आसाराम शापिंग सेण्टर


इन दिनों आसारामजी की बहार आई हुई है । चारों ओर वे ही वे छाए हुए हैं । छाए हुए तो वे पहले भी रहते आए हैं लेकिन पहले वाले ‘छाए रहने’ में और इन दिनों वाले ‘छाए रहने’ में स्टिल फोटोग्राफी के ‘नेगेटिव-पाजिटिव’ वाला अन्तर है । कल तक वे हार-फूलों से लदे नजर आते थे, कल मैं ने ‘सहारा मध्यप्रदेश’ पर उन्हें देखा - कुछ लोग उनके पोस्टर को जूते मार रहे थे, दूसरे दृष्य में उनके पोस्टर को जूतों-चप्पलों की मालाएं पहनाई हुई थी तो तीसरे दृष्य में उनका पुतला जलाया जा रहा था । मैं ने देखा कि सारी दुनिया को मुक्ति की राह दिखाने वाला आदमी, हाथ जोड़े, हिचकियां बांध कर रोते-रोते, मीडिया से न्यायदान की याचना कर रहा है ।

मेरा अपना अनुभव रहा है कि आसारामजी और विवाद एक दूसरे के अपरिहार्य पूरक हैं या कि एक ही सिक्के दो पहलू हैं । कुछ बरस पहले रतलाम में उन्होंने भव्य सत्संग आयोजित किया था । देश के कोने-कोने से उनके अनुयायी यहां एकत्रित हुए थे । दो-एक दिन सब ठीक चला । अगले दिन सारे श‍हर में चर्चा थी कि इस ‘सत्संग आयोजन’ मे हिसार की एक किशोरी, बलात्कार की शिकार हो गई । थोड़ी बहुत अखबारबाजी भी हुई लेकिन किसी कार्रवाई की बात तो दूर रही, लोगों को उस किशोरी का नाम भी मालूम नहीं हो सका ।

रतलाम जिले के छोटे से गांव पंचेड़ में आसारामजी का आश्रम है । आश्रम के लिए जमीन लिए जाने के समय से ही यह आश्रम विवादित होने की सीमा तक चर्चित रहा । रतलाम से पंचेड़ जाने के लिए, रतलाम-मन्दसौर मार्ग पर, रतलाम से 12 किलोमीटर पर स्थित ग्राम नामली से डायवर्शन पर जाना होता है । इस आश्रम को लेकर नामली मे इतने सारे किस्से सुने जाते हैं कि गृहस्थ जीवन के सभी पक्षों से जुड़े प्रकरणों के, सैंकड़ों पृष्ठों का ग्रन्थ छप जाए । नामली के लोग न तो इस आश्रम में जाते हैं और न ही इस आश्रम को जाने का रास्ता किसी को बताते हैं । मेरे परिचित कुछ समृध्द परिवार कल तक आसारामजी के अन्ध भक्त थे, आज वे आसारामजी का नाम भी लेना-सुनना पसन्द नहीं करते ।

इन्हीं आसारामजी को लेकर एक रोचक किस्सा, उज्जैन के कांग्रेसी नेता मनोहर बैरागी ने कोई सवा साल पहले सुनाया था । रिश्तों के घुमावदार पेंचों के बीच वे मेरे मौसिया ससुर होते हैं । यह किस्सा उन्होंने केवल मुझे तो नहीं सुनाया लेकिन जिन (लगभग बीस) लोगों को सुनाया, उनमें सबसे पीछे मैं भी बैठा था ।


किस्से के मुताबिक, ‘उन दिनों’ आसारामजी का मुकाम उज्जैन में था । आसारामजी और नेता, एक दूसरे की जरूरतें पूरी करते हैं । सो, नेता उनके यहां जाते हैं या वे नेताओं को निमन्त्रित करते हैं, इस विगत में जाने से अच्छा यही है कि यही मान लिया जाए कि दोनों एक दूसरे के लिए लाभदायक होते हैं इसलिए परस्पर सम्पर्क में रहते हैं । सो, मनोहरजी और आसारामजी भी सम्पर्क में थे । बकौल मनोहरजी, आसारामजी का कहना था - ‘बैरागीजी ! बाकी सब नेता तो मेरे यहां आ गए लेकिन महाराज नहीं आए । आप ऐसा कुछ करो कि महाराज मेरे पाण्डाल में आएं ।’ महाराज याने माधवरावजी सिन्धिया । उन दिनों वे केन्द्रीय मन्त्रि मण्डल के सदस्य थे और मनोहरजी पर उनका भरपूर स्नेह, प्रेम जगजाहिर था । जब जगजाहिर था तो आसारामजी को कैसे मालूम न होता ? सो, वे मनोहरजी से बार-बार कहते - ‘बस, एक बार महाराज को लाओ ।’ मनोहरजी के लिए यह आसान नहीं था । माधवरावजी ऐसे आयोजनों में जाना तो दूर रहा, इनके बारे में बात करना भी पसन्द नहीं करते थे ।

मनोहरजी मुश्किल में फंस गए । आसारामजी की ‘महाराज को लाओ, महाराज को लाओ’ रुकने का नाम ले और मनोहरजी की हिम्मत नहीं कि माधवराजी से इसके लिए आग्रह-अनुरोध कर लें । एक-दो बार उन्होंने अतिरिक्त साहस जुटा कर माधवरावजी को संकेत किया भी तो उन्होंने नोटिस ही नहीं लिया । मनोहरजी की जान सांसत में । उज्जैन मे रहें तो आसारामजी या तो फोन कर दें या गाड़ी के साथ सन्देशवाहक भेज दें । उज्जैन में रहो तो आसारामजी का ‘आर्तनाद’ गूंजे और दिल्ली में रहो तो बिना काम के कब तक रहो ? मनोहरजी को न दिन में चैन न रात में करार ।

सो अन्ततः एक दिन मनोहरजी ने माधवरावजी को अपनी व्यथा-कथा सुनाते हुए कहा कि वे आसारामजी के लिए नहीं, मनोहरजी को आसारामजी से मुक्ति दिलाने के लिए ही सही, बस ! एक बार आसारामजी के पाण्डाल में हो आएं । अपने प्रिय पात्र को संकट से मुक्त करने के लिए माधवरावजी ने अपनी स्थापित छवि भंग करने की मंजूरी दे दी ।

माधवरावजी का उज्जैन कार्यक्रम तय हो गया लेकिन, प्रसारित सरकारी कार्यक्रम में आसारामजी के पाण्डाल में जाने का उल्लेख कहीं नहीं था । आसारामजी को तारीख और सम्भावित समय सूचित कर दिया गया ।

निर्धारित कार्यक्रमानुसार माधवरावजी आसारामजी के पाण्डाल में जाने के लिए निकले । पाण्डाल के बाहर पुलिस और सरकारी अमले का जमावड़ा और हरकतें नजर आने लगीं । पायलटिंग वाहन के सायरन की आवाज के पीछे-पीछे माधवरावजी पाण्डाल के बाहर पहुंचे, गाड़ी से उतरे, वर्दीधारी अफसर आगे-आगे दौड़े । इसके बाद मनोहरजी ने जो सुनाया वह मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा । मनोहरजी ने जो कुछ कहा वह कुछ इस तरह था - लम्बे-चैड़े, भव्य पाण्डाल के प्रवेश द्वार पर जैसे ही माधवरावजी नजर आए, दूर , पाण्डाल के दूसरे छोर पर (प्रवेश द्वार से एकदम सामने) मंच पर 'शोभायमान’ दिखाई दे रहे आसारामजी प्रवचन देते-देते, दोनों हाथ अभिनन्दन की मुद्रा में उठाते हुए, आसन से उठ खड़े हुए और जोर से बोले - ‘पधारो महाराज ।’ माधवराजी ऐसी अगवानी के लिए बिलकुल ही तैयार नहीं थे । यह अकल्पनीय था । वे ठिठक गए । दोनों हाथों से, आसारामजी को नीचे बैठने का इशारा करते-करते मंच की ओर बढने लगे । उन्हें यह विचित्र लगा । वे असहज हो गए । तेजी से आसारामजी के सामने पहुंचे, उनका अभिवादन किया और कहा कि किसी सन्त को किसी राजनेता के स्वागत में इस तरह उठ खड़ा होना लोकाचार के खिलाफ है । सुनकर आसारामजी बोले - ‘चिन्ता न करें महाराज ! ये तो अपनी ही दुकान है और ऐसी ही है ।’ कहा तो उन्होंने माधवरावजी से था लेकिन उनके मंहगे और अत्याधुनिक श्रेष्ठ साउण्ड सिस्टम के अत्यन्त सम्वेदनशील माइकों के जरिये यह ‘सन्त वचन’ सबने साफ-साफ सुना । माधवरावजी और अधिक असहज हो गए, मनोहरजी (बकौल मनोहरजी ही) हक्के-बक्के हो गए । उस एक क्षण को मानो समूची सृष्टि जड़ हो गई, पाण्‍डाल में शून्य की नीरवता फैल गई । सब अकबकाए हुए, ‘फटी आंखें-बन्द जबान’ थे ।


अगले ही क्षण माधवरावजी ने इस जड़ता को भंग किया । उन्होंने एक बार फिर नमस्कार किया, मनोहरजी की ओर देखा, मुस्कुराए और मनोहरजी का कन्धा थपथपा कर उल्टे पांवों चल पड़े । मनोहरजी के मुताबिक, एक पल में सारा खेल निपट गया - चटपट । जादूगर के आसन पर आसारामजी बैठे थे लेकिन जादूगरी कर गए माधवरावजी । दुकान थी आसारामजी की और व्यापार कर लिया था माधवरावजी ने । आसारामजी के जीवन की एक साध पूरी हो चुकी थी, माधवरावजी अपने प्रिय पात्र को संकट मुक्त कर चुके थे लेकिन किसने क्या किया - यह किसी को समझ नहीं पड़ी ।


मनोहरजी ने ऐसा कुछ कह कर समापन किया था - मुझे लगा था कि आसारामजी अब मुझे नहीं पूछेंगे लेकिन उनके यहां मेरी पूछ-परख और बढ़ गई थी । शायद इसलिए कि सारी दुनिया की आशा पूरी करने वाले आसारामजी की एक आशा मेरे माध्यम से पूरी हो गई थी ।

सो, दुकान तो आखिरकार दुकान है । जरूरी नहीं कि हर बार मुनाफा ही हो । कभी-कभी घाटा भी हो जाता है । कुशल और खानदानी व्यापारी सब कुछ सहजता से सहन कर लेता है । लेकिन जिसे केवल लाभार्जन का दुर्व्यसन हो उसके लिए घाटा तो किसी प्राणलेवा हादसे से कम नहीं होता ।


आसाराम शापिंग सेण्टर शायद इसी क्षण से गुजर रहा है ।

13 comments:

  1. बडा अच्छा किस्सा सुनाया आपने । आसाराम बापू को टीवी पर माताजी ने चैनल रोककर कई बार सुनवाया । अक्सर तो सब अच्छी बाते ही करते हैं सब संत, तो अक्सर सुन लिया करता था लेकिन एक बार बडा खराब लगा और इस पर मेरी और माताजी की चर्चा भी हुयी ।

    अपने प्रवचन में आसारामजी यीशू और श्रीकृष्ण की तुलना कर रहे थे । उन्होने कहा कि उनका मसीहा बडा जिसे लोगों ने सूली पर चढा दिया अथवा कृष्ण भगवान जिन्होने बचपन में ही कितने राक्षसों का संहार किया ।

    मैने तुरंत कहा कि ये पेटी से नीचे का प्रहार है । इतने बडे संत होने के बाद भी अगर इस प्रकार की ओछी तुलना करने की प्रवत्ति नहीं गयी तो फ़िर आगे सुनने का कोई फ़ायदा नहीं । उस दिन मेरी माताजी मुझसे सहमत हुयी थीं । मैने उस दिन के बाद से उनके प्रवचन कभी नहीं सुने ।

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  2. बहुत से किस्से है महाराज के , लडकियो के महिलाओके , सारे सुख भोग कर भाषण देने वाले ये महाराज निहायत घटिया राजनीतिक और बढिया दुकानदार होते है. ना सेल्स टैक्स ना इनकम टैक्स ,दुनिया भर की महगी जमीन हथियाये हुये. जो एसी मे बैठ कर भाषण देते है , दूसरो को . इन्हे सारो को समंदर की गहराईयो मे डुबो देना चाहिये .

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  3. नई जानकारी के लिए धन्यवाद!

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  4. यहा पर तो वो आशारम के नाम से कुख्यात है.. लोग बाग आशारम के आयेज जी लगाकर जी शब्द की शोभा घटना नही चाहते.. आपने बढ़िया किस्सा सुनाया है.. माधवराज जी ने करारा तमाचा जड़ा और बेचारे बापू समझ भी ना पाए..

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  5. आसाराम जी का यह आश्रम मैने देखा है। मैं तो अकेले यूंही गया था। पर प्रसाद-भोग कस के मिला था!:)
    उनके आजकल दिन बढ़िया नहीं चल रहे!

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  6. आशाराम असल में रियल एस्टेट व्यापारी हो गये हैं. उनके नाम पर देश के हर हिस्से में भवन और मकान बने हैं. हरिद्वार में आशाराम अपार्टमेन्ट में एक फ्लैट की कीमत 15 लाख से शुरू होती है.
    कहते हैं धर्म कलंकी नहीं होना चाहिए बहुत भुगतना पड़ता है. उनके साथ जो हो रहा है उसके जिम्मेदार वे खुद है.

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  7. यह तो बिजनेस है और बिजनेस में ऐसे उतार-चढ़ाब तो आते ही रहते हैं. आसाराम एक सफल बिजनेसमेन हैं. रोना-धोना सब उसी का हिस्सा है. इनकी दुकानदारी इतनी आसानी से ख़त्म होने वाली नहीं है.

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  8. आप ने सही कहा, आसाराम शॉपिंग सेन्टर। यह सब मुफ्त विज्ञापन का तरीका है। धंधे में उतार चढ़ाव ही नहीं होता बंद भी हो जाता है। यह दौर ऐसा ही है। लेकिन यह दौर पैदा हुआ है तो मरेगा भी।
    इस घटना को सार्वजनिक करने के लिए बधाई।

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  9. बहुत खूब! आसाराम जी ने तो तमाम उद्घाटन किए होगे आज आप ने उनके चरित्र का उद्घाटन कर दिया..

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  10. आप का लेख बहुत अच्छा हे,बल्कि यु कहना चाहिये आंखे खोलने वाला हे, लेकिन हमारे देश के लोग पता नही किस चीज के बने हे, सब कुछ जान कर फ़िर इन्ही के पास लाखो की सख्या मे जाते हे, ओर खुशी खुशी से अपने आप को लुटाते हे, जब लुटने वाला अपना धन खुद लुटा रहा हो तो यह गुरु क्यो मोका छोडे ....
    इन गुरुओ को ओर इन के चेले चेलियो को अफ़्गानिस्तान मे भेज दो,,, या फ़िर पंगे वाज जी की सलाह पर कर्यवाही की जाये

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  11. संतों के अवगुण नहीं देखने चाहिए, परन्तु उनमें एक भी गुन हो, उसे चुरा लेना चाहिए. चुरा लेने का मतलब अपने जीवन में उतार लेना चाहिए.

    आपको सत्संग सुनना अच्हा नहीं लगता, तो कम से कम दूसरो को सत्संग सुनने से रोकने का "पाप" तो न करे

    किसी को भी कोई टिपण्णी देनी हो, तो एक बार www.ashram.org पर login करके, What's New section जरुर पड़े.

    मैं एक अमेरिकन कंपनी मैं काम करने वाला इंजिनियर हू, और आप लोगों के comments को देख कर सोचता हू की जिन्होंने (बापू ने) पूरी जिंदगी SEWA कार्यों में लगा दी है, उनको भी बदनाम करने वाले लोग होते हैं!!

    आप सब सही राह पर चलें, और देश को २०११ तक VISHAV GURU बनाने मैं सहयोग दें.

    नारायण हरि
    नारायण हरि
    नारायण हरि
    नारायण हरि

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  12. आसाराम बापू का कचा चिठा खोलती है येः वेबसाइट स्लेव कल्ट डॉट कॉम

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