‘नींद क्यों रात भर नहीं आती’ कह कर गालिब ने शायद स्थिति का सामान्यीकरण कर दिया। लेकिन हमारा ‘लोक मनीषी’ ऐसा नहीं करता। उसने तो पीढ़ियों के अनुभवों के निचोड़ से विशेषज्ञता प्राप्त की है। इसीलिए वह, अनिद्रा से त्रस्त लोगों का, अधिकारपूर्वक वर्गीकरण करते हुए सुस्पष्ट कारण बता देता है।
यह सब बताया था मेरे दा' साहब माणक भाई अग्रवाल ने। उन्होंने एक मालवी कहावत भी सुनाई थी जिसे मैंने उत्साहपूर्वक तत्काल ही लिख लिया था लेकिन अपनी असावधानी के चलते, उससे अधिक उत्साहपूर्वक गुमा भी दिया था।
इस बार इन्दौर यात्रा में सबसे पहले दा’ साहब से ही मिला और उसी कहावत की फरमाइश की। उन्होंने तनिक खिन्नता से मुझे देखा और पूछा - ‘पहले लिखी थी तो तूने?’ मैंने कहा - ‘हाँ। लेकिन गुमा दी।’ वे सस्मित बोले - ‘तुझे जरूर गहरी और भरपूर नींद आती होगी।’
दा’ साहब की बताई मालवी कहावत यह है -
‘‘नींद नी आवे नौ जणा।
कणाँ-कणाँ?
गोयरे खेत, मार में चणा।
थोड़ी पूँजी, वणज घणा।
मोटी बेटी, करज घणा।
रोगी, जोगी, धन घणा।’’
मालवी शब्दों के अर्थ जानने के चक्कर में न पड़ते हुए, इस कहावत का अर्थ इस प्रकार है -
इन नौ लोगों को नींद नहीं आती -
- जिसका खेत, गाँव (बस्ती) से सटा हुआ हो।
- जिसके खेत में चने की फसल खड़ी हो।
- जो कम पूँजी से व्यापार कर रहा हो।
- जिसने अपने व्यापार का विस्तार, अपनी क्षमता से अधिक कर लिया हो।
- जिसके घर में अनब्याही जवान बेटी हो।
- जिसके सर पर कर्ज हो।
- रोगी।
- भोगी।
- अत्यधिक धनी/सम्पन्न।
‘लोक मनीषी’ ने जिस सहजता और सुस्पष्टता से यह वर्गीकरण किया है, उसके बाद यह कहावत विस्तृत व्याख्या की माँग नहीं करती।
इस मालवी कहावत में अनिद्रा के केवल कारण ही नहीं बताए गए हैं। बड़ी चतुराई से इन कारणों में ही इस रोग के निदान भी बता दिए गए हैं। कहना न होगा कि ये निदान ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ वाली हमारी हमारी मूल भारतीय अवधारणा को ही पुष्ट करते हैं।
हमारा ‘लोक’ तो हमें सदैव और निरन्तर ही, समझाता और सतर्क करता रहता है। ये तो हम ही हैं जो उससे आँख से आँख मिलाकर, मुस्कुराते हुए, उसकी बातें, अनसुनी, अनदेखी कर अपनी समझ पर इतराते हैं और बाद में दुःख पाते हैं।
इस लोक मनीषी को प्रणाम।
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बहुत बुद्धिमत्ता की अभिव्यक्ति है, पहुँचाने का आभार।
ReplyDeleteबालकवि बैरागी जी की (सन 1972-73 में अकलतरा कवि सम्मेलन में सुनाई गई)पुक्ति याद आ रही है- ''मैं सपने नहीं देखता, क्योंकि मैं बुझ कर नहीं, थक कर सोता हूं.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट।आभार।
ReplyDeleteबिलकुल सही.. संतोषम परम सुखम.. भारतीय संस्कृति का मूल तत्व है.. सब कुछ पा लेने की होड में आज कल लोग बहुत बड़ी-बड़ी चीजें पा ले रहे हैं पर ढेर सारे छोटे-छोटे सुखों से वंचित भी होते जा रहे हैं.. सुकून भरी नींद भी उन्हीं में से एक है......
ReplyDeleteआज सत्संग करवाने के लिए आभार भाई जी !
ReplyDelete@ राहुल सिंहजी
ReplyDeleteआपकी याददाश्त तो पुलिसवालों की तरह खतरनाक है। मुझे लग रहा है कि मुझे आपसे डरना चाहिए।
बहुत बढ़िया पोस्ट आभार।
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