देश के खेल मन्त्री, एम. एस. गिल, देश के एक खेल रत्न और भारतीय बेडमिण्टन टीम के कोच गोपीचन्द पुलेला को नहीं पहचान पाए ।
बीजिंग ओलम्पिक में हिस्सा लेने के बाद लौटी यह टीम जब खेल मन्त्री से मिलने पहुंची तो गिल साहब ने, टीम की सदस्य सायना नेहवाल को तो पहचान लिया लेकिन उनके साथ खड़े गोपीचन्द पुलेला से पूछ लिया - आप कौन ? लोगों को हैरानी हुई लेकिन खुद पुलेला को बुरा नहीं लगा ! उन्होंने इस बात को बहुत ही सहजता से लिया । कोई खिलाड़ी ही इतना सहज हो सकता है ।
मुझे दो प्रसंग याद आ गए । पहला प्रसंग बाबू घनश्याम दासजी बिड़ला और ‘त्रासदी सम्राट’ दिलीप कुमार को लेकर है ।
दोनों एक ही विमान में, एक्जिक्यूटिव क्लास में यात्रा कर रहे थे । बिड़लाजी अपने कागज-पत्तर खोल कर अपने काम-काज में लग गए । दिलीप कुमार के पास कोई काम नहीं था । वे बिड़लाजी को काम करते देखते रहे । कुछ ही क्षणों में दिलीप कुमार असहज हो गए । उन्हें लगा कि सहयात्री जानबूझ कर उनकी अनदेखी कर रहा है । सो, उन्होंने आगे रहकर अपना परिचय दिया - ‘मैं, दिलीप कुमार ।’ बिड़लाजी ने भी शिष्टाचार निर्वहन करते हुए अपना परिचय दिया - ‘मैं, घनश्याम दास बिड़ला । आपसे मिलकर अच्छा लगा ।’ कह कर वे फिर अपने कागज-पत्तर पलटने लगे ।
दिलीप कुमार और अधिक असहज हो गए । उन्हें बिलकुल ही अच्छा नहीं लगा । तहजीब, शराफत, नफासत पसन्द दिलीप साहब ने एक बार फिर अपने बारे में बताया । बिड़लाजी ने मुस्कुरा कर कहा - ‘हां, अभी ही तो आपने अपना परिचय दिया है ।’ दिलीप साहब ने कहा -‘हां, लेकिन लगता है, आपने मुझे पहचाना नहीं ।’ बिड़लाजी ने तनिक संकोच से कहा -‘आपने बिलकुल ठीक कहा । मैं ने वाकई में आपको नहीं पहचाना । आप क्या करते हैं ?’
यह सवाल सुन कर ‘त्रासदी सम्राट’ को कैसा लगा होगा, इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है । लेकिन उन्हें इतना समझ आ गया कि बिड़लाजी वास्तव में उन्हें नहीं पहचानते । उन्होंने कहा - ‘मैं फिल्म कलाकार हूं ।’ अब बिड़लाजी और अधिक संकोचग्रस्त हो गए । इस बार तनिक अधिक विनम्रता से, तनिक झिझकते हुए बोले -‘माफ कीजिएगा । मैं फिल्में नहीं देख पाता ।’ दिलीप साहब को इस बार बिलकुल ही बुरा नहीं लगा । बिड़लाजी की दशा, मनोदशा और वास्तविकता का भान उन्हें भली प्रकार हो गया और उस सफर में उन्हें फिर कोई मानसिक असुविधा नहीं हुई ।
दूसरा किस्सा मध्यप्रदेश के तत्कालीन (अब दिवंगत) मुख्य मन्त्री, लौह पुरुष पण्डित द्वारका प्रसादजी मिश्र का है । सागर के विधायक डालचन्दीजी जैन उनके मन्त्रि मण्डल के सदस्य थे । उन दिनों, मन्त्रियों को अपने मुख्य मन्त्री की चापलूसी नहीं करनी पड़ती थी और अपनी कुर्सी बचाए-बनाए रखने के लिए चैबीसों घण्टे मुख्यमन्त्री के आसपास नहीं बना रहना पड़ता था ।
अपने विधान सभा क्षेत्र की कुछ समस्याओं का निदान कराने के लिए डालचन्दजी जैन, अपने क्षेत्र के प्रतिनिधि मण्डल के साथ मिश्रजी से मिलने पहुंचे । मिश्रजी ने सबको आदर-सम्मान से बैठाया, आव-भगत की और सबका परिचय प्राप्त किया । डालचन्दजी ने अपना नाम बताया तो मिश्रजी बोले -‘क्या संयोग है ! आपके नाम के ही एक सज्जन हमारे मन्त्रि मण्डल के सदस्य हैं ।’ प्रतिनिधि मण्डल के तमाम सदस्य हैरत से कभी डालचन्दजी को तो कभी मिश्रजी को देखने लगे । डालचन्दजी की स्थिति विचित्र हो गई । लेकिन मिश्रजी का स्वभाव डालचन्दजी और उनके साथ आए प्रतिनिधि मण्डल के तमाम सदस्य भली प्रकार जानते थे । डालचन्दजी ने कहा -‘वह मैं ही हूं ।’ इस बार मिश्रजी के असहज होने की बारी थी । मिश्रजी ‘माफ करना भाई ।’ के सिवाय और कुछ नहीं कह पाए ।
ऐसे में, बेडमिण्टन जैसे, लगभग महत्वहीन खेल की राष्ट्रीय टीम के कोच को यदि देश का नया-नया खेल मन्त्री न पहचान पाया हो तो आश्चर्य की कोई बात नहीं ।
मैं अगर दिलीप कुमार की जगह होता तो बिड़ला जी का पूरा आनंद लेने के बाद ही बताता कि मैं दिलीप कुमार हूँ।
ReplyDeleteदिलीप साहब खुद बहुत शर्मिंदा हो गए थे, बिड़ला जी भारतीय उद्योग जगत के दिलीप कुमार थे, लाखों लोगों के रोजगार और देश के विकास में, उनके आगे दिलीप कुमार मतलब शून्य
Deleteत्रासदी तो है पर अचरज नहीं हुआ.
ReplyDeleteबढ़िया संस्मरण। अभी कुछ दिन पहले मैं भी एक साथी अधिकारी को पहचान न पाया - चार साल बाद मिल रहे थे। बहुत झेंप लगी जब उन्होंने परिचय दिया।
ReplyDeleteआपको जन्माष्टमी के शुब अवसर पर शुभकामनाएं!
ReplyDeleteएक बार मेरे साथ भी ऐसा हो चूका हे. में एक बार बॉम्बे से जयपुर इंडियन एयर लाइंस के प्लेन से आ रहा था तब मेने भी एक फिल्म कलाकार को नहीं पहचाना था जो उदैपुर के रहेने वाले हे वो मेरे बिलकुल करीब बैठे थे हा यह बात जरूर हे की उन्होंने मुझे अपना परिचय नहीं दिया उनके जाने के बाद जब वो उदैपुर उतर गए थे तब एयर होस्टेस ने बताया था की बो मिलिंद सोमंद थे .
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