भालेरावजी


यह कविता नहीं है । बीमा प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए मैं 3 से 5 सितम्बर तक, भारतीय जीवन बीमा निगम के, भोपाल स्थित मध्य क्षेत्रीय कार्यालय के प्रशिक्षण केन्द्र में था । वहाँ पदस्थ, संकाय सदस्य श्री एस. के. भालेरावजी को ‘वाकर’ के सहारे चलते हुए देख, उनसे जानना चाहा तो मालूम हुआ कि वे पक्षाघात से पीड़ित हो गए थे । नियमित चिकित्सा के अतिरिक्त उनकी प्रबल इच्छा शक्ति का प्रभाव रहा कि वे चिकित्‍सकों की अपेक्षाओं से कहीं अधिक, बहुत अधिक जल्दी स्वस्थ होकर काम पर लौट आए । उन्होंने अत्यन्त आत्म विश्‍वास से कहा कि वे जल्दी ही ‘वाकर’ को मुक्त कर देंगे । उन्हें देख कर और उनसे बातें कर, मेरे मन में जो आया, वही सब ‘एक झटके में’ (सिंगल स्ट्रोक) कागज पर कुछ इस तरह उतर आया ।


भालेरावजी





‘सपने वे नहीं होते
जो आ जाते हैं
बिल्ली के पाँवों
हमारी नींद में ।
सपने तो वे ही होते हैं
जो हमें सोने नहीं देते ।’
पढ़ा रहे थे हमें,
भालेरावजी ।


हुमक कर
घुटनों के बल दौड़कर
माँ की गोद की ओर
किलकारी मारता हुआ
लपकने वाला बच्चा
बन गए थे भोलरावजी
ब्रांच आफिस की
तेरह सीढ़ियाँ चढ़ते हुए ।


‘कैसे हो ?’
झबरीली मूँछों के बीच
मुस्कुराते हुए,
मेरे कन्धे पर
हौले से हाथ रख कर
पूछ रहे थे
चौपन साला भालेरावजी
बिना हाँफे ।



जंगल में
हवा को मात देते
दौड़ रहे खरगोश को
झपट्टा मारकर दबोच ले
अनन्त आकाश में
छुटटे सांड की तरह तैरता
धरती-भेदी आँखों वाला
शिकारी बाज ।
ऐसे ही आया था
अभ्यागत-लकवा,
भालेरावजी के पास ।


‘अभी नहीं, फिर कभी आना’
कह कर लौटाया नहीं,
अगवानी, आव-भगत की
अतिथि-देव की
आत्मीय ऊष्‍‍मा और ऊर्जा से
भालेरावजी ने ।


मेहमान है तो
मेहमान की तरह रहे
चार दिन बाद
मेहमान कैसा ?



उसके होते हुए
उसे न होने देने लगे
और न होने का अहसास
कराने लगे लकवे को
भालेरावजी,
उसकी खातिरदारी करते हुए ।


‘बच्चों को पढ़ाकर
आता हूँ थोड़ी देर में,
तब तक आप आराम करें’
कह कर,
वाकर के पाँवों चलकर
आ गए
भोलरावजी क्लास में ।



टुकुर-टुकुर ताकता
हक्का-बक्का हो
उन्हें देखता रह गया था
लस्त-पस्त
बाज के झपट्टे में
आ गया हो जैसे खुद लकवा ।



‘घर पर अकेले
बोर हो गए होंगे,
कल थोड़ा
बाहर टहल आईएगा ।
मेरा क्या है,
मैं तो चला जाऊँगा
यूँ ही घूमते फिरते,
छोड़ जाऊँगा
आपके लिए वाकर’
कह रहे थे
लकवे से भालेरावजी
शाम को लौटकर ।



जड़वत लकवे ने क्या सुना
उसकी वो जाने
मैं ने तो सुना
सपने तो
वे ही होते हैं
जो हमें सोने नहीं देते
कह रहे थे
हमें पढ़ाते हुए
भालेरावजी ।

5 comments:

  1. बहुत सुंदर! वीरों के लिए कोई रुकावट बड़ी नहीं होती. भालेराव जी की जिजीविषा को नमन और आपकी लेखनी को. धन्यवाद.

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  2. भालेराव जी अवश्य ही वाकर को मुक्त कर देंगे। न भी कर पाएँ तो भी उन का विश्वास प्रेरणा के लिए पर्याप्त है।

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  3. अपनी अक्षमताओं से लड़ने का जोश दिला दिया आपने। धन्यवाद जी!

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  4. जीने के लिए हौसला देती है आपकी कविता।

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  5. thanks a lot uncle...i m bhaleraoji's daughter.i feel so proud of my father after reading this n u make me feel so.
    sometimes we know less about the persons who r near us bcoz anyhow they r the best for us and we always love them.but when someone else show their respect n feeling we have the g8 feeling of "WOW" whc cant be described in words.

    thank u once again.

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