मेरा ‘बच्चा साधु’

यह तन्मय है। मेरे मझले साले का छोटा बेटा। हम सब इसे तन्ना कहते हैं लेकिन घर में कोई नहीं जानता कि मैं अकेले में इसे ‘बच्चा साधु’ कहता हूँ।

गए छह दिनों में कुछ नहीं लिखा। तीन दिन तो आलस्य के नाम रहे और तीन दिन इस मेरे ‘बच्चा साधु’ के नाम।

यह जब घर में होता है तो घर से बाहर निकलने का या कुछ करने का मन नहीं होता। घर में इसके होने का मुझ पर जो असर होता है उसे व्यक्त कर पाना मेरे लिए बिलकुल ही मुमकिन नहीं। मैं खुद ही आज तक नहीं समझ पाया तो भला बताऊँ कैसे?

मेरा यह ‘बच्चा साधु’ और बच्चों से एकदम हटकर। इतना हटकर कि कभी-कभी डर जाता हूँ - यह बीमार तो नहीं? लेकिन शुक्र है भगवान का कि ऐसा बिलकुल ही नहीं है।

मेरा यह ‘बच्चा साधु’ जल्दी ही ग्यारह बरस का हो जाएगा। इन वर्षों में यह जब-जब भी मेरे घर आया है, मैंने इसे एक बार भी रोते नहीं देखा-सुना। इसने कभी भी घर में धमा-चौकड़ी नहीं मचाई। एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि हम सबसे कहे बिना, चुपचाप घर से बाहर निकला हो। खाने-पीने की किसी भी चीज के लिए जिद नहीं की। इसके माता-पिता को एक बार भी शिकायत करते नहीं सुना कि तन्ना कहना नहीं मानता। घर में होता है तो या तो कार्टून चेनल देखता रहता है या चुपचाप अपने में खोया बैठा रहता है। अपनी ओर से कभी कोई बात, कोई पूछताछ नहीं करता। पूछो तो जवाब दे देता है वर्ना मौनी बाबा बना रहता है। आसपास का कोई बच्चा आकर इसे खेलने के लिए बाहर बुलाता है तो यह अपनी माँ की ओर देखता है। माँ कहती है - ‘जा। जल्दी वापस आ जाना।’ और हर बार मैंने देखा, यह सचमुच में बहुत जल्दी वापस आ जाता है।

घर में इसके होने का अहसास, आम बच्चों के होनेवाले अहसास से एकदम अलग होता है। इसकी नीरव उपस्थिति घर में किलकारियाँ मारती हैं। मानो, इसकी साँसों की धक-धक मेरे घर की धड़कन बन जाती है। यह नजर नहीं आता किन्तु इसके होने का अहसास बराबर बना रहता है - बिलकुल शकर में घुले बताशे की तरह। मैं बिना देखे बता सकता हूँ कि यह घर के किस कमरे में बैठा होगा और क्या कर रहा होगा। तन्ना की यह विचित्र उपस्थिति ही मुझे घर में बाँधे रखती है।

मेरे घर यह हर मौसम और लगभग हर वार-त्यौहार के दिनों में आया है। मेले-ठेलों वाले मौसम में भी। अपने माता-पिता और बुआ के साथ यह जब-जब भी किसी मेले में गया तो मुझे लगता था कि मेले में यह किसी खिलौने के लिए या खाने-पीने की किसी चीज के लिए जिद करेगा। लेकिन एक बार भी ऐसा नहीं हुआ। जो खिलौना दिला दिया, चुपचाप ले लिया। खाने की किसी चीज के लिए पूछा तो या तो हाँ कर दी या इंकार। मेरा कस्बा, ‘खाउओं का कस्बा’ है। यहाँ के नमकीन व्यंजनों और सर्दी के मौसम में गराड़ू (एक जमींकन्द) - जलेबी की महक सारे कस्बे पर तब भी तैरती रहती है जब लोग रजाइयों में दुबके होते हैं। मैं पूछता हूँ - ‘तन्ना! गराड़ू खाएगा?’ निर्विकार, ठण्डे स्वरों में तन्ना कहता है - ‘खा लूँगा।’ मैं पूछता हूँ - ‘और जलेबी?’ उसी निरपेक्ष भाव-मुद्रा में तन्ना कहता है - ‘वह भी खा लूँगा।’ उसकी परीक्षा लेने के लिए पूछता हूँ - ‘कभी जलेबी-गराड़ू नहीं मिले तो?’ तन्ना के स्वरों में और मुख-मुद्रा में रंच मात्र भी अन्तर नहीं आता। जवाब आता है - ‘तो नहीं खाऊँगा।’ मेरा मजा किरकिरा हो जाता है। मैं मन नही मन झुंझला जाता हूँ - ‘कैसा बच्चा है यह? न तो जिद करता है, न चिढ़ता है। न तो खुश होता है और न ही दुखी।’ इसका यह असामान्य व्यवहार मुझे बरबस ही ‘सदा दीवाली सन्त की, बारहों मास बसन्त’ वाली उक्ति याद दिला देता है और शायद इसीलिए मैं इसे ‘बच्चा साधु’ कह बैठता हूँ।

24 की अपराह्न, अपनी माँ (मेरी सलहज) के साथ तन्ना आया था। तीन दिनों की छुट्टियाँ जो थीं! मैंने जिद की तो इसके पिता, (मेरे मझले साले साहब) भी परसों अपराह्न पहुँच गए थे। आज दोपहर ये तीनों अपने घर लौट रहे हैं। मुझ पर उदासी छा रही है।

लेकिन ऐसा न तो पहली बार हो रहा है और न ही आखिरी बार। तन्ना जाएगा नही तो लौटेगा कैसे? तन्ना के लौटने की यही सम्भावना मेरी उदासी को परे धकेल रही है।
-----

आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने हेतु मैं प्रस्तुत हूँ। यदि अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे bairagivishnu@gmail.com पर मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।

यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें। यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें। मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर - 19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.

8 comments:

  1. मेरी शुभकामनायें हैं तन्मय के लिये, एक महत भविष्य रचने की ओर अग्रसर है वह।

    ReplyDelete
  2. सचमुच यह बच्‍चा साधु ही तो है .. उसके अच्‍छे भविष्‍य के लिए असीम शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete
  3. बच्चा साधु को मेरा प्रणाम कहियेगा जी

    ReplyDelete
  4. कहीं साधु में अपना 'सेल्फ' तो नहीं देखता आपको? :)
    मैं भी अपने एक भतीजे के लिए ऐसा ही महसूस करता हूँ, इसलिए कह रहा हूँ.. :)
    वैसे चेहरे से दिख रहा है.. लड़का आर्टिस्ट टाइप है...
    भगवान उसको सारी सफलता और खुशियाँ दे...

    ReplyDelete
  5. @सतीशजी सत्‍यार्थी

    आपने मुझे चौंका दिया है। मैं तो अन्‍तर्मुखी बिलकुल ही नहीं हूँ। मेरे तमाम मित्र मुझे चुप रहने की सलाह देते हैं। कहते हैं कि मैं बोल कर दुश्‍मन बनाता हूँ। फिर भी, आपकी बात ने खुद में झॉंकने को विवश तो कर ही दिया है।

    तन्‍मय का व्‍यवहार देखकर तो नहीं लगता कि उसमें कोई कलाकार छुपा हुआ है। भविष्‍य के गर्भ में क्‍या छिपा है - कोई नहीं जानता। क्‍या पता, आपकी बात सच ही हो जाए।

    ReplyDelete
  6. आप इस साधु बच्चे को किसी डा० को जरुर दिखाये, हो सकता हे यह किसी बात से डरता हो, या मां बाप इसे डांटे हो ओर अब यह सब के कहे से चलता हे, जो दिया खा लिया वर्ना चुप रहा, मुझे कुछ अजीब लगा, कल जब बडा होगा तो ऎसे केसे काम चलेगा. धन्यवाद
    आप भी जुडे ओर साथियो को भी जोडे...
    http://blogparivaar.blogspot.com/

    ReplyDelete
  7. मेरी शुभकामनायें हैं तन्मय के लिये,

    ReplyDelete
  8. तन्मय के बारे में आपने जिस तन्मयता से बताया, अच्छा लगा।

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.