आओ! करें दुस्साहस


कल देर रात (सुबह साढ़े तीन बजे) तक काम करता रहा। कुछ दिनों से कम्प्यूटर खराब पड़ा था। दुरुस्ती के लिए भेजा हुआ था।

कागज-पत्तर टटोलते-टटोलते एक कविता हाथ आई। जब इसकी नकल की तब इसके रचयिता का नाम लिखना भूल गया और न ही यह लिख पाया कि यह मुझे कहाँ से मिली है या किसने उपलब्ध कराई है।

कविता मुझे अच्छी लगी। प्रस्तुत कर रहा हूँ। किसी को इसके रचानाकार का नाम मालूम हो तो बताइएगा। यदि सम्भव हो तो चित्र भी उपलब्ध कराइएगा।

कविता का शीर्षक मैंने ही दिया है - रचनाकार ने नहीं।


आओ! करें दुस्साहस

इतिहास बदल देने का
दम्भ भरनेवाली

नर हत्याओं
के महायज्ञ में लीन
दिग्भ्रमित इस
पीढ़ी को
विवश करने का संकल्प
आज हमें लेना होगा।

आतंक के उफनते
ज्वार का आवेग
शान्त करने का
दुस्साहस
अब हमें करना होगा
आरोपों/प्रत्यारोपों के
चक्रव्यूह से
बाहर निकल कर।

आओ!
धूमिल पड़े
इस केनवास पर
कुछ नये रंग
बिखेरें हम।

तब शायद
जलते हुए इस वन में
एक बार फिर से
बसन्त आएगा।
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आपकी बीमा जिज्ञासाओं/समस्याओं का समाधान उपलब्ध कराने हेतु मैं प्रस्तुत हूँ। यदि अपनी जिज्ञासा/समस्या को सार्वजनिक न करना चाहें तो मुझे bairagivishnu@gmail.com पर मेल कर दें। आप चाहेंगे तो आपकी पहचान पूर्णतः गुप्त रखी जाएगी। यदि पालिसी नम्बर देंगे तो अधिकाधिक सुनिश्चित समाधान प्रस्तुत करने में सहायता मिलेगी।

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3 comments:

  1. 5/10

    सुन्दर प्रस्तुति
    रचना के माध्यम से आह्वाहन अच्छा लगा

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  2. बहुत सुंदर रचना जी

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