कंचन को कसौटी से भय ?

मध्‍य प्रदेश सरकार के बाबुओं (कर्मचारियों) का यह विरोध मुझे अनुचित और चकित करने वाला ही नहीं, उनके अपराध-बोध की स्वीकृती भी लगा।
बाबुओं द्वारा काम न करने, और फाइलों को दबाकर बैठ जाने की शिकायतों की बढ़ती संख्या को देख सरकार ने बाबुओं का परफारमेन्स ब्यौरा (याने किस बाबू ने दिन भर में कौन सा और कितना काम किया) लेने का निर्णय लिया है।
प्रदेश के मुख्य सचिव द्वारा गत दिनों कराए गए विभिन्न विभागों के निरीक्षण के दौरान यह तथ्य सामने आया कि प्रत्येक विभाग में फाइलों का अम्बार लगा हुआ है। ये सारी फाइलें अन्ततः जनसमान्य के ही कामों से जुड़ी हैं। इसलिए सरकार ने अनुविभागीय स्तर तक के अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे अपने अधीनस्थों से प्रतिमाह उनके (बाबुओं) द्वारा किए गए कामों का ब्यौरा लें। अब बाबुओं को बताना होगा कि उन्हें मुख्यमन्त्री या/और मन्त्रियों-अधिकारियों सहित अन्य व्यक्तियों/राजनेताओं से कितने पत्र मिले, कितने पत्र निपटाए, इस सबके बीच कोई विशेष काम किया हो आदि-आदि।
इसके समानान्तर ही अधिकारियों से कहा गया है कि वे तलाश करें कि बाबुओं को नियमों की जानकारी है या नहीं, वे नियमों का पालन करते हैं या नहीं, उन्हें प्रकरणों की समीक्षा करना आता है या नहीं, मामले को निपटाने में वे कितना समय लेते हैं, उन्हें फाइल बनाना आता है या नहीं, वे कार्यालय में कितना समय काम करते हैं, सहकर्मियों के साथ उनका व्यवहार कैसा है, उनकी टाइपिंग गति क्या है आदि-आदि।
अपनी जन-छवि और सुपरिचित ‘बाबू मानसिकता’ के अधीन, कर्मचारी संगठनों ने सरकार की इस इच्छा का विरोध किया। यहाँ तक तो ठीक था किन्तु बाबुओं ने इसे ‘सरकार द्वारा अपने ही कर्मचारियों की योग्यता पर सन्देह’ माना तो मुझे आश्चर्य हुआ। इस सबमें मुझे न तो कर्मचारियों की योग्यता पर सन्देह लगा और न ही सरकार की कोई अपेक्षा अनुचित-अनावश्यक लगी। कर्मचारियों की यह प्रतिक्रिया मुझे ‘विरोध के लिए विरोध’ तो लगी ही, मुझे यह उनके ‘अपराध बोध की स्वीकृती’ भी लगी - जैसा कि मैंने शुरु में ही कहा।
यदि आप काम करते हैं तो उसका ब्यौरा देने में क्या कठिनाई ? क्या आपत्ति ? आपत्ति क्यों ? इसके प्रतिकूल, आपको तो खुश होना चाहिए कि आपको आपकी मेहनत साबित करने का सुअवसर मिल रहा है। हमारे कर्मचारी मित्रों की यही तो शिकायत रहती है कि उनकी मेहनत का मूल्यांकन कोई नहीं करता ? सरकार की इस इच्छा को कर्मचारियों की योग्यता पर सन्देह मानने का कोई कारण मुझे अनुभव नहीं होता। यदि आप योग्य हैं तो आपको तो सरकार की इस इच्छा को चुनौती की तरह लेकर सरकार की मंशा को झूठा, अनावश्यक साबित कर, धूल चटा देनी चाहिए ? कर्मचारियों की प्रतिक्रिया और व्यवहार ऐसा लग रहा है मानो कंचन को कसौटी पर परखे जाने से भय लग रहा है।

कर्मचारियों की कमी का तर्क समझा और स्वीकारा भी जा सकता है। किन्तु इसे योग्यता से कैसे जोड़ा जा सकता है ? कर्मचारियों की कमी दूर करने के लिए आन्दोलन किया जा सकता है किन्तु उसका स्वरूप ऐसा हो कि आम लोगों को सजा न भुगतना पड़े। अभी हो यह रहा है कि कर्मचारियों को शिकायत तो होती है अधिकारियों से किन्तु इसकी सजा वे उस आम आदमी को देते हैं जो कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करता है।
कर्मचारी मित्रों को वे तमाम बातें स्वीकार करने का साहस बरतना चाहिए जो वे भली प्रकार जानते हैं। आम आदमी के बीच उनकी छवि बहुत अच्छी नहीं है। यह विचित्र विसंगति और विरोधाभास है कि कर्मचारियों को जिन अधिकारियों से शिकायत होती हैं उनक सारे उचित-अनुचित काम वे (कर्मचारी) सबसे पहले निपटाते हैं और टैक्स चुकाने वाला आम आदमी उपेक्षित - प्रताड़ित होता है। होना तो यह चाहिए कि कर्मचारी अधिकाधिक जन-समर्थन, जन-सहानुभूति अर्जित करें क्योंकि दोनों (नागरिकों और कर्मचारियों) का शत्रु एक ही है- अधिकारी वर्ग। ऐसे में ‘दुश्मन का दुश्मन, अपना दोस्त’ वाली रणनीति प्रत्येक समझदार आदमी अपनाता है। किन्तु हमारे कर्मचारी ऐसा न कर दोहरा आश्चर्य उपस्थित करते हैं- वे अधिकारियों की सबसे बड़ी ताकत भी बनते हैं और टैक्स चुकाने वाले आम आदमी की उपेक्षा, अवहेलना भी करते हैं। फलस्वरूप उन्हें एक की प्रताड़ना और दूसरे की नफरत झेलनी पड़ती है।

भ्रष्टाचार से अब किसी को परहेज नहीं रह गया है। यह तो अब ‘संस्था’ हो गया है। इसइिए कर्मचारियों की रिश्वतखोरी पर किसी को न तो शिकायत होती है और न ही अचरज। ये तो वैसे भी बहुत-बहुत छोटी मछलियाँ हैं। भारतीय मगरमच्छों के करिश्मे सारी दुनिया देख रही है। किन्तु जिस ‘आम आदमी’ के लिए आप बैठाए गए हैं वही आम आदमी आपके लिए प्रतीक्षा करे, आपके लिए चक्कर काटे, भिखारी की तरह आपके सामने गिड़गिड़ाए यह सब न तो शोभनीय है, न स्वीकार्य और न ही क्षम्य।
चुनौती का जवाब भय से उपजा पलायन नहीं होता। प्रत्यारोप तो बिल्कुल ही नहीं। कंचन यदि कसौटी से परहेज करे, भयभीत हो तो लोग कंचन पर ही सन्देह करेंगे।
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5 comments:

  1. आलेख अच्छा लगा। आपके अवलोकन से सहमत हूँ तो भी कुछ प्रश्न मन में उठ रहे हैं:
    यह परफारमेन्स ब्यौरा पहले से लागू वार्षिक परफारमेन्स ब्यौरे से भिन्न होगा क्या? यदि इस "सुधार" का कारण बिगडती हुई जनसेवा है तो क्या सरकार ने समस्या का हल ढूंढने के लिये समस्या के फ़्रंट पर लड रहे बाबुओं से कोई सलाह मशविरा किया? या सीधे ही अपने को अदालत और बाबुओं को अपराधी घोषित करके उनके चालचलन में सुधार का यह जादुई कार्यक्रम प्रस्तुत कर दिया? खराब ब्योरा होने वाले बाबुओन को सवेतन निलम्बन से पुरस्कृत किया जायेगा या फिर इस नये नियम में नतीजों की ओर कोई ध्यान दिया ही नहीं गया है? जो अतिरिक्त समय, कागज़, संसाधन आदि इस पर्फोरमेंस कवायद में लगेंगे उसमें कितने प्रतिशत निरक्षर साक्षर हो सकते थे?

    यह बात सही है कि अनेकों बाबू निकम्मे और भ्रष्ट हैं परंतु वह बात तो नया पर्फोर्मेंस ब्योरा सुझाने वाले नेताओं और अफसरों के बारे में भी उतनी ही सच है। जनता सुन रही है - चुनाव नज़दीक हैं क्या?

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  2. आपके लेख से सहमत, यदि फाइलों की गति बढ़ जाये या कम लोगों के पास होकर जाये तो देश के विकाल की गति भी बढ़ जायेगी।

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  3. विचारणीय. आशा की जानी चाहिए कि अच्‍छे परिणाम आएंगे.

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  4. बहुत खुब काम किया सरकार ने, इस से अच्छॆ परिणाम निकलेगे, ओर निकम्मे कर्मी चाहे घर जाये, यह एक सही कदम हे उन्नति की ओर, धन्यवाद

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