ब्लॉगवाणी: मेरा अभाग्य है यह शोकान्तिका

माननीय मित्रों,
मेरे तकनीकी अज्ञान के कारण आपको तनिक अधिक पढ़ना पड़ेगा। सम्भवतः वह सब भी, जो आप पढ़ चुके हैं - मुझे पर्मालिंक देना जो नहीं आता।
20 दिसम्बर की रात को मुझे माननीया निर्मलाजी कपिला का यह सन्देश मिला -
आदरणीय बैरागीजी, नमस्कार। आपसे सविनय एक अनुरोध है कि आप ब्लागवाणी के संचालन के लिये मैथिलीजी और सिरिल जी से बात करें। अच्छे लोग क्षमादान में आस्था रखते हैं। अगर इतनी संख्या मे लोगों ने उन्हें स्नेह दिया है तो मात्र कुछ लोगों के बुराई करने से वो सब को सजा नही दे सकते। हम जैसे, तकनीक से अनजान कितने लोगों को उन्होंने आगे बढने का अवसर दिया है। आज सब माँग कर रहे हैं कि ब्लागवाणी फिर से वापिस आये तो ये उनका बडप्पन होगा कि इस माँग को मान लें। ये हिन्दी के और साहित्य के भाविष्य के लिये उनका उपकार होगा। मुझे आशा है मैथिली जी सुहृदय व्यक्ति हैं आपकी बात जरूर मानेंगे। आप जोर दे कर सब की तरफ से कहें। मुझे सतीश जी का भी मेल आया था कि आपसे विनती करूँ। अगर आप इसके लिये और लोगों की मेल चाहते हैं तो वो भी ली जा सकती है। आपका ब्लागजगत पर उपकार होगा। धन्यवाद। शुभकामनायें।

उसी रात मैंने उत्तर दिया -
माननीया निर्मलाजी,
सविनय सादर नमस्‍कार,
यह सचमुच में 'ब्‍लॉग' का चमत्‍कार ही है कि आपने मुझे ऐसा सन्‍देश भेजा। ब्‍लॉग की दुनिया में अभी मेरी उम्र ही क्‍या है? मई 2007 में मेरा जन्‍म हुआ है इस दुनिया में और आपने मुझे इतने बडे काम लायक समझा!
ब्‍लॉगवाणी के बन्‍द होने का कारण बना विवाद तो कोसों दूर की बात रही, ब्‍लॉगवाणी के बारे में ही मुझे कुछ पता नहीं है। बस, इतना ही जानता रहा हूँ कि ब्‍लॉगवाणी ने मुझे असंख्‍य लोगों तक पहुँचाया। और यह भी कि ब्‍लॉगवाणी हम सबकी सॉंस की तरह रही है।
मुझे नहीं पता कि मैं आपके विश्‍वास पर कितना खरा उतर पाऊँगा। उतर पाऊँगा भी या नहीं? मैं प्रयत्‍नवादी आदमी हूँ। सो, आपके चाहे अनुसार मैं प्रयत्‍न अवश्‍य करूँगा। मेरा नियन्‍त्रण केवल प्रयत्‍नों पर है। परिणाम पर नहीं। आप ईश्‍वर से प्रार्थना कीजिएगा कि आपकी और आप जैसे तमाम कृपालुओं की मनोकामना पूरी होने का निमित्‍त मैं बन सकँ।
मैं कल सवेरे ही मैथिलीजी से बात करूँगा और आपको बताऊँगा।
ईश्‍वर हम सबकी इच्‍छा पूरी करें।
आपने मुझे इतना अच्‍छा काम बताया, इसके लिए मैं अपने अन्‍तर्मन से आपका आभारी हूँ।
विनम्र,
विष्‍णु
21 की सुबह पौने आठ और आठ बजे के बीच मैंने मैथिलीजी को फोन किया। नो रिप्लाय हुआ।
दोपहर लगभग दो बजे फिर फोन लगाया। उधर से ‘हैलो‘ कहने के साथ ही आवाज आई - ‘मैं सिरिल बोल रहा हूँ।’ मैंने अपना परिचय देना चाहा तो उन्होंने रोक दिया। बोले कि वे मुझे नाम से और मेरे ब्लॉग से जानते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि निर्मलाजी का और मेरा सन्देश आदान-प्रदान ही नहीं, मेरे सन्देश पर सतीशजी की शुभेच्छा का प्रकटीकरण भी वे देख चुके हैं और इन तीनों सन्देशों पर अपना जवाब भी भेज चुके हैं।
मैं फौरन ही मुद्दे पर आ गया। कुल जमा आठ मिनिट और चार सेकेण्ड हुई हमारी बातों को विस्तार में देने का कोई अर्थ नहीं होगा। सिरिलजी ने जो कुछ कहा वह कुछ इस प्रकार है -
- उन्होंने (पिता-पुत्र ने) किसी की बात से खिन्न या दुखी होकर, प्रतिक्रियास्वरूप, ब्लागवाणी का अद्यतनीकरण (अपग्रेडेशन) बन्द नहीं किया है। क्योंकि कहना-सुनना तो चलता रहता है। यह सहज, स्वाभाविक है। ऐसे कहने-सुनने का क्या नोटिस लेना? इस सब पर पर क्या नाराज होना?
- जो तकनीक वे प्रयुक्त करते रहे हैं, उसकी सीमा और क्षमता चुक गई है।
- उनकी व्यस्तताओं में वृद्धि हो गई है। फलस्वरूप वे चाहकर भी अब ब्लॉगवाणी को समय नहीं दे सकेंगे।
- ब्लॉगवाणी का अद्यतनीकरण बन्द करने के पीछे कोई कारण नहीं तलाशे जाने चाहिए। यदि इसे निरन्तर कर पाना मुमकिन होता तो वे पूर्ववत्, प्रसन्नतापूर्वक यह करते रहते।- ब्लॉगवाणी के (अद्यतनीकरण के) बन्द होने के जो-जो कारण बताए, बनाए, कल्पना किए जा रहे हैं, उससे दोनों, पिता-पुत्र दुखी, असहज और कुछ सीमा तक अपरोध-बोध से ग्रस्त हो रहे हैं क्यों कि, जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है, ऐसा कुछ भी नहीं है। जिन अज्ञात, अनजान लोगों पर दोषारोपण किया जा रहा है, वह अत्याचार है।
- ब्लॉगवाणी (का अद्यतनीकरण) शुरु किए जाने के आग्रह उन्हें व्यथित कर रहे हैं, पीड़ा पहुँचा रहे हैं और उनके अपराध-बोध को गहरा कर रहे हैं।
- यह अध्याय निर्णायक रूप से बन्द किया जाए।
मैं बीमा एजेण्ट हूँ और आसानी से सामनेवाले को नहीं छोड़ता हूँ। ‘प्रयत्नवादी’ होने की अपनी पहचान के चलते, अन्तिम क्षण तक कोशिश करता हूँ, हर दाँव-पेंच वापरता हूँ, वास्तविकता की टोह लेने में कोई कसर नहीं छोड़ता हूँ। मैं स्वीकार करता हूँ कि सिरिलजी के साथ भी मैंने यह सब किया और यह भी स्वीकार करता हूँ कि ऐसा करते हुए मैं सिरिलजी के साथ क्रूरता बरतता रहा। सिरिलजी मुझे क्षमा करें। ‘बहुजन हिताय’ की व्यापक शुभेच्छा के अधीन, अपनी सम्पूर्ण सदाशयता से मैंने यह अत्याचार किया है।
बात हममें से किसी को भी अच्छी नहीं लगेगी किन्तु सच का सामना करने का साहस हमें जुटाना ही चाहिए। इसीलिए, अपने अनुभव के आधार पर कह पा रहा हूँ कि ब्लॉगवाणी के अद्यतनीकरण की आशा-अपेक्षा हम लोगों ने छोड़ देनी चाहिए। सिरिलजी के स्वरों में जितनी विनम्रता थी, उससे कई गुना अधिक दृढ़ता थी। मैंने कहा - ‘ब्लॉगवाणी के इस स्थगन को मैं अस्थायी या अल्पविराम मान रहा हूँ, पूर्ण विराम नहीं।’ सिरिलजी ने तत्क्षण उत्तर दिया - ‘यह सब आपकी ओर से है। मैं तो अपनी ओर से तथा पिताजी की ओर से अपनी बात कह चुका।’ मैंने फिर कहा - ‘यदि एक प्रतिशत भी सम्भावना हो तो कृपया शत-प्रतिशत पुनर्विचार करें।’ उन्होंने कहा - ‘मैंने अपना उत्तर शत-प्रतिशत ही दिया है और आप मुझे इस प्रकार संकोच में न डालें। मुझे मानसिक स्तर पर अत्यधिक असुविधा हो रही है।’
रात को अपना लेपटॉप खोला तो निर्मलाजी के और मेरे सन्देशों पर सतीशजी का, 21 दिसम्बर की सुबह आया, शुभेच्छापूर्ण सन्देश और हम तीनों के सन्देशों के उत्तर में सिरिलजी का सन्देश देखा/पढ़ा। सतीशजी का सन्देश तो आप सबने पढ़ा ही होगा। सिरिलजी का सन्देश यहाँ प्रस्तुत है -

नमस्कार,

मुझे लगता है कि सबको ऐसा महसूस हो रहा है कि ब्लागवाणी को बंद करने का कारण यह है कि किसी कुछ कहा.

ऐसा नहीं है... ब्लागवाणी न जारी रखने का कारण कोई विवाद नहीं है बल्कि निजी समस्यायें हैं. अगर हमारे लिये संभव होता इसको जारी रखना तो जरूर हम ऐसा करते. लेकिन इस समय यह संभव नहीं है.

आप लोगों के पत्र पढ़कर शर्मिंदगी होती है कि हम आपकी अपेक्षाओं पर पूरे नहीं उतर सके. इस असफलता के लिये कृपया हमें क्षमा करिये. हमारी क्षमतायें इस विशाल ब्लागजगत को नहीं समेट सकीं. इसके लिये बेहतर उपक्रम की आव्यशकता है.

सब दोस्तों से गुजारिश है कि कृपया इस मुद्दे को विराम दें क्योंकि इस पर जारी संवाद बार-बार असुविधाजनक एहसास कराता है.

आपके सहयोग के लिये ह्रदय से धन्यवाद.

आपका दोस्त
सिरिल

सो, मित्रों! मैं सखेद सूचित कर रहा हूँ कि मैं आपकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाया। असफल रहा। किन्तु विश्वास कीजिएगा, अपनी ओर से मैंने कोई कसर नहीं रखी। अमानवीयता तक बरत गया।

यह मेरा अभाग्य ही है कि ब्लॉगवाणी का यह ‘शोकान्तिका-पाठ’ मेरे हिस्से में आया।
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आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने हेतु मैं प्रस्तुत हूँ। यदि अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे airagivishnu@gmail.com पर मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।

यदि कोई कृपालु इस सामग्री का उपयोग करें तो कृपया इस ब्लाग का सन्दर्भ अवश्य दें। यदि कोई इसे मुद्रित स्वरूप प्रदान करें तो कृपया सम्बन्धित प्रकाशन की एक प्रति मुझे अवश्य भेजें। मेरा पता है - विष्णु बैरागी, पोस्ट बाक्स नम्बर - 19, रतलाम (मध्य प्रदेश) 457001.






14 comments:

  1. आपका और सिरिल जी का बडप्पन अनुकरणीय है।

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  2. सिरिलजी ठीक ही कह रहे हैं कि इस विषय को अधिक न खींचा जाये, पीड़ा होती है यह सोच कर, जो हो गया है या जो नहीं हो पाया है।

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  3. क्षमा करेंगे पर मैं थोड़ा और खींच रहा हूँ बात को...
    यह बिलकुल सही है कि आदरणीय मैथिली जी और सिरिल जी की अपनी व्यस्तताएं हैं और ब्लोग्वानी की भी अपनी सीमित तकनीकी क्षमताएं थीं.. मगर एक आग्रह तो किया जा सकता है.. सिरिल जी तकनीकी जानकार हैं.. इस कार्य के बारे में पर्याप्त अनुभव है उनको.. हम जैसे हजारों ब्लोगर इच्छा और संकल्प होते हुए भी ये काम नहीं कर सकते... सिरिल जी थोडा समय निकल के कुछ लोगों को ब्लोग्वानी पोर्टल या कोइ नया एग्रीगेटर शुरू करने में थोड़ी तकनीकी मदद और सलाह दे दें और कुछ दिनों के बाद जब सब कुछ सही तरीके से काम करने लगे तो वे पूर्णतः इससे अलग हो जाएँ.. मुझे नहीं लगता कि इस काम के लिए धन या समय देने वाले ब्लोगरों की कमी होगी.. अधिकाँश ब्लोगर इस काम के लिए नियमित शुल्क चुकाने को तैयार हैं.. कई लोग हैं जो इस काम के लिए समय देने को तैयार हैं पर उन्हें पता हे नहीं कि क्या और कैसे करना होगा.. बाकी आप पुराने और विद्वान लोग हैं विचार करने के लिये................

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  4. सिरिल जी किसी हद तक सही भी हैं जरूर उनकी मजबूरी होगी वर्ना इतनी देर से निश्काम भावना से काम करने के बाद वो ऐसा नही कर सकते थे। निराश जरूर हुयी हूँ मगर सिरिल और मैथिली जी की मजबूरी का सम्मान करती हूँ। धन्यवाद वैरागी जी।

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  5. हिन्दी ब्लॉगरी के शैशवकाल में फीड-एग्रेगेटर ने बहुत सहारा दिया। अब हमेशा उनकी निष्काम सहायता की अपेक्षा नहीं रखनी चाहिये!

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  6. धन्यवाद बैरागी जी ....

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  7. अब तो कोई अन्य विकल्प तलाशना होगा.

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  8. आप जैसों के प्रयास से कुछ न कुछ बात बनेगी.

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  9. सिरिल जी की बात से मै १००ऽ सहमत हुं, हमे अपने लाभ के लिये किसी दुसरे का दिन नही दुखाना चाहिये अब इस बात को यही खत्म करे जी,.... एक गीत याद आ गया.... चलो इक बार फ़िर से... अजनबी बन जाये हम दोनो. बेरागी जी धन्यवाद

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  10. अहोभाग्य होना और अभाग्य होने का अंतर बहुत बड़ा है..

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  11. अरे छोडि़ये बंधु
    आज तो आप सभी
    प्‍याज में मदमस्‍त हो जाइये
    एक ट्विटर कीजिए और एक प्‍याज लीजिए...

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  12. बैरागी जी,
    आप जैसा मनीषी ही इतने निर्मल और स्वच्छ ढंग से इस अध्याय पर विराम लगा सकता था...

    जहां तक मैं समझता हूं, जिस दिन भी मैथिली जी और सिरिल जी के लिए संभव होगा, वे बिना किसी के कहे स्वयं ही ब्लॉगवाणी को दोबारा शुरू कर देंगे...लेकिन इसके लिए हमें दोनों की भावनाओं और अन्य प्रतिबद्धताओं का भी सम्मान करना होगा...ये सिरिल जी की महानता है कि उन्होंने कहा कि ब्लॉगवाणी के बंद होने के लिए अनजान लोगों पर दोषारोपण न किया जाए...वो सुलझे हुए इनसान हैं...इस तरह बार बार उनसे ब्लॉगवाणी को शुरू करने के लिए कहने से उन पर ज़ोर पड़ता होगा और उनका ध्यान उन परियोजनाओं से भी हटता होगा, जिन्हें वो इन दिनों मूर्त रूप देने में लगे हैं...

    एक बार फिर आभार आपका बैरागी जी...

    जय हिंद...

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  13. एक बीमा एजेन्ट भी असफल रहा :(

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  14. एक हिन्दी ब्लागर होने के नाते, मैथिली जी व सिरिल जी का मैं तो नितांत आभारी हूं ... हमें उन्हें अब और विवश करने की चेष्टाएं नहीं करनी चाहियें, मैं समझ सकता हूं उनका मर्म व विवशताएं...

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