यह घटना इसी रविवार, तेरह अगस्त की है। यह घटना मुझे इसके नायक ने आमने-समाने बैठकर सुनाई है। वास्तविकता मुझे बिलकुल ही नहीं मालूम।
इस घटना का नायक मध्य प्रदेश सरकार के, ग्रामीण सेवाओं से जुड़े विभाग का कर्मचारी है। उसके जिम्मे 19 गाँवों का प्रभार है। प्रदेश सरकार ने इस विभाग के सभी अधिकारियों, कर्मचारियों को एक-एक सिम दे दी है। इनके लिए एण्ड्राइड फोन अनिवार्य है। सबको वाट्स एप से जोड़ दिया गया है और कह दिया गया है कि वाट्स एप पर मिले सन्देश को राज्य सरकार का औपचारिक और आधिकारिक आदेश माना जाए। इस आख्यान का नायक भी ऐसा ही एक सिम/मोबाइलधारी कर्मचारी है।
इस नायक की ससुराल इसके कार्यस्थल से लगभग नब्बे किलो मीटर दूर है। इसके साले का रिश्ता लेकर मेहमान, तेरह अगस्त रविवार को इसके ससुराल पहुँचे थे। नायक अपनी ससुराल में सबसे बड़ा दामाद है। इस प्रसंग पर इसे पहुँचना ही था। सब कुछ पहले से तय था। अपने नियन्त्रक अधिकारी को सूचित कर और अनुमति लेकर कथा-नायक उस दिन अपनी सुसराल में था। दोपहर, भोजन के बाद सब लोग विश्राम मुद्रा में चर्चारत थे। अपराह्न लगभग साढ़े चार बजे वाट्स एप पर सन्देश आया - प्रदेश के मुख्य मन्त्री शाम छः से साढ़े छः बजे के बीच प्रदेश के किसानों को टेलिविजन पर सम्बोधित करेंगे। समस्त प्रभारी अपने-अपने प्रभार के समस्त गाँवों के किसानों को यह सन्देश सुनना/देखना सुनिश्चित कर शाम सात बजे तक सूचित करें कि किस-किस गाँव में कितने-कितने किसानों ने यह सन्देश देखा/सुना।
सन्देश पाकर हमारा यह नायक परेशान हो गया। उसने तत्काल अपने नियन्त्रक अधिकारी से बात की। अपनी स्थिति बताई और पूछा - ‘सर! आप ही बताईये! क्या करूँ?’ अधिकारी को भी सन्देश मिल चुका था। उसे अनुमान था कि इस कथा-नायक का फोन आएगा ही आएगा। अधिकारी ने कहा - ‘परेशान मत होओ। तसल्ली से अपना काम निपटाओ। अपने प्रभार के सारे गाँवों के नाम तो तुम्हें याद हैं ही। अभी तुम्हारे पास बहुत समय है। गाँव-वार आँकड़े तैयार कर लो। गाँवों की और किसानों की संख्या जरा कम बताना। ठीक सात बजे आँकड़े मत भेज देना। सात दस या सवा सात पर भेजना।’ कथा-नायक को राहत और खुशी तो हुई लेकिन निश्चिन्त नहीं हो सका। पूछा - ‘लेकिन सर! कहीं ऐसा तो नहीं कि दो घण्टे बाद फोटू या रेकार्डिंग भेजने का मेसेज आ जाए? ऐसा हो गया तो मैं तो मर जाऊँगा सर! आप भी नहीं बचा पाएँगे।’ अफसर ने ढाढस बँधाया - ‘उसकी चिन्ता मत करो। नहीं माँगेंगे। मैंने तलाश कर लिया है। और माँगें तो तुम मेरा नाम बता देना। कह देना कि तुमने मुझे दे दिए हैं। मैं निपट लूँगा।’
हमारे कथा-नायक ने अपने नियन्त्रक अधिकारी को रुँधे कण्ठ से बार-बार धन्यवाद दिया। अधिकारी के कहे अनुसार अपने प्रभार के गाँवों के आँकड़े भेज दिए। लेकिन उस रात वह सो नहीं सका। नींद बार-बार उचटती रही। जब भी मोबाइल पर नोटिफिकेशन की ‘टूँ-टूँ’ हुई, वह दहशतजदा होता रहा। उसे लगता रहा कि मुख्यमन्त्री का सन्देश सुन/देख रहे किसानों के फोटू/रेकार्डिंग भेजने का सन्देश आ गया है। सुबह होते-होते उसे नींद आ पाई।
तीन दिन बाद, अब जाकर वह बेफिक्र हुआ। अपने नियन्त्रक अधिकारी के बंगले पर ‘थैंक्स गिविंग सेरेमनी’ सम्पन्न कर लौटते हुए मेरे पास आया है। दुनिया का सर्वाधिक सन्तुष्ट, प्रसन्न और निश्चिन्त प्राणी लग रहा है।
प्रदेश के, उसके जैसे तमाम ग्राम-प्रभारियों ने ऐसी ही निष्ठा, लगन और कुशलता से कर्तव्य निर्वहन किया होगा। आँकड़े पा कर मुख्यमन्त्री गद् गद हुए होंगे। भेज कर हमारा कथा-नायक तो गद् गद है ही।
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सरकारी काम ऐसे ही होते है । तुगलकी आदेश भी निकलते रहते है । इससे कोई भी सरकार मुक्त नही होना चाहती है । प्राइवेट कंपनियों की भी कमोबेश यही स्थिति रहती है ।
ReplyDeleteसरकारी काम ऐसे ही होते है । तुगलकी आदेश भी निकलते रहते है । इससे कोई भी सरकार मुक्त नही होना चाहती है । प्राइवेट कंपनियों की भी कमोबेश यही स्थिति रहती है ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-08-2017) को "चौमासे का रूप" (चर्चा अंक 2702) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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ReplyDeleteपुनर्वित्त,
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