मेरी झोली छोटी पड़ रही है

पूरा सप्ताह बीत गया। अनमनापन और अलालपन मन पर इस तरह छाया हुआ है कि कुछ भी करने को जी नहीं कर रहा। कुछ ऐसा और इतना कि कृतज्ञता ज्ञापित करने का न्यूनतम शिष्टाचार नहीं निभाने का गम्भीर अपराध कर बैठा।


इक्कीस अप्रेल की सुबह चाँदनीवालाजी ने उठाया। फोन पर बधाई देते हुए बोले - ‘आज तो आप छा गए।’ मुझे कुछ भी पता नहीं था। मैंने जिज्ञासा प्रकट की तो बताया कि ‘दैनिक भास्कर’ में भारतीय कर्मचारियों के गीता-सूत्र छापते हुए मुझे भरपूर जगह दी गई है। तब तक मेरे यहाँ अखबार नहीं आए थे। अखबार आते, उससे पहले दो फोन और आ गए। ‘मार्निंग’ सचमुच में ‘गुड’ हो रही थी।


अखबार आए तो मालूम हुआ कि फोन पर जो कुछ बताया गया था, उससे कहीं अधिक, बहुत अधिक हुआ था। ‘दैनिक भास्कर’ ने उसी दिन से ‘ब्लॉगर्स पार्क’ नाम से नया स्तम्भ शुरु किया था और यह शुरुआत मुझसे की थी। मुझे रोमांच हो आया। झुरझुरी आ गई। दो दिन पहले, मंगलवार को ही तो मैं ‘दैनिक भास्कर’ के कार्यकारी सम्पादक भाई महेन्द्र कुमार कुशवाह के पास डेड़ घण्टा बैठा था! उन्होंने गन्ध भी नहीं लगने दी! यह अवश्य कहा था कि शहर को लेकर कुछ नया शुरु करनेवाले हैं। लेकिन यह ‘नया’ ‘ऐसा कुछ’ होगा, इसका अनुमान नहीं था।


महेन्द्रजी को तत्काल ही धन्यवाद देने की इच्छा हुई किन्तु सोचा, दैनिक अखबार का मामला है। पता नहीं रात कितने बजे सोये होंगे। सो, आठ बजने की प्रतीक्षा करता रहा। उनसे बात की तो वे नई शुरुआत से कम और मुझे ‘चकित करने में’ कामयाब होने पर अधिक खुश लगे। उन्होंने बताया कि मंगलवार को जब मैं उनके सामने बैठा था, उसी समय वे और भाई नीरज शुक्ला, मुझसे शुरु किए जानेवाले इस स्तम्भ को अन्तिम स्वरूप दे रहे थे। उन्हें धन्यवाद देकर ‘नीरु बाबा’ (भाई नीरज शुक्ला) को धन्यवाद दिया तो वह भी ‘चकित कर देने’ के लिए ज्यादा खुश मिला। उसके बादसे मेरा फोन काफी देर तक व्यस्त रहा।


इस बीच, 'आत्‍‍म-मन्थन' वाले हाशमीजी ने 'ब्‍‍लाग्‍स इन मीडिया' को इस प्रकाशन की सूचना का ई'मेल कर इसे अपनी सूची में शामिल करने का आग्रह किया। यह हुआ ही था कि पाबलाजी के जरिए, इसे 'ब्लाग्‍स इन मीडिया' मे शामिल कर लिए जाने की सूचना भी मिल गई।


वह दिन और आज का दिन। रोज एक-दो फोन आ रहे हैं, दो-चार, दो-चार लोग चर्चा कर रहे हैं, बधाई दे रहे हैं, प्रशंसा कर रहे हैं। इतनी कि मेरी झोली छोटी पड़ गई है। यह सब मेरी पात्रता, योग्यता, अपेक्षा, से अधिक है। बहुत अधिक। और इस सबके पीछे है - ब्लॉग और मुझे सहारा देनेवाले कृपालु ब्लॉगर मित्र। ब्लॉग से मुझे मेरे ही कस्बे में अतिरिक्त पहचान, स्थापना और प्रतिष्ठा मिल रही है। मैं स्वीकार करता हूँ कि मुझे इसका व्यावसायिक लाभ भी मिलेगा ही।


यह सब मैं अपने ब्लॉग गुरु श्री रवि रतलामी को अर्पित करता हूँ। मैं आप सब ब्लॉगर मित्रों का आभारी हूँ जो मेरी पीठ थपथपाने का कोई अवसर खाली नहीं छोड़ते। मेरा हौसला और मनोबल बढ़ाते हैं और जब-जब भी मुझे कोई कठिनाई होती है तब-तब, सहायता करते हैं, रास्ता दिखाते हैं।


मैं समझ नहीं पा रहा हूँ क्या कहूँ? क्या करूँ? आभार, धन्यवाद और कृतज्ञता जैसे शब्द मुझे अपर्याप्त और बौने अनुभव हो रहे हैं। खुद को टटोलता हूँ तो बड़े शून्य से अधिक कुछ भी हाथ नहीं आता। जो कुछ हूँ, अपने ब्लॉग-गुरु और तमाम ब्लॉगर मित्रों के कारण हीतो! आप सबका कृपापूर्ण सहयोग और संरक्षण मुझे इसी प्रकार मिलता रहे, यही याचना कर पा रहा हूँ। अपने स्तर पर, फटी झोलीवाला मैं नौसिखिया ब्लॉगर आप सबसे वादा करता हूँ कि अपनी जानकारी में मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूँगा जिससे ब्लॉग को, मेरे ब्लॉग-गुरु को और आप सबको मेरे कारण संकोच की स्थिति में आना पड़े। मैं वादा करता हूँ मैं यथा सम्भव पूर्ण सतर्क, सजग और सचेष्ट रहूँगा कि यदि मेरे कारण आप सबका मान-सम्मान बढ़ न सके तो वह कम भी नहीं हो।

मुझे आशीर्वाद दीजिएगा और ईश्वर से मेरी सफलता के लिए कामना कीजिएगा।

13 comments:

  1. जय हो! हार्दिक बधाई, विष्णु जी!

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  2. हार्दिक बधाई आपको...आप तो वाकई छा गये.

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  3. उपयुक्‍त सामग्री, उपयुक्‍त स्‍थान पर, हार्दिक बधाई.

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  4. हार्दिक बधाईयाँ
    आप लिखते ही इतना बढिया हैं जी

    प्रणाम

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  5. और, इधर आपके ब्लॉग गुरू चने के झाड़ पर चढ़े हुए हैं, उतरने का नाम ही नहीं ले रहे :)

    वैसे, यह आपकी नम्रता है, अन्यथा और कुछ नहीं बल्कि आपकी लेखन शैली और आपके व्यक्तित्व की ईमानदारी ही है जिसके कारण आपकी लेखनी पैनी और सफल है.

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  6. हार्दिक बधाईयाँ|

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  7. हार्दिक बधाईयाँ| लेकिन इन समाचार पत्रो ने कुछ मेहनताना भी दिया या यूही खु॑श कर दिया.

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  8. बहुत बधाई हो। सुन्दर पोस्ट थी वह।

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  9. बधाईयाँ एवं शुभकामनाएं…

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