एक था कमाल कवि

दादा श्री बालकवि बैरागी को याद करते हुए, श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समित, इन्दौर ने 26 जून 2018 मंगलवार को, दादा पर केन्द्रित  दो आयोजन किए। पहले आयोजन में डॉ. श्री सरोज कुमार, श्री वेद प्रतापजी वैदिक और श्री सत्यनारायणजी सत्तन ने दादा से जुड़े अपने संस्मरण सुनाए। दूसरा आयोजन कवि सम्मेलन था जिसमें श्री सुरेन्द्र शर्मा, श्री सुल्तान मामा, श्री माणिक वर्मा, श्री मोहन सोनी, श्री सरोज कुमार, श्री सत्य नारायण सत्तन सहित कुल ग्यारह कवियों ने काव्य पाठ किया और दादा के संस्मरण सुनाए। यहाँ उल्लेखित सारे कवि वे हैं जिन्होंने दादा के साथ अनगिनत बार कवि सम्मेलन के मंच साझा किए।

दादा पर लिखी सरोज भाई की कविता खूब पसन्द की गई। यह कविता उन्होंने दो दिन पहले इन्दौर लेखक संघ की गोष्ठी में भी सुनाई थी जिस पर कवि श्री राजकुमार कुम्भज की टिप्पणी थी कि यह कविता स्कूली बच्चों के पाठ्यक्रम में शरीक करने योग्य है। 

28 जून को हम पति-पत्नी सरोज भाई से मिलने गए और उनकी वह कविता माँग कर लाए। वह कविता यहाँ प्रस्तुत है। कविता के पन्ने थामे, सरोज भाई ने दादा से जुड़ी खूब सारी बातें की। यहाँ दिया गया उनका चित्र उन्हीं क्षणों का है।

एक था कमाल कवि

एक था कमाल कवि,
नाम था बालकवि।
मूल नाम नन्दराम,
था मनासा मुकाम।

गरीबी में पला था,
कोयल सा गला था।
गली-गली गाता था,
भीख माँग, खाता था।

माँ साथ होती थी,
किस्मत को रोती थी।
पिता स्वयम् तंग थे,
जन्म से अपंग थे।

गा-गा कर बडा हुआ,
पाँव पर खड़ा हुआ।
पढ़ने भी जाने लगा,
मंचों पर गाने लगा।

देश तब गुलाम था,
हो रहा संग्राम था।
गाँधी का जमाना था,
ये भी तो दीवाना था।

राजनीति भा गई,
कंग्रेसी हो गया।
और प्रजा-मण्डल के,
सपनों में खो गया।

गिरिवरसिंह भँवर और,
तोमर¹ को गुरु माना।
उनसे ही सीखा,
लिखना, लिखते जाना।

वह चुनाव भी लड़ा,
नेता बन गया बड़ा।
नेहले पर देहला था,
लेकिन कवि पहले था।

सदन में विधायक था,
बाहर कवि-गायक था।
स्वाभिमान का प्रतीक,
पारदर्शिता सटीक।

मन्त्री पद पाकर वह,
हवा में नहीं डोला,
अपनी निष्ठाओं की,
बोली वह नहीं बोला।

शून्य से उठा,
और शिखर चूमता रहा।
काजल के गलियारे,
बेदाग घूमता रहा।

कवियों में नेता था,
नेताओं में कवि था।
सर्वप्रिय, अजातशत्रु,
सज्जनता की छवि था।

मधुर, मालवी सपूत,
हिन्दी का उन्नायक।
चारण वह संस्कृति का,
जन-गण-मन का गायक।

कविताई पहले थी, 
नेताई बाद में।
वोटों से अधिक मजा,
आता था दाद में।

कविता ओजस्विनी,
कविता श्रंगार की।
कविता समझाइश की,
कविता ललकार की।

कविता में भाषण भी,
भाषण में कविता।
आत्मलीन, शान्त चित्त,
सारा जीवन कविता।

कहानियाँ गजब लिखीं,
हुआ नहीं आकलन।
कविताई सर्वव्याप्त,
संकल-दर-संकलन।

गद्य लिखा, पद्य लिखा,
भर दिए रजिस्टर।
लिख डाली आत्म-कथा,
‘मंगते से मिनिस्टर’।

लेकिन वह छपी नहीं,
मिला नहीं पब्लीशर²
लोग पढ़ नहीं पाए,
पढ़ी गई घर ही घर।

अब कोई भी छपवा दे,
एक काम हो जाए।
यह न हो कि वह लेखन,
रद्दी में खो जाए।

दोस्ती निभाता था,
यारों का यार था।
इस पल पुकारा,
उस पल तैयार था।

भाभी के जाने पर,
तनहाई, सन्नाटा।
एकाकी जीवन,
जैसे-तैसे काटा।

मृत्यु मिली भव्य, दिव्य,
सोता-सोता गया।
जिसने भी सुना,
चकित, रोता-रोता गया।

मंचों पर बालकवि,
टी. वी. पर बालकवि।
संसद में बालकवि,
सड़क पर बालकवि।

बालकवि!

बालकवि!!

चला गया बालकवि,
किस्से ही किस्से हैं।
किस्सों की सम्पत्ति में,
हम सबके हिस्से हैं।

मैं उसका मित्र रहा,
मुझे बहुत गर्व है।
बालकवि की चर्चा,
स्मृतियों का पर्व है।
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सरोज भाई का पता - 
मनोरम, 37 पत्रकार कॉलोनी, इन्दौर-452018
                        फोन - (0731) 2561919  मोबा. - 94066 22290

1 - स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी श्री नरेन्द्र सिंह तोमर, ग्राम पिवड़ाय (जिला-इन्दौर) जो स्वतन्त्रता संग्राम के दिनों में इकतारे पर गीत गा-गा कर लोक चेतना जाग्रत करते थे।

2 - इस किताब को छापने के लिए कम से कम तीन प्रकाशकों ने अपनी ओर से दादा से सम्पर्क किया था। लेकिन कानूनी दृष्टि से वे किताब के कुछ अंशों से असहमत थे। उन्होंने दादा से उन अंशों को विलोपित करने का आग्रह किया जिसे दादा ने स्वीकार नहीं किया। इसलिए, किताब को प्रकाशक तो मिले लेकिन उसे अविकल रूप से छापनेवाले प्रकाशक नहीं मिले।

1 comment:

  1. सरोज कुमार जी और उनकी कविता को सलाम ।

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