चीनी सामान का बहिष्कार याने रुई लपेटी आग

देश में इन दिनों उग्र राष्ट्रवाद और कट्टर धर्मान्धता की अफीम का समन्दर ठाठें मार रहा है। भ्रष्टाचार और कालेधन का खात्मा न होना, बढ़ती बेरोजगारी, स्कूलों-कॉलेजों में दिन-प्रति-दिन कम होते जा रहे शिक्षक, घटती जा रही चिकित्सा सुविधाएँ, किसानों की बढ़ती आत्महत्याएँ जैसे मूल मुद्दे परे धकेल दिए गए हैं। असहमत लोगों को देशद्रोही घोेषित करना और विधर्मियों का खात्मा मानो जीवन लक्ष्य बन गया है।

लेकिन सब लोगों को थोड़ी देर के लिए मूर्ख बनाया जा सकता है। कुछ लोगों को पूरे समय मूर्ख बनाए रखा जा सकता है। किन्तु सब लोगों को पूरे समय मूर्ख नहीं बनाए रखा जा सकता। 

जून और जुलाई के पूरे दो महीने मैं फेस बुक से दूर रहा। गए कुछ दिनों से सरसरी तौर पर देखना शुरु किया। इसी क्रम में राजेश कुमार पाण्डेय की एक पोस्ट नजर आई। घटना सम्भवतः बस्ती (उत्तर प्रदेश) की है। यह पोस्ट मैंने भी साझा की। उसके तीन स्क्रीन शॉट यहाँ दे रहा हूँ। इनमें पूरी पोस्ट पढ़ी जा सकती है। सारी बात अपने आप में स्पष्ट है। अलग से कुछ कहने की आवश्यकता नहीं रह जाती।



लोग समझ तो शुरु से रहे थे और समझ रहे हैं लेकिन बोल कोई नहीं रहा था। अब लोगों ने बोलना शुरु कर दिया है। लोग ही क्यों? बोलना तो भाजपा सांसदों ने भी शुरु कर दिया है। यह अलग बात है कि वे चुप रह कर बोल रहे हैं। संसद के सदनों में अपने सांसदों की अनुपस्थिति से खिन्न प्रधान मन्त्री मोदी दो-दो बार उन्हें चेतावनी दे चुके लेकिन अनुपस्थिति का क्रम बना रहा। स्थिति यहाँ तक आ गई कि मोदी को धमकी देनी पड़ी - ‘2019 में देख लूँगा।’

यह सब देख-देख कबीर का एक दोहा बरबस ही याद आ गया। कबीरदासजी से क्षमा याचना सहित, उसमें ‘पाप’ को विस्थापित कर, ‘साँच’ का उपयोग कर रहा हूँ -

साँच छुपाए ना छुपे, छुपे तो मोटा भाग।
दाबी-दूबी ना रहे, रुई लपेटी आग।।

सच सामने आ रहा है। सच हमेशा ताकत देता है। इसी का असर है कि सच लोगों की जबान और सर पर चढ़कर बोलने लगा है। 

सत्य तो सनातन से परीक्षित है। झूठ को ही खुद को साबित करना पड़ता है। परास्त तो अन्ततः झूठ को ही होना है। तब तक सत्य को छोटे-छोटे संकट झेलते रहने पड़ेंगे।
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