बहुत रोई आभा


बांयें से -श्रीमती द्विवेदी, श्रीमती सुमित्रा रावल, चि. समन्वय, चि. आभा, धर्मेन्द्र रावल, श्री द्विवेदी।

सात मई की सुबह इन्दौर पहुँचा तो मालूम हुआ - ‘कल रात आभा बहुत रोई।’


आभा, इसी सात मई को हमारे कुटुम्ब में ‘गृह लक्ष्मी’ बनकर आई है-मेरे मित्र धर्मेन्द्र रावल के बेटे समन्वय की जीवन संगिनी बन कर। (धर्मेन्द्र का उल्लेख मेरी बापू कथा में मेरी कथा‘ पोस्ट में आया है।) पाणिग्रहण संस्कार सात मई की रात को था। उससे पहले वाली शाम (शाम तो कहने भर को है, वास्तव में वह रात ही थी) को ‘महिला संगीत’ आयोजित था। पहुँचना तो मुझे भी था उस आयोजन में किन्तु ‘ग्राहक सेवा’ के नाम पर मुझे अपने कई बीमा धारकों के निजी और पारिवारिक आयोजनों में भागीदार बनना होता है। इसी कारण 6 मई की शाम मैं इन्दौर नहीं पहुँच पाया। यह अनुपस्थिति मुझे आजीवन सालती रहेगी।




सो, सात मई को जब विवाह आयोजन स्थल पहुँचा तो उलाहनों और कटाक्षों के कोलाहल के बीच मुझे, आभा के रोने का समाचार भी मिला। आभा का यह रोना इसलिए समाचार बना क्योंकि उसकी विधिवत विदाई तो (उसके रोने के) चैबीस घण्टों से भी अधिक समय बाद होने वाली थी।

जैसा कि इन दिनों चलन हो गया है, बेटे की बारात लेकर तो अब कोई अपवादस्वरूप ही जाता है। लड़की वालों को अपने यहाँ बुलाने का चलन हो गया है। फिर, बारात यदि इन्दौर से इलाहाबाद ले जाने की हो तो ‘अण्टी में भरपूर जोर’ रखने वाला भी ‘टें’ बोल जाए। सो, धर्मेन्द और सुमित्रा भाभी ने अपने समधी-समधन श्री जयप्रकाशजी द्विवेदी और श्रीमती विजया लक्ष्मी द्विवेदी से अनुरोध किया कि वे आभा और अपने कुटुम्बियों को लेकर इन्दौर आने की कृपा कर लें। एक तो ‘बेटी का बाप’ उस पर इतनी विनम्रता से अनुरोध! द्विवेदीजी को तो हाँ करनी ही थी। सो, बेटी को लेकर माता-पिता इन्दौर आ गए। और जैसा कि चलन हो गया है, ऐसे अवसरों पर ‘महिला संगीत’ भी दोनों पक्षों का एक ही मंच पर आयोजित हो जाता है।

समन्वय के विवाह की सुरसुरी चल ही रही थी कि मुझे एक मित्र द्वारा भेजी गई ‘सप्त पदी’ का एक आलेख मिला जो मेरे मित्र के समधी पक्ष ने, अपनी बहू (याने, मेरे मित्र की बेटी) के लिए तैयार किया था। उसकी एक फोटो प्रति मैंने धर्मेन्द्र को भेज दी। एक पखवाड़े बाद धर्मेन्द्र का फोन आया। कह रहा था कि मेरी भेजी सप्त पदी से पहले ही उसे उसकी एक प्रति मिल चुकी थी। इस सूचना के बाद धर्मेन्द्र ने कहा - ‘अपने आयोजन के लिए इसे अब तुम ही तैयार करके कल ही मुझे भेज दो।’ मैं इसके लिए बिलकुल ही तैयार नहीं था। किन्तु यह काम पाकर मुझे अच्छा लगा। मैंने अपने हिसाब से उसे परिवर्तित/परिवर्धित कर धर्मेन्द्र को भेज दी। धर्मेन्द्र ने प्राप्ति सूचना देते हुए बताया कि पूरे कुटुम्ब ने मेरे आलेख को जस का तस स्वीकार कर लिया है।

यही सप्त पदी, महिला संगीत वाले आयोजन में पढ़ी गई थी। मुझे बताया गया कि इसे धर्मेन्द्र और सुमित्रा भाभी के स्वरों मे प्रस्तुत किया जाना था। किन्तु जैसे-जैसे दिन पास आता गया वैसे-वैसे काफी कुछ बदल गया। सुमित्रा भाभी ने साफ मना कर दिया। और धर्मेन्द्र? उसने सप्त पदी को पाँच-सात पढ़ा और भर्राए गले से घोषणा कर दी कि उससे भी इसका वाचन नहीं हो पाएगा। बाद में इसे, समन्वय के मित्रों ने ‘आडियो-वीडियो इफेक्ट’ के रूप में बहुत ही प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया।

सप्त पदी का वाचन प्रारम्भ होने से पहले आभा को मंच पर बुलाया गया। सप्त पदी की भूमिका प्रस्तुत करने के बाद सप्त पदी जब वातावरण में गूँजने लगी तो उसमें आभा की सिसकियाँ भी घुलने लगीं। सप्त पदी वाचन समाप्त होते-होते तो आभा मानो बिखर गई। सिसकियाँ हिचकियों में और हिचकियाँ रुलाई में बदल गईं। मित्रों ने बताया-लेकिन यह दशा केवल आभा की नहीं थी। आयोजन प्रांगण में उपस्थित लगभग हर कण्ठ अवरुद्ध और प्रत्येक आँख सजल थी।

यह सप्त पदी वस्तुतः ‘रावल परिवार’ की ओर से आभा के लिए आश्वस्ति का प्रकटीकरण था जिससे सबका कोई लेना-देना नहीं था। धर्मेन्द्र और सुमित्रा भाभी को यह सब आभा से कहना था। किसी चैथे व्यक्ति का कोई लेना-देना नहीं था। किन्तु धर्मेन्द्र और सुमित्रा भाभी ने अपनी भावनाएँ सार्वजनिक कर मानो अपने आश्वासनों पर सबकी गवाही के हस्ताक्षर करवा कर खुद को बाँध लिया। एक तो सप्त पदी में कही बातें और उनका इस प्रकार सार्वजनिक वाचन! कोई पाषाण हृदय ही बहे बिना रह सकता था। फिर, आभा तो एक लड़की! भावनाओं और सम्वेदनाओं का सरोवर! सो, वह तो पहले ही पल द्रवित हो गई और नैहर से ससुराल के लिए विदा होने के चैबीस घण्टे से भी अधिक समय पहले ही बिलख पड़ी।




आभा को तो आप पोस्ट के शुरु में ही, चित्र में देख चुके हैं। रही बात सप्त पदी की! सो यह रही सप्त पदी -



(1)
निस्सन्देह,

नया लग रहा होगा

यह सब कुछ तुम्हें,
किन्तु विश्वास करो,

आभा!

खुद ईश्वर ने ही रचा है यह सब

केवल तुम्हारे लिए ही।

‘गृहस्थ जीवन यात्रा’ के

सनातन क्रम को निरन्तर करने,

सम्पूर्ण निश्चिन्तता से

पहला पग रखो इस घर में।
अपने अन्तर्मन से स्वागत करते हुए,

हम सब साथ हैं तुम्हारे।

(2)
केवल ‘स्त्री’ को ही दिया

ईश्वर ने,

यह सुख, सौभाग्य, अधिकार,

अभिन्न में बदल दे

दो भिन्न परिवार।

ईश्वर प्रदत्त इस गर्व सहित,

आभा!

दूसरा पग धरो।

दोनों परिवारों में

अपनत्व के रंग भरो।


(3)
ईश्वर की अनुपम कृति ‘स्त्री’

होती नहीं एक व्यक्ति मात्र।

होती वह सर्वरूपा।

दुर्गा, सरस्वती, अन्नपूर्णा,

धन्वन्तरी, शारदा बन

करती वह रक्षा, शिक्षा, भरण-पोषण।

वही सर्वरूपा बन

आभा!

तीसरा पग धरो,

गृहस्थी धन्य करो।


(4)
द्विवेदी सन्तान बन रही

वंश वाहिका रावल की,

दो कुटुम्बों को जोड़ रही,

तुतलाती आभा कल की।


दोनों परिवारों का

सार्थक, सफल सेतु बनो।

आभा!

अपना चौथा पग धरो।


(5)
भली प्रकार जानते हैं हम,

याद आएँगे पल-पल तुम्हें

माँ विजयालक्ष्मी और

पिता जयप्रकाश।

अभी-अभी ही हमने

अपनी बेटी जो बिदा की है!

यह कृपा ही है ईश्वर की

हम पर कि

बेटी की किलकारियों से सूने

हमारे आँगन में

कुंकुम-पाँव चल कर तुम आ रही हो।

हमें लग रहा है,

वही किलकारियाँ, वही चहचहाहट

अपने साथ ला रही हो।

तुम्हें याद भी न आएँ

तुम्हारे जन्म-दाता,

यही कोशिश रहेगी हमारी।

हमारी इस कोशिश को

अपने विश्वास से प्रगाढ़ करो,

बेटी आभा!
अपना पाँचवाँ पग धरो।

(6)
आभा!

केवल नाम नहीं यह तुम्हारा।

सचमुच आभा हो तुम अब

इस कुटुम्ब की।

जगर-मगर, उजियारा भरा होगा

यह कुटुम्ब अब तुमसे।

जैसे कि,

दिनकर से होता है जग प्रकाशमय।

ऊर्जा-प्रकाश का पर्याय बन,

आभा!

अपना छठवाँ पग रखो।


(7)
मधुर सम्बन्धों का अजस्र स्रोत बन,

सबमें निभना, सबको निभाना,

सहर्ष, सहस्र आशीष हमारा,

आजीवन सुखी रहना।

कल तक गुड्डी-गुड्डों से खेल रही,

द्विवेदीजी की बिटिया

आभा!

आज हो गई इतनी बड़ी

कि हो गई रावल परिवार की बहू।

समन्वय है अब

तेरे जीवन का प्रज्वलित दीपक,

और तू है उसकी स्निग्ध, सुन्दर, सरल बाती।

गृहस्थी की आपाधापी में

रहना हमेशा, हँसती, खेलती, मस्त।

सहजता, सुगमता बनी रहें तेरी सहचरियाँ,

आए न कभी, कोई बाधा,

इन्हीं अनन्त शुभ-कामनाओं के बीच

सातवाँ पग रखो आभा।

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4 comments:

  1. सप्तपदी बहुत भावुक है.. खुब..

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  2. बहुत भावुक करती पोस्ट!! सब स्वभाविक है फिर भी!

    आपकी लेखनी का जादू देखने को बेताब रहते हैं मगर लगता है व्यस्तता के चलते कम दिख रहे हैं.

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  3. अति उत्तम मन द्रवित हो उठा.

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  4. भावनात्मक आलेख. कोई आश्चर्य नहीं कि वातावरण आर्द्र हो गया हो. द्विवेदी, रावल और बैरागी परिवार को शुभ अवसर पर शुभकामनाएं.

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