविन्द प्रसाद डबकरा के नामवाला अभिनन्दन पत्र मुझे अभी-अभी 22 दिसम्बर को, पूरे दो महीनों के बाद ‘अवितरित पत्र’ के रूप में मिला है।

करमरकरजी को एक और अनुभव से सामना करना पड़ा। उन्हें जवाबी पोस्टकार्डों की आवश्यकता हुई। अपने पासवाले उपडाक घर में तलाश किया तो जवाबी पोस्टकार्ड तो दूर रहा, पचास पैसे वाले पोस्टकार्ड भी उपलब्ध नहीं थे। उन्होंने दूसरे उपडाक घर में तलाश किया। वहाँ भी नहीं मिले। वे मुख्य डाक घर पहुँचे। वहाँ 50 पैसे वाला पोस्टकार्ड तो मिल गया किन्तु जवाबी पोस्टकार्ड नहीं मिला। यह तो शुक्र है कि 50 पैसेवाले दो पोस्टकार्डों को ‘एक जान’ करने को डाक विभाग जवाबी पोस्ट कार्ड मान लेता है। किन्तु ‘कानून पालन करने में अद्भुत दृढ़ता दिखानेवाली व्यवस्था’ यदि ‘जवाबी पोस्ट कार्ड याने जवाबी पोस्ट कार्ड’ पर ही अड़ जाती तो करमरकरजी का काम पता नहीं कितने दिनों (यहाँ ‘महीनों’ या ‘वर्षों’ भी लिखना पड़ सकता है) तक रुक जाता? इससे भी आगे बढ़कर मैं तो करमरकरजी को भाग्यवान मानता हूँ कि कर्मचारी ने ‘पोस्टकार्ड तो नहीं हैं, सोना है। सोना खरीद लीजिए।’ जैसा नेक परामर्श नहीं दिया।

डाक विभाग का कानून है कि स्पीड पोस्ट से भेजा गया पत्र यदि निर्धारित अवधि में सामनेवाले को वितरित नहीं हो पाता है तो भेजनेवाले से लिया गया शुल्क, भेजनेवाले को लौटा दिया जाता है। शेष भारत का तो पता नहीं किन्तु मेरे कस्बे रतलाम में यह शुल्क वापस लेना याने पुनर्जन्म लेने से कम नहीं है। यह मेरे जीवन की ऐतिहासिक और उल्लेखनीय उपलब्धि है कि मैं दो बार ऐसा शुल्क वापस ले चुका हूँ किन्तु जुलाई वाले दो मामलों में लगता है, मेरी तीसरी पीढ़ी को भी यह रकम मिल जाए तो बड़ी बात होगी।

जलजजी भी इसी ‘उदारता’ के शिकार बने बैठे हैं। स्पीड पोस्ट से भेजे गए ऐसे ही एक पत्र की शुल्क वापसी के लिए उन्होंने जून में कार्रवाई शुरु की थी। गए दिनों उन्हें ‘प्रसन्नतापूर्वक सूचित किया गया’ है कि उनकी शुल्क वापसी स्वीकार कर ली गई है। देखना यह है कि जलजजी को अपनी रकम वापस कब मिल पाती है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि 25 रुपयों की अपनी ‘विशाल रकम’ प्राप्त करने के लिए, हृदयाघात झेल चुके और इसका उपचार ले रहे जलजजी को 78 वर्ष की आयु में दो बार, तीसरी मंजिल तक की सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ीं। सुविधाओं से सुसज्जित अपने ‘चेम्बर’में बैठे अधिकारियों की आत्मा शायद मर गई है अन्यथा वे कैसे भूल गए कि वे अपने उपभोक्ताओं की समस्याओं के निदान हेतु बैठाए गए हैं, उन पर ‘राज‘ करने के लिए नहीं?

क्या यह मान लिया जाए कि उत्कृष्ट ग्राहक सेवाओं के ‘अहर्निशं सेवामहे’ का उद्घोष

करनेवाले, कीर्तिमानी विभाग के अधिकारी अमानवीय, क्रूर और सम्वेदनाओं से परे, यन्त्र मात्र बन कर रह गए हैं?

5 comments:

  1. पोस्टकार्ड तो हमें भी नहीं मिले, हमने सोचा था कि नववर्ष पर सभी मित्रों और संबंधियों को हाथ से पोस्टकार्ड लिखेंगे, परंतु डाकविभाग ने हमारे प्लॉन पर पानी फ़ेर दिया। अब सबसे सस्ती सुविधा में ये सब तो होता ही है, परंतु हाँ स्पीड पोस्ट के मामले में हमारा अनुभव अभी तक तो ठीक रहा है और कूरियर को छोड़ स्पीड पोस्ट को ही अपनाते हैं।

    आप सीधे डाकविभाग को लिखें और फ़ॉलो अप भी करते रहें उम्मीद है कि कोई कर्त्तव्यनिष्ठ अधिकारी जागेगा और समस्या से मुक्ति मिलेगी ।

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  2. ये बड़ी अजीब बात है कि डाक विभाग का रतलाम में इतना बुरा हाल है
    हैदराबाद में मैंने जितनी भी बार स्पीड पोस्ट भेजी है वोह हर बार हैदराबाद, बेंगलुरु, और रतलाम में क्रमशः 24, 48 और 72 घंटे के भीतर पहुची है और में उसे बराबर ऑनलाइन ट्रैक भी कर पाया हूँ
    पोस्ट कार्ड का मेरा तजुर्बा भी काफी अच्छा रहा है और हर बार पोस्ट कार्ड लगभग 4-8 दिन के भीतर घर पंहुचा है
    जवाबी पोस्ट कार्ड की जरुरत मुझे कभी हुई नहीं इसलिए इस बारे में मैं टिपण्णी नहीं कर पाऊँगा
    आपके स्पीड पोस्ट के पैसे वापिस लेने के लिए आप सुचना के अधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन उसके लिए आपको 10 रुपये का पोस्टल आर्डर और 15 रुपये कि स्पीड पोस्ट के पैसे खर्च करने होंगे तो अगर आपके 4-5 मामले अटके हों तो आप इन सब चीज़ों का समाधान एक ही बार में शायद कर पाएंगे
    मैंने सुचना के अधिकार का प्रयोग आयकर विभाग और प्रोविडेंट फंड विभाग पे किया है और दोनों पे ही ये काफी प्रभावी रहा है
    आयकर विभाग ने मेरा 3 साल पुराना रिफंड 7 दिन में वापिस कर दिया वहिंग प्रोविडेंट फंड विभाग ने मेरा 3 साल पुराने खाता हस्तांतरण आवेदन को 10 दिन के अंदर निपटा दिया

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  3. यहाँ बैठे मेरा अनुभव है कि इस समय भारत में सभी सेवाओं का भट्टा बैठ रहा है। डाक विभाग भी कितने दिन खैर मनायेगा। यहाँ से कुछ यदि डाक से भेजता हूँ तो भारत का नाम सुनते ही वे ट्रैकिंग सर्विस देने से मना कर देते हैं क्योंकि उनके अनुसार भारत से न तो कभी ट्रैकिंग/पावती खुद आती है, न कभी उसके बारे में की गयी पूछताछ का उत्तर ही आता है।

    जहाँ तक आदर्श वाक्य की बात है, डाक में "अहर्निषम सेवामहे" भी उतना ही चमकेगा जितना सम्पूर्ण राष्ट्र में "सत्यमेव जयते"

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  4. अपनी दुर्दशा देख कर डाक विभाग भी अपना दम तोड़ रहा है..

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  5. ई-मेल से, 27 दिसम्‍बर को प्राप्‍त श्री सुरेशचन्‍द्रजी करमरकर (रतलाम) की टिप्‍पणी -


    विष्णुजी,आज संतरों की नगरी नागपुर मैं हूँ.बड़ी बेटी के यहाँ .यहाँ नेट सुविधा होने से आपका ब्लॉग पढ़ लिया, आप जीवन से सम्बंधित और दैनिकजीवन मैं संपर्क आने वाली घटनाओं और विशेष गुणी व्यक्तिओं के बारे मैं जब लिखते हैं तो ऐसा लगता हैकि हम स्वयं उन घटनाओं से रूबरू गुजर रहें हैं या उन व्यक्तिओं से मिल रहें हैं.और ऐसा लगता है की ऐसे व्यक्ति हमें भी मिले है मगर हम उनके गुणों को देख नहीं पाए. बुजुर्ग होना अपने आप मैं एक डर तो है मगर अपने माजने से रहो तो देखा आपको कितना सम्मान मिलता है और आपको कितनी तवज्ज्यो मिलती है. इश्वर के प्रति अगाध nishata होनी चाहिए. इश्वर के जो एजेंट हैं उनके प्रति नहीं. मंदिर की मूर्तियाँ,स्वामी या महाराज , ज्योतिषी,तांत्रिक ये दोयम दर्जे के लोग या इससे भी कई सीढ़ी नीचे होंगे. मैं भी ६७ वे पायदान पर कदम रख चूका हूँ /मेरे परिवार मैं १५/२० भांजे ,भतीजे,नाती पोते हैं मगर मुझे सबसे परम हैं.किसी से कोई शिकायत नहीं. डाक विभाग और दुर्भाश्य को हम सब मिलकर ठीक कर लेंगे. किसी अन्ना के पास या अधिकारी के पास जाने की जरूरत नहीं. हमारे सर जलज साहेब ने विधुत मंडल का कलेक्शन सेण्टर खोलने के लिए कितने पत्र लिखे थे,तब जाकर जवाहरनगर मैं एक केंद्र खुला था.जलज साहेब ने लगातार पत्र लिखर उसके परिणामों से हमें अवगत करा दिया है.इसी प्रकार pension प्रकरणों पर पर भी सर ने स्वयं के साथ हुई परेशानियों का काफी जिक्र अखबारों में किया. आज जो पेंशनप्रकरण आसानी से सुलझ सुलझ रहें हैं उसका कारण भी जलज सर के लिखे ढेरों पत्र हैं..धन्यवाद. डाक और टेलीफोन को हम सुधार देंगे.

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