विजय माल्या की शर्तों पर जी रहा इण्डिया

दिल्ली से इन्दौर तक की यह हवाई यात्रा, मेरी तीसरी हवाई यात्रा थी । ‘भारत‘ और ‘इण्डिया’ का, अब तक अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ता रहा अन्तर इस यात्रा ने मुझे समझा दिया ।
एक लीटर पानी की बोतल के लिए मैं ने तीस रुपयों का भुगतान किया । डाक्टर एस. एन. सुब्बरावजी के प्रभाव के चलते, मैं ने खरीदा हुआ पानी पीना बन्द कर रखा है । लेकिन सतीश वैष्‍णव (सेंधवा) के लिए यह बोतल खरीदी । तुर्रा यह रहा कि हवाई जहाज में बैठने के लिए जाते समय यह बोतल बाहर ही रखवा ली गई । तब तक सतीश ने बोतल का एक चैथाई पानी भी नहीं पिया था । याने, मैं ने कोई सवा सौ रुपये के दाम पर एक लीटर पानी खरीदा ।
यह सब मेरे साथ जब हो रहा था तब मुझे, पीने के पानी के लिए, सर पर दो-तीन मटके उठाए, तपती धरती पर कोसों नंगे पाँव यात्रा करने को विवश वे ग्रामीण महिलाएँ याद आ रही थीं जिनका आधे से अधिक दिन केवल पानी की जुगत में ही बीत जाता है । यह सब भोगते-भुगतते हुए मेरी आँखें अनायास ही ‘लोक कल्याणकारी राज्य’ की तलाश करने लगीं । वह कहीं नजर नहीं आ रहा था । शायद पानी की दुकान में रखे डीप फ्रीजर के तले में कहीं दुबका रहा होगा । जाहिर है कि तीसरा विश्‍व युद्ध पानी के लिए नहीं होगा तो किसके लिए होगा ?
इस हवाई यात्रा में मैं ने काफी का एक चालीस रुपये में, एक सेण्डविच सौ रुपये में और एक कप चाय बीस रुपये में खरीदी । यकीनन यह ‘भारत’ नहीं था, ‘इण्डिया’ ही था ।
यात्रा टिकिट सतीश ने ही खरीदे थे । विजय माल्या की हवाई कम्पनी ‘किंगफिशर’ से हमने यह यात्रा की थी । हम दोनों ने सवेरे ग्यारह बजे भोजन किया था और अब शाम के साढ़े सात बज रहे थे । सो, ‘व्योम बाला’ ने जैसे ही ‘कुछ’ खाने के लिए पूछताछ की तो हम कुछ बोलते उससे पहले, हमारे पेट में कूद रहे चूहों ने आवाज लगा दी । ‘व्योम बाला’ की सौंपी गई, सेण्डविच की आकर्षक पेकिंग हमने खोली ही थी कि उसने ‘सस्मित’ कहा - ‘टू हण्ड्रेड रुपीज प्लीज ।’ सतीश मानो हत्थे से उखड़ गया । वह प्रायः ही हवाई यात्रा करता रहता है । उसने कहा कि किराये में खाना-पीना शामिल रहता है । तनिक भी असहज नहीं होते हुए व्योम बाला, पूर्वानुसार ही सस्मित बोली - ‘सर ! इट इज डेकन एण्ड फूड इज नाट इनक्ल्यूडेड इन फेअर ।’ सतीश ने अत्यधिक गुस्से और पूरे बेमन से दो सौ रुपये चुकाए । यह भड़की हुई भूख का ही असर था कि इसके बाद भी हमें सेण्डविच अत्यन्त स्वादिष्‍ट लगे ।
खाने के बाद सतीश ने पूछा - ‘आपका क्या कहना है दादा ?’ मैं ने कहा - ‘यह इण्डिया है जहाँ विजय माल्या जैसे लोगों की शर्तें लागू हैं ।’
मैं और क्या कहता ?

5 comments:

  1. लोककल्‍याणकारी राज्‍य जैसे मजाकिया शब्‍द संविधान में लिखे जाने के लिए हैं श्रीमान.....हकीकत में तो ये लोककष्‍टकारी राज्‍य है

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  2. बात आपकी भी सही है मगर इसका दूसरा पहलू भी है. तेल के दाम आसमान छू रहे हैं फ़िर भी जहाज़ आसमान छू पा रहे हैं यही क्या कम गनीमत है?

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  3. यदि जनता ने इस के विरुद्ध संघर्ष नहीं किया तो आप ने आने वाले दिनों की झाँकी प्रस्तुत कर ही दी है।

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  4. आप ने बिल्कुल सच कहा है...विमान यात्राओं का मेरा अनुभव ये कहता है की विमान कम्पनियाँ ये समझती हैं की यात्रा करने वाले यात्री बहुत अमीर हैं और पैसा उनके लिए हाथ का मैल है...कुछ हद तक ये सही भी है क्यूंकि यात्री गन बिना हीलहुज्जत के समान खरीदते हैं और प्रेम से खाते हैं...जब देने वाला दे रहा है तो लेने वाले को कहाँ परेशानी है? उन चाँद यात्रियों को कौन पूछता है जो अपनी पसीने की कमी से किसी मजबूरी वश हवाई यात्रा करते हैं
    नीरज

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  5. उल्टे उस्तरे से मूंड़ा जाता है। याह आपको नहीं मालुम!
    बड़े लोग इसमें बहुत पारंगत होते हैं! :-)

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