देखन में छोटी लगैं


कुछ बातों को लेकर मैं असमंजस में हूँ । स्वयम् को खूब टटोलने-खंगालने के बाद भी इन बातों के उत्तर पाने में असफल ही रहा । आपमें से कोई मेरी सहायता करेंगे, इस आशा से अपनी ये उलझनें सार्वजनिक कर रहा हूँ ।


मेरे नगर में आए दिनों प्रदर्शन होते रहते हैं । विभिन्न संगठन, राजनीतिक दल अपनी विभिन्न माँगों की ओर राज्य या केन्द्र शासन का ध्यानाकर्षित करने के लिए, जुलूस की शकल में, नगर के विभिन्न भागों से होते हुए कलेक्टोरेट पहुँचते हैं - सम्बन्धितों के नाम ज्ञापन लेकर । कलेक्टर कार्यालय के बाहर पहले थोड़ी देर नारेबाजी होती है । थोड़ी देर में कलेक्टर या उसका कोई प्रतिनिधि बाहर आता है । प्रदर्शनकारियों का नेता उसकी उपस्थिति में ज्ञापन का सार्वजनकि वाचन करता है और सबके सामने वह ज्ञापन कलेक्टर या उसके प्रतिनिधि को सौंपता है । ज्ञापन वाचन की समयावधि में कलेक्टर या उसका प्रतिनिधि अपनी सम्पूर्ण उदासीनता, तटस्थता और वीतराग भाव से, ‘मुद्राविहीन मुद्रा‘ में खड़ा रहता है । स्थानीय समाचार चैनलों और अखबारों में यह दृष्‍य आप-हम सब प्रायः ही देखते रहते हैं । और सब तो ठीक है लेकिन कलेक्टर या उसके प्रतिनिधि की उपस्थिति में ज्ञापन वाचन का औचित्य मेरी समझ में आज तक नहीं आया है । कलेक्टर या उसके प्रतिनिधि को उस ज्ञापन पर कोई कार्रवाई नहीं करनी है । ज्ञापन लेकर, जावक शाखा को सौंप देना है जो उस ज्ञापन को, कलेक्टर के औपचारिक पत्र के साथ सम्बन्धित को भेज देता है । ज्ञापन की विषय वस्तु में संगठन के सदस्यों या प्रदर्शनकारियों के अतिरिक्त और किसी की रुचि नहीं होती । (सम्भव है, उनकी भी रुचि न हो ।) मैं आज तक नहीं समझ पाया कि कलेक्टर या उसके प्रतिनिधि को ज्ञापन, पढ़कर क्यों सुनाया जाता है ? कलेक्टर या उसके प्रतिनिधि के आने से पहले, प्रदर्शनकारियों को पढ़कर क्यों नहीं सुना दिया जाता ? इस रहस्य को जानने की जिज्ञासा बनी हुई है ।


अपने किसी दिवंगत परिजन की स्मृति में या अपने संगठन/संस्था के जीवित अथवा मृत नेता के जन्म/देहावसान दिवस पर लोगों को, प्रायः ही, शासकीय चिकित्सालयों के सामान्य वार्डों में भर्ती रोगियों को फल-बिस्किट आदि बाँटते हुए हम सब आए दिनों देखते रहते हैं । यह उदारता प्रायवेट वार्डों में भर्ती रोगियों के साथ क्यों नहीं बरती जाती ? निजी चिकित्सालयों में भी तो सामान्य वार्ड होते हैं ? लोगों का दुख न देख पाने से व्यथित ऐसे दानदाताओं को निजी चिकित्सालयों के रोगी याद क्यों नहीं आते ?


मैं भारत संचार निगम लिमिटेड का लेण्ड लाइन फोन ग्राहक हूँ । मुझे प्रति माह इसका बिल आता है । बिल के पीछे मेरा जन्म दिनांक और विवाह वर्ष गाँठ लिखने का मुद्रित-आग्रह इस बिल का स्थायी अंग है । मैं नियमित रूप से ये दोनों तारीखें वर्षों से लिखता चला आ रहा हूँ । प्रति वर्ष इन दोनों तारीखों पर अतिरिक्त सजग रहता हूँ (और प्रतीक्षा भी करता हूँ) कि शायद बीएसएनएल की ओर से अभिनन्दन/शुभ-कामना सन्देश आ जाए । लेकिन वर्षों से मेरी यह सजगता और प्रतीक्षा व्यर्थ जा रही है (और जिस प्रकार से यह संस्थान अभी भी ‘रूढ़ीवादी, दुराग्रही सरकारी विभाग’ की तरह काम कर रहा है उसके दृष्टिगत पूरा विश्‍वास है कि ऐसा सन्देश कभी आएगा भी नहीं ।) मैं समझ नहीं पा रहा हूँ मेरे जीवन की इन नितान्त व्यक्तिगत तिथियों में बीएसएनएल की रुचि क्यों बनी हुई है ?


नगर में होने वाले अनेक आयोजनों/कार्यक्रमों के निमन्त्रण मुझे प्रायः ही प्राप्त होते हैं । उनमें से कुछ में उपस्थित हो पाता हूँ, कुछ में नहीं । जहाँ नहीं पहुँच पाता हूँ उनके आयोजकों से मैं ने क्षमा याचना करनी चाहिए और जहाँ पहुँच पाना सम्भव नहीं हो वहाँ, आयोजन की सफलता के प्रति शुभ-कामनाएँ पहुँचानी चाहिए और धन्यवाद ज्ञापन तो दोनों ही स्थितियों में किया ही जाना चाहिए - यह भावना मन में बार-बार उठती है । किन्तु ऐसा कर नहीं पाता क्यों कि निमन्त्रण पत्र में पदाधिकारियों के नाम तो होते हैं लेकिन संस्था का या पदाधिकारियों में से किसी का भी डाक का पता या फोन नम्बर नहीं होता । इतनी महत्वपूर्ण बात जानबूझकर छोड़ दी जाती हो या अनजाने में, लेकिन ऐसा क्यों होता है ? और यह जानने की इच्छा तो और अधिक होती है कि अधिकांश निमन्त्रण पत्रों में यह समानता कैसे और क्यों बनी हुई होती है ?


अभी, दीपावली पर मुझे अनेक कृपालुओं ने, अभिनन्दन और शुभ-कामना सन्देश एसएमएस से भेजे । सन्देश के अन्त में अपना नाम लिखने वाले, इनमें से गिनती के ही थे वर्ना अधिकांश एसएमएस ‘गुमनाम’ ही थे । ऐसा केवल मेरे साथ नहीं हुआ होगा । ‘गुमनाम’ एसएमएस भेजने वाले कृपालुओं ने मेरी स्मरण शक्ति पर विश्‍वास किया यह तो मुझ पर उनकी कृपा है । लेकिन ऐसे कृपालुओं के नाम मैं आज तक नहीं जान पाया । अपनी टेलीफोन डायरी में मैं ने सामने वालों के नाम या कुलनाम (सरनेम) के अनुसार टेलीफोन नम्बर लिख रखे हैं । ‘कौन सा एसएमएस किसने भेजा है’ इसकी तलाश के लिए मुझे प्रत्येक मोबाइल नम्बर के लिए पूरी डायरी में लिखे नाम जाँचने पड़ेंगे । याने, जितने ‘अनाम एसएमएस’ उतनी ही बार मुझे पूरी डायरी खंगालनी पड़ेगी - इस विचार मात्र से मुझे थकान हो आई । नतीजा - मैं ने ऐसे एक भी एसएमएस पर ध्यान न देने का अपराध किया । जो लोग आठ-दस पंक्तियों के एसएमएस लिखने का दुरुह काम सहजता से कर लेते हैं वे, अपना नाम लिखने में आलस क्यों कर बैठे ? और, क्या उन्होंने ठीक किया ?


बातें बहुत ही छोटी और 'बेबात की बात' लगती हैं । लेकिन क्या सचमुच में ये छोटी और महत्वहीन हैं ?

(यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का उल्लेख अवश्य करें । यदि कोई कृपालु इसे मुद्रित स्‍‍वरूप प्रदान करता है तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्‍‍य भिजवाएं । मेरा पता है - विष्‍‍णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्‍बर-19, रतलाम (मध्‍य प्रदेश) 457001)

3 comments:

  1. इअतनी बड़ी बड़ी बातें..काहे की छोटी कहवायें...बेहतरीन लेखन!!

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  2. लेकिन क्या सचमुच में ये छोटी और महत्वहीन हैं ?
    " aapke kee soch or preshanee jayej hai.... ye batyn naa to chotee hain hai naa hee mehtvheen hain...ye anmol hain or bhut importance rektee hain, pr jinse aap shayad umeed kr rhen hain unhe in bhavnao kee koee kadar nahee hai.."

    regards

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  3. सवाल कभी जवाब भी होते है।
    हम जीवन में बहुत सारी नाटकीयता लिए होते हैं। आप ने कुछ के दर्शन करा दिए।

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