बाबा रामदेव! मैं हितैषी हूँ, चापलूस नहीं।

प्रिय बाबा रामदेव,

इस बार, पहले से कहीं अधिक चिन्तित होकर यह सब लिख रहा हूँ। पहले की ही तरह इस बार भी देश के, मेरे तथा आपके सरोकारों की चिन्ता के अधीन ही यह सब लिख रहा हूँ।

आज मैंने अखबारों में आपका वक्तव्य पढ़ा कि अगले लोकसभा चुनावों के लिए अपना राजनीतिक दल बनाने का निर्णय तो आप जून के बाद करेंगे किन्तु आपने यह स्पष्ट कर दिया है कि आप अपना राजनीतिक दल बनाएँ या नहीं, प्रत्येक संसदीय क्षेत्र से आपका अपना कोई उम्मीदवार होगा अवश्य। अपना राजनीतिक दल नहीं बनाने की स्थिति में आप विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों में से अपने मानदण्डों के आधार पर योग्य उम्मीदवार का निर्धारण कर, उसे समर्थन देंगे।

अपना राजनीतिक दल बनाने या विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों में से अपना उम्मीदवार तय करने का आपका कोई भी निर्णय सही नहीं है। आपकी भावना बहुत ही अच्छी है और इरादे नेक। किन्तु याद रखिए, आपको शर्तें और कानून-कायदे उसी अखाड़े के मानने पड़ेंगे जिसमें आप कुश्ती लड़ रहे हैं और आप खुद जानते हैं कि यह अखाड़ा आपका नहीं है।

यदि आप अपना राजनीतिक दल बनाएँगे तो देश के तमाम राजनीतिक दल स्वतः ही

आपके विरोधी हो जाएँगे और जिस प्रचण्ड जनसमर्थन के भरोसे आप सदाशयतापूर्वक यह साहस कर रहे हैं, वह जनसमर्थन शून्य प्रायः हो जाएगा क्योंकि आपकी जयकार करनेवालों में से अधिकांश लोग पहले से ही किसी न किसी पार्टी से प्रतिबद्ध हैं और इसीलिए वे ‘पार्टी लाइन’ पर चलेंगे।

जरा याद कीजिए, आपका नार्को टेस्ट कराने की कांग्रेसियों की माँग के जवाब में आपने अपनी सहमति सार्वजनिक रूप से देते हुए कहा था कि आपके साथ ही साथ तमाम सांसदों, मुख्यमन्त्रियों, विधायकों का भी नार्को टेस्ट कराया जाए। तब, राजनेताओं में से एक भी माई का लाल आपके समर्थन में नहीं आया था। वे नेता भी चुप रहे थे जो दिल्ली रैली में आपके मंच पर उपस्थित थे। जाहिर है कि वे सब तब तक ही आपका समर्थन करेंगे जब तक कि आप उनके लिए लाभदाय बने रहें या हानिकारक न बनें। जैसे ही आप अपना राजनीतिक दल बनाएँगे, उसी क्षण, आपके ऐसे तमाम समर्थक आपके प्रतिद्वन्द्वी बन जाएँगे और आपको ‘निपटा’ कर ही चैन लेंगे।

यदि आपने अपना राजनीतिक दल नहीं बनाया और विभिन्न दलों के उम्मीदवारों में से अपने मानदण्डों के अनुकूल उम्मीदवारों को समर्थन दिया तो भी आपकी दशा ‘सब कुछ लुटा कर होश में आए’ जैसी होगी। आपके समर्थन से चुने गए, ऐसे उम्मीदवार अपने-अपने दल से बँधे रहने को (अभिशप्त होने की सीमा तक) विवश रहेंगे। सदनों में, विभिन्न मुद्दों पर अपने-अपने दल के ‘व्हीप’ से बँधे रहेंगे और तब आश्चर्य मत कीजिएगा यदि वे आपके विचारों के प्रतिकूल आचरण करें।

इसलिए, तनिक संयत होकर, विवेक से अपने निर्णयों पर पुनर्विचार करें।

आपको विश्वास हो न हो, मुझे विश्वास है कि आप देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला सकते हैं। किन्तु इसके लिए आपको ‘निरपेक्ष’ भाव से अपना अभियान चलाना पड़ेगा। यदि आप ‘भ्रष्टाचार’ के विरुद्ध अभियान चलाएँगे तो सारा देश, अपनी-अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता ताक पर रखकर आपके पीछे हो जाएगा। किन्तु आप यदि किसी ‘व्यक्ति विशेष’ या ‘दल विशेष’ के भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान चलाएँगे तो वह व्यक्ति/दल और उसके समर्थक स्वाभाविक ही आपके विरोध में सड़कों पर उतर आएँगे। उस दशा में आपके अभियान की असफलता सुनिश्चित है।

आप मानें या न मानें, देश के तमाम राजनीतिक विचारकों और सुधारकों की यह सुनिश्चित धारणा है कि हमारे मँहगे चुनाव ही सारे भ्रष्टाचार की जड़ हैं। जिस दिन चुनाव सस्ते हो जाएँगे, उस दिन नेताओं को ‘चुनावी खर्च की वसूली’ और ‘अगले चुनाव की तैयारी’ के नाम पर धन संग्रह की चिन्ता नहीं रहेगी और वे अधिक ईमानदारी (या कम बेईमानी) से काम करेंगे।

चुनाव सुधार कौन-कौन से हों, इस पर आप मुझसे असहमत हो सकते हैं। उस दशा में आप सरकार पर यह दबाव तो फौरन ही बना सकते हैं कि चुनाव आयोग ने जिन सुधारों के प्रस्ताव सरकार को भेज रखे हैं, उन्हें जस का तस स्वीकार कर लिया जाए। आपके पास अपने सुझाव भी हो सकते हैं। लेकिन तय मानिए कि चुनाव सुधारों के बिना देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति नहीं मिल सकती फिर भले की करोड़ों रामदेव अभियान चला लें।

मैं आपमें, मेरे सपने को साकार होते देख रहा हूँ। मैं आपको असफल होते नहीं देखना चाहता। क्योंकि आपकी असफलता का अर्थ होगा - मेरे जवान सपने की मौत।

बरसों बाद देश में कोई एक ऐसा आदमी मैदान में आया है जिसके पीछे लोग आँखें मूँदकर चलने को तैयार हैं। लेकिन यह याद करने की (और चौबीसों घण्टे याद रखने की भी) कोशिश कीजिए कि वे सब आपके पीछे किसी राजनीति कारण या राजनीतिक आह्वान के अधीन नहीं आए हैं। वे सब आपके पीछे इसलिए आए हैं क्योंकि वे सब, राजनीतिज्ञों से निराश हो चुके हैं और आप ‘राजनीतिज्ञ’ नहीं हैं। राजनीतिज्ञों द्वारा लाए गए और लाए जानेवाले परिवर्तन उनके ( राजनीतिज्ञों के) अनुकूल होते हैं और राजनीतिकों द्वारा लाए जानेवाले परिवर्तन देश के, देश के नागरिकों के अनुकूल होते हैं। कृपया इस सूक्ष्म अन्तर को और इसकी व्यंजना को अनुभव करें और ईश्वर ने आपको ‘युग पुरुष’ बनने का जो सुअवसर प्रदान किया है, उसे हाथ से बिलकुल न जाने दें।

सम्भव है, मेरी बातें आपको अनुकूल, प्रिय और सुखकर न लगें। किन्तु मैं क्या करूँ? इस समय तो आप मेरे वह नायक हैं जो राष्ट्रीय चरित्र में आमूलचूल परिवर्तन ला सकता है। मैं आपका हितैषी हूँ, चापलूस नहीं। चापलूस को अपनी चिन्ता होती है और (अपने नायक के आसपास) अपनी स्थिति सुरक्षित और निरापद बनाए रखने के लिए हाँ में हाँ मिलाता है और अपने नायक की मनपसन्द बातें करता है जबकि हितैषी अपने नायक की सार्वजनिक छवि और प्रतिष्ठा की चिन्ता करता है और अपने नायक को विचलन, स्खलन से बचाने की कोशिश करता है।

आपका, विष्णु बैरागी

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आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने हेतु मैं प्रस्तुत हूँ। यदि अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे airagivishnu@gmail.com पर मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।

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6 comments:

  1. बिलकुल सही विवेचना....

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  2. हमारे विचार भी शत प्रतिशत यही हैं।

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  3. बहुत उचित सलाह दी है आपने.

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  4. राजनीति से दूर रह कर अधिक जन सेवा की जा सकती है। राजनीति के दलदल में फंसने की बजाय कमल बनिए... भाजपा वाला नहीं:)

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  5. विचारणीय प्रश्न हैं।

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  6. मैं आपमें, मेरे सपने को साकार होते देख रहा हूँ। मैं आपको असफल होते नहीं देखना चाहता। क्योंकि आपकी असफलता का अर्थ होगा - मेरे जवान सपने की मौत।

    बहुतों की आस जागी है... ज़रूरत है अभय हो कर प्रयास करने की... ईमानदार प्रयास सफलता अवश्य लाता है

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