इंगलैण्‍ड में असभ्‍यों की भाषा थी - अंग्रेजी

अंग्रेजी ने आज भले ही अन्‍तरराष्‍ट्रीय भाषा होने का भ्रामक दर्जा हा‍सिल कर रखा हो लेकिन कोई शायद ही विश्‍वास करे कि अपने ही देश में अंग्रेजी को हेय दृष्टि से देखा जाता था और खुद को सभ्‍य मानने/कहने वाले नागरिक इस भाषा में बात करना अपनी शान के खिलाफ समझते थे ।



इतिहास साक्षी है कि इंगलैण्‍ड पर फ्रांस का आधिपत्‍य था । 12वीं, 13वीं शताब्‍दी में फ्रेंच वहां के अभिजात्‍य वर्ग की भाषा थी और अंग्रेजी को देहातियों, अनपढों, किसानों, मजदूरों, नौकरों, भिखारियों, जाहिलों, गंवारों की भाषा माना जाता था । तब इंगलैण्‍ड में फ्रेंच के प्रति वही मोह, आकर्षण और 'क्रेज' था जो आज भारत में अंग्रेजी के प्रति है । अभिजात्‍य वर्ग अंग्रेजी में बात करना अपनी शान के खिलाफ मानता था ।


लेकिन मातृ भूमि के प्रति प्रेम और सम्‍मान सार्वभौमिक स्‍थायी भाव है । इसी के चलते अपनी मातृ भाषा के सम्‍मान की स्‍थापना की ललक मन में रखने वाले मातृ भाषा प्रेमी, अंग्रेजी को उसका स्‍थान और सम्‍मान दिलाने के लिए सतत् प्रयत्‍नरत और संघर्षरत थे । इसी कारण सन् 1362 में 'स्‍टेच्‍यूट ऑफ प्‍लीडिंग एक्‍ट' पारित हुआ और अदालतों में अंग्रेजी के उपयोग की अनुमति मिल गई । लेकिन जैसा कि होना ही था, इसका कडा विरोध हुआ । जजों, वकीलों ने अंग्रेजी में काम करने से साफ-साफ इंकार तो नहीं किया लेकिन तर्क किया कि विधि और न्‍याय क्षेत्र में जब अंग्रेजी पुस्‍तकें ही नहीं हैं तो अंग्रेजी में बहस कैसे हो सकेगी और अंग्रेजी में निर्णय कैसे दिए जा सकेंगे ? लिहाजा, उपरोक्‍त अधिनियम पारित होने के बावजूद सारा कामकाज फ्रेंच में ही होता रहा । लेकिन अंग्रेजी को, थोडा-थोडा और धीरे-धीरे ही सही, प्रश्रय मिलने लगा । यह देख कर कट्टरपंथियों ने फ्रेंच की पक्षधरता का मानो अभियान ही शुरू कर दिया । इनकी अगुवाई कर रहे जॉन बर्टन ने फ्रेंच के पक्ष में तीन प्रबल तर्क दिए - पहला : फ्रेंच आन्‍तरिक एवम् अन्‍तरराष्‍ट्रीय संचार का माध्‍यम है, दूसरा : कला, विज्ञान, वाणिज्‍य, विधि और प्रशासन की मानक पुस्‍तकें केवल फ्रेंच में ही उपलब्‍ध हैं और तीसरा : इंगलैण्‍ड के प्रेमी युगल, अपना प्रेम प्रदर्शन फ्रेंच भाषा में ही करते हैं ।


लेकिन मातृ भाषा प्रेमी इन और ऐसे तर्कों से न तो रूके, न हारे और न ही हतोत्‍साहित हुए । उन्‍होंने इस लडाई को भावनाओं के स्‍तर पर ला खडा किया । उन्‍होंने कहा कि वे मानते हैं कि फ्रेंच, लैटीन और ग्रीक भाषाओं की तुलना में अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी साहित्‍य, नगण्‍य, तुच्‍छ और हेय है लेकिन जैसी भी है, अंग्रेजी हमारी मातृ भाषा है । उन्‍होंने पूछा - क्‍या हम अपनी मां का तिरस्‍कार केवल इसलिए कर दें कि दूसरों की माताएं अधिक सुन्‍दर, अधिक सम्‍पन्‍न हैं ?



सन् 1582 में एक कवि ने कहा -


मैं रोम को ह्रदय से प्‍यार करता हूं
पर लन्‍दन को उससे भी अधिक चाहता हूं
मैं इटली को समर्थन देता हूं
पर इंगलैण्‍ड को उससे भी अधिक समर्थन देता हूं
मैं लैटीन का आदर करता हूं
पर अंग्रेजी की पूजा करता हूं


मातृ भाषा प्रेमियों को अन्‍तत: सफलता मिली और 17वीं शताब्‍दी के आरम्‍भ होते-होते दृढ निश्‍चय कर लिया गया कि अब इंगलैण्‍ड का सारा कामकाज अंग्रेजी में ही किया जाएगा । लेकिन निश्‍चय का क्रियान्‍वन आसान नहीं था । भावनाओं के धरातल पर लडी गई लडाई की सफलता, वास्‍तविकता और व्‍यावहारिकता के धरातल पर अपने आप में एक युध्‍द में बदलती दिखाई देने लगी । शब्‍दावली सबसे बडी समस्‍या बन कर सामने आई । हालत यह थी कि प्रशासन के क्षेत्र में केवल 'क्रिग' और 'क्‍वीन' ही शुध्‍द अंग्रेजी शब्‍द थे । क्‍या किया जाए ? प्रश्‍नों के बीहड में रास्‍ता निकाला गया - जो शब्‍द चलन में हैं, उन्‍हें जस का तस स्‍वीकार कर लिया जाए । मुश्किलें आसान हो गईं और प्रशासन के क्षेत्र में गवर्नमेण्‍ट, क्राउन, स्‍टेट, एम्‍पायर, रॉयल, पार्लियामेण्‍ट, असेम्‍बली, स्‍टेच्‍यूट, प्रिंस ड्यूक, मिनिस्‍टर, मैडम आदि तमाम शब्‍द फ्रेंच से लिए गए । इसी प्रकार विधि-न्‍याय के क्षेत्र में जस्टिस, क्राइम, बार, एडवोकेट, जज, पीटीशन, कम्‍पलेण्‍ट, सम्‍मन, वारण्‍ट आदि और दैनन्दिन व्‍यवहार में ड्रेस, फैशन, कॉलर, बटन, डिनर, फिश, टोस्‍ट, बिस्किट, क्रीम, शुगर, ऑरेंज आदि शब्‍द भी फ्रेंच से ले लिए गए । 'ए हिस्‍ट्री ऑफ इंगलिश लेंग्‍वेज' के अनुसार, फ्रेंच से 10 हजार शब्‍द लिए गए । इस प्रकार फ्रेंच तथा अन्‍य भाषाओं से 50 हजार से भी अधिक शब्‍द उधार लिए गए । लेकिन इस 'उधार की पूंजी' से अंग्रेजी क्लिष्‍ट हो गई और इसकी शुध्‍दता खतरे में पड गई । तब शुध्‍दता के मामले में उदार रुख अपनाया गया और विदेशी शब्‍दों के अर्थ के लिए पारिभाषिक शब्‍दावलियां तैयार की गईं । इसके बाद करने के नाम पर केवल आधिकारिक स्‍वीकृति और घोषणा का काम ही बचा था । सो, सन् 1755 में, डॉक्‍टर जॉनसन ने अंग्रेजी भाषा के प्रामाणिक शब्‍दकोश में इन 50 हजार शब्‍दों का समावेश कर, इन पर अंग्रेजी शब्‍द होने का ठप्‍पा लगा दिया । इसी के साथ, 12वीं शताब्‍दी में शुरु हुई, स्‍वभाषा के ससम्‍मान स्‍थापना की लडाई, 19वीं शताब्‍दी के मध्‍य काल में समाप्‍त हुई और इंगलैण्‍ड में अंग्रेजी लागू हो गई ।
----



विशेष - कृपया इसे 'मेरा लेख' न समझें । कोई 18-20 वर्ष पहले, 'नव भारत टाइम्‍स' (दिल्‍ली) में, 'और इस तरह लादी गई इंगलैण्‍ड पर अंग्रेजी' शीर्षक से एक लेख प्रकाशित हुआ था । उसके लेखक का नाम तो अब याद नहीं लेकिन उस लेख के नोट्स अब तक मेरे पास रखे हुए मिल गए । उन्‍हीं के आधार पर ये सूचनाएं प्रस्‍तुत हैं ।

14 comments:

  1. जो भी हो आपने अच्छी जानकारी दी है. मजा आ गया

    ReplyDelete
  2. वाह कमाल की रुचिकर जानकारी दी आपने। बिल्कुल वही मानसिकता तब इंग्लैण्ड में अंग्रेजी के प्रति थी जो आज भारत में हिन्दी के प्रति है।

    इस मामले में हमें अंग्रेजों से प्रेरणा लेनी चाहिए। जिस प्रकार उन्होंने अपनी मातृभाषा को प्रतिष्ठित किया वैसे ही हमें भी करने चाहिए। यह असंभव नहीं, एक दिन हम जरुर कामयाब होंगे।

    ReplyDelete
  3. सोचिए
    क्‍या आज बहुधा भारत में असभ्‍यों की भाषा है अंग्रेजी़ ।

    ReplyDelete
  4. जानकारी तो गजब की और बेहतरीन है.

    ReplyDelete
  5. "तब इंगलैण्‍ड में फ्रेंच के प्रति वही मोह, आकर्षण और 'क्रेज' था जो आज भारत में अंग्रेजी के प्रति है । अभिजात्‍य वर्ग अंग्रेजी में बात करना अपनी शान के खिलाफ मानता था ।"

    क्या अभिजात्य वर्ग सुन रहा है?
    सुंदर दस्तावेज है यह लेख.

    ReplyDelete
  6. आप ने एक एतिहासिक तथ्य को बहुत ही स्पष्ट तरीके से प्रस्तुत किया है. आभार -- शास्त्री जे सी फिलिप

    आज का विचार: हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
    इस विषय में मेरा और आपका योगदान कितना है??

    ReplyDelete
  7. चलिये यह तो तय हुआ कि वर्तमान उपेक्षा के बावजूद हिन्दी प्रतिष्ठा पायेगी.
    अंग्रेजी विकसित हुई - उसी प्रकार हिन्दी भी शायद विकसित/परिवर्तित होगी. उससे शायद शुद्धतावादी कष्ट महसूस करें! :)

    ReplyDelete
  8. लेकिन मातृ भाषा प्रेमी इन और ऐसे तर्कों से न तो रूके, न हारे और न ही हतोत्‍साहित हुए । उन्‍होंने इस लडाई को भावनाओं के स्‍तर पर ला खडा किया ।
    काश ऐसा भाषा प्रेम हिन्दी के प्रति हरेक हिन्दुस्तानी में होता।
    बहुत बढ़िया जानकारी।

    ReplyDelete
  9. बहुत शानदार!!
    गज़ब की जानकारी!!
    क्या हम हिन्दी मातृभाषा वाले इस लेख से प्रेरणा लेंगे!!

    ReplyDelete
  10. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  11. बहुत अछि सुचना.
    लेकिन मेरी समझ में ये नही आता की भाषा के पीछे इतनी मारा मारी की क्या ज़रूरत है . जब तक कि हम विश्व को और विश्व हमको समझ सकता है भाषा बीच में नही आणि चाहिए. मेरे हिसाब से इस सदी में भाषा से ज्यादा विचारों के बारे में बहस होनी चाहिए . यदि विश्व को हम हमारे विचार समझा सकें चाहे हिन्दी चाहे आम्ग्ल भाषा में और वे हमारे विचारों से प्रभावित होके हमारी बात को समझ्के अपना लें तो जीत हमारी ही होगी

    ~अभिषेक
    http://luckyabhishek.blogspot.com

    ReplyDelete
  12. अच्छी जानकारी। यह लेख वर्षों तक मैने भी सहेज कर रखा था। शायद अब भी हो। शुक्रिया....

    ReplyDelete
  13. गजब जानकारी है, जैसे हमारे यहाँ आजकल हिन्दी का हाल है, और अंग्रेजी राज कर रही है ।

    ReplyDelete
  14. अभी देखा कि आपकी यह पोस्ट २००७ की है और आज बज्ज के जरिये पढ़ने को मिल रही है। खजाना बाकी है पढ़ने के लिये ।

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.