कुछ नहीं होगा निर्मल नरुला का

व्यापक सामाजिक सराकारों के सन्दर्भ में, निर्मल सिंह नरुला उर्फ निर्मल बाबा के उपक्रम से असहमत होते हुए और उसके उपक्रम को अन्ततः समाज को क्षति पहुँचानेवाला मानते हुए, मुझे नहीं लगता कि निर्मल नरुला को कानूनन अपराधी साबित किया जा सकेगा और उसे दण्डित किया जा सकेगा।

मैं कानून का जानकार नहीं किन्तु पहली नजर में लगता है कि उसने कानूनन कोई अपराध नहीं किया है।
उसने किसी को अपने दरबार में आने का निमन्त्रण नहीं दिया। उसने तो केवल विज्ञापित किया कि उसका दरबार लगता है और सूचित किया कि उसके इस दरबार में मौजूद रहने, अगली पंक्ति में बैठने और उससे सवाल पूछने के लिए निर्धारित शुल्क की रकम क्या है।

निर्मल नरुला ने किसी को कोई वादा नहीं किया कि उसके दरबार में भाग लेने से किसी को कोई लाभ होगा या भाग लेनेवाले की कोई समस्या हल हो जाएगी या भागलेनेवाले को किसी पुरानी झंझट से मुक्ति मिल जाएगी।

निर्मल नरुला के दरबार में हुए कुछ प्रश्नोत्तरोंवाले कार्यक्रम मैंने टेलीविजन पर देखे हैं। मैंने एक बार भी उसे यह कहते नहीं सुना/देखा कि वह कोई अवतार या चमत्कारी व्यक्ति है या उसके कहने से कोई चमत्कार हो जाएगा। इसके विपरीत मैंने एकाधिक बार उसे लोगों को सलाह देते हुए सुना/देखा कि किसी प्राप्ति या प्रतिफल की आशा में यदि कोई, कुछ करता है तो वह सही नहीं है। आदमी को ‘शक्तियों’ में, ईश्वर में विश्वास और आस्था रखते हुए अपना काम करते रहना चाहिए, उस पर कृपा होगी।

अपनी समस्याएँ प्रस्तुत करनेवालों को निर्मल नरुला ने कोई उपाय बताते हुए उस उपाय के शर्तिया कारगर होने का दावा कभी नहीं किया।

निर्मल नरुला के दरबार/समागम में (शुल्क चुका कर) भाग लेनेवालों में से एक ने भी कोई असन्तोष नहीं जताया है न ही किसी ने, निर्मल नरुला के विरुद्ध, वचन भंग की शिकायत ही की है।

निर्मल नरुला के विरुद्ध जो भी मामले पुलिस में लगाए गए हैं वे सबके सब, जागरूक लोगों ने अपनी सामाजिक जिम्‍मेदारी अनुभव करते हुए लगाए हैं। इनमें से किसी ने निर्मल नरुला के दरबार/समागम में न तो भाग लिया है न ही कोई सवाल पूछा है, न ही अपनी किसी समस्या का निदान चाहा है। कानूनी दृष्टि से इनमें से कोई भी ‘प्रभावित’ या ‘पीड़ित’ नहीं है।

निर्मल नरुला ने किसी पर दबाव बना कर रकम नहीं ली है। जो भी रकम ली है, नम्बर एक में ली है। रकम का उपयोग करने के बारे में उसने कभी, कोई आश्वासन नहीं दिया है। पहली नजर में, लोगों द्वारा विभिन्न खातों में जमा की गई रकम, निर्मल नरुला की व्यक्तिगत सम्पत्ति अनुभव होती है जिसके, अपनी इच्छानुसार उपयोग के लिए वह स्वतन्त्र और कानूनी रूप से अधिकृत है।

चूँकि सारी रकम, लोगों ने सीधे ही बैंक खातों में जमा की है, इसलिए उसे छुपा पाना निर्मल नरुला के लिए न तो सम्भव है और न ही उसकी ऐसी कोई मंशा अनुभव होती है। यह कोई ‘घपला’ या ‘गबन’ भी अनुभव नहीं होता। जाहिर है कि इस रकम पर उसने अपने कानूनी ज्ञान के अनुसार या फिर अपने कानूनी सलाहकारों के अनुसार आय-कर चुकाया ही होगा। यदि नहीं चुकाया होगा तो यह, आयकर कानूनों के अन्तर्गत केवल आर्थिक रूप से दण्डनीय अपराध होगा और आय कर विभाग द्वारा निर्धारित कर राशि, उस पर अतिरिक्त शुल्क और दण्ड की रकम (यदि आरोपित की गई तो) उसे चुकानी पड़ेगी।

निर्मल नरुला के विरुद्ध कितने लोग गवाही देने के लिए न्यायालय के समक्ष जाएँगे? न्यायालय यदि अपनी ओर से भी संज्ञान ले ले तो भी न्यायालय की सहायता के लिए कितने लोग स्वैच्छिक रूप से प्रस्तुत होंगे?

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, निर्मल नरुला के विरुद्ध, न्यायालय को कोई सहायता करेगा, इसमें मुझे यथेष्ठ सन्देह है। अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के मुकाबले, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने तो अपने मुनाफे को प्राथमिकता दी। निर्मल नरुला के दरबार की रेकार्डिंग को, लम्बे अरसे तक विज्ञापन के रूप में लोगों के सामने परोसते रहे। वे तो इस गोरख-धन्धे में निर्मल नरुला के आर्थिक सहयोगी के रूप में ही प्रस्तुत हुए। निर्मल नरुला का भण्डा-फोड़ अपनी ओर से उन्हीं चैनलों ने किया जिन्हें दरबार/समागम के विज्ञापन नहीं मिले। ये विज्ञापन दिखानेवाले चैनल, अन्ततः निर्मल नरुला के विरुद्ध मैदान में आए तो सही किन्तु वे ‘आए’ नहीं, लोगों के बीच अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने की व्यावसायिक मजबूरी में उन्हें ‘आना पड़ा’ और वे मैदान में आए भी तो, हम सबने देखा कि उनकी धार कितनी भोथरी थी। हम सब खूब अच्छी तरह जानते हैं कि हमारे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की प्राथमिकता सूची में ‘टीआरपी’ नम्बर एक पर है, बाकी सारी बातें या तो हैं ही नहीं और हैं भी तो चैनलों की सुविधा/इच्छा के अधीन।

निर्मल नरुला ने अपने दरबार/समागम को कभी धार्मिक नहीं कहा किन्तु लोगों ने इसे अपने आप ही धर्म से जोड़ लिया है। मैंने शायद गलत कह दिया। कोई जोड़े या नहीं, यह उपक्रम है ही ऐसा जिसे हम अपनी स्थापित मानसिक ग्रन्थियों के कारण धार्मिक ही मानते हैं। सो, इसके विरुद्ध या तो कोई खुलकर मैदान में आएगा ही नहीं और यदि आएगा भी तो उसकी पराजय सुनिश्चित है। विभिन्न चैनलों पर हुई बहसों में कुछ भगवाधारी भी निर्मल नरुला के विरुद्ध प्रस्तुत हुए थे किन्तु उनकी बातों में ‘तर्क और तथ्य’ नहीं थे। या तो गुस्सा था या फिर खीझ - ‘हाय! रातों-रात करोड़पति बनने की यह अकल मुझे क्यों नहीं आई?।’

ऐसे लोगों पर हुई कानूनी कार्रवाई और सामाजिक व्यवहार के पूर्वानुभव भी कोई आस नहीं बँधाते। दक्षिण भारत के एक ‘सन्त’ तो रंगरेलियाँ करते टेलीविजन पर देखे गए थे, उन पर समलैंगिक यौन व्यवहार के आरोप भी लगे। किन्तु इस बवण्डर की धूल जल्दी ही बैठ गई और हम सबने उन्हीं ‘सन्त’ को, स्वर्ण सिंहानारूढ़ हो, रथ में बैठे देखा जिसके आगे-पीछे हजारों स्त्री-पुरुष जय-जयकार करते हुए, नाचते-गाते चल रहे थे।

कानून अपनी ओर से अधिक कुछ कर नहीं पाता और समाज? समाज न केवल सब कुछ भूल जाता है अपितु ऐसे लोगों को फौरन ही माथे पर बैठा लेता है - इतनी जल्दी मानो भूलने, क्षमा करने और फिर से माथे पर बैठाने के लिए उतावला हो।

ऐसे में, मुझे नहीं लगता कि निर्मल नरुला किसी कानूनी या सामाजिक पकड़ में आ पाएगा। हाँ, कुछ दिनों के लिए उसके खातों में आवक जरूर कम हो जाएगी। लेकिन यह दौर बहुत लम्बा नहीं खिंचेगा क्योंकि सारा संसार दुःखिया है और जब तक एक भी मूर्ख मौजूद है तब तक करोड़ों बुद्धिमानों की दुकानें चलती रहेंगी। आप-हम भी इसी तरह लिखते रहेंगे और धरती अपनी धुरी पर घूमती रहेगी।


लगे रहो निर्मल नरुला! तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा जब तक कि तुम खुद ही इस पर आमादा नहीं हो जाओ।

5 comments:

  1. जब लोग मूर्ख बनने को तैयार बैठे हैं तो किस किस को रोकेंगे आप।

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  2. आप की इस पोस्ट ने संसद के समक्ष चुनौती पेश की है कि वह इस तरह के व्यापार के विरुद्ध कानून बनाए। पर क्या ऐसा कानून खुद सत्ताधारियों को भी कठघरों में न खींच लाएगा? क्या संसद फिर भी कोई कानून बनाएगी?

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  3. जनता की याददाश्त बहुत छोटी है...कुछ दिन में सब भूल जायेंगे और इस तरह के धंधे चलते रहेंगे...

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    1. मुझे भी यही डर है। और अब तक बाबा के पास पूरी ज़िन्दगी मुफ़्तखोरी से गुज़ारने लायक धन तो आ ही चुका होगा।

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