बालकवि बैरागी
एक
गोरे-गोरे चाँद में धब्बा,
दिखता है जो काला-काला।
उस धब्बे का मतलब हमने,
बड़े मजे से खोज निकाला।
वहाँ नहीं है गुड़िया-बुढ़िया,
वहाँ नहीं बैठी है दादी।
अपनी काली गाय, सूर्य ने
चन्दा के आँगन में बाँधी।
-----
दिखता है जो काला-काला।
उस धब्बे का मतलब हमने,
बड़े मजे से खोज निकाला।
वहाँ नहीं है गुड़िया-बुढ़िया,
वहाँ नहीं बैठी है दादी।
अपनी काली गाय, सूर्य ने
चन्दा के आँगन में बाँधी।
-----
दो
शाम ढले पंछी घर आते।
अपने बच्चों को समझाते।
अगर नापना हो आकाश।
पंखों पर करना विश्वास।
साथ न देंगे पंख पराए।
बच्चों को अब क्या समझाए!
-----
अपने बच्चों को समझाते।
अगर नापना हो आकाश।
पंखों पर करना विश्वास।
साथ न देंगे पंख पराए।
बच्चों को अब क्या समझाए!
-----
तीन
बड़े सवेरे सूरज आया।
आकर उसने मुझे जगाया।
कहने लगा, ‘बिछौना छोड़ो,
मैं आया हूँ, सोना छोड़ो!’
मैंने कहा, ‘पधारो आओ।
जाकर पहले चाय बनाओ।
गरम चाय के प्याले लाना।
फिर आ करके मुझे जगाना।
चलो रसोईघर में जाओ।
दरवाजे पर मत चिल्लाओ।’
-----
आकर उसने मुझे जगाया।
कहने लगा, ‘बिछौना छोड़ो,
मैं आया हूँ, सोना छोड़ो!’
मैंने कहा, ‘पधारो आओ।
जाकर पहले चाय बनाओ।
गरम चाय के प्याले लाना।
फिर आ करके मुझे जगाना।
चलो रसोईघर में जाओ।
दरवाजे पर मत चिल्लाओ।’
-----
चार
नदियाँ होतीं मीठी-मीठी,
सागर होता खारा।
मैंने पूछ लिया सागर से,
यह कैसा व्यवहार तुम्हारा?
सागर बोला, सिर मत खाओ।
पहले खुद सागर बन जाओ।
-----
सागर होता खारा।
मैंने पूछ लिया सागर से,
यह कैसा व्यवहार तुम्हारा?
सागर बोला, सिर मत खाओ।
पहले खुद सागर बन जाओ।
-----
पाँच
ईश्वर ने आकाश बनाया।
उसमें सूरज को बैठाया।
अगर नहीं आकाश बनाता!
चाँद-सितारे कहाँ सजाता?
कैसे हम किरणों से जुड़ते?
ऐरोप्लेन कहाँ पर उड़ते?
-----
उसमें सूरज को बैठाया।
अगर नहीं आकाश बनाता!
चाँद-सितारे कहाँ सजाता?
कैसे हम किरणों से जुड़ते?
ऐरोप्लेन कहाँ पर उड़ते?
-----
ये बाल-कविताएँ, भोपालवाले श्री मनोज जैन ‘मधुर’ (मोबाइल नम्बर 93013 37806) की फेस बुक वाल पर ‘वागर्थ’ समूह से, रतलामवाले मेरे प्रिय आशीष दशोत्तर (मोबाइल नम्बर 98270 84966/96303 34034) ने उपलब्ध कराईं। दोनों का बहुत-बहुत आभार।
सुन्दर रचनाएं
ReplyDeleteटिप्पणी करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। बहुत देर से उत्तर देने के लिए कृपया मुझे क्षमा कर दें।
Delete