करवा चौथ याने आठवें जनम में बदलाव


बुधवार सुबह से शुरु हुई मेरी प्रतीक्षा अन्ततः कल, चौथे दिन, शनिवार की शाम को पूरी हुई।

उत्तमार्द्ध के नरम-गरम स्वास्थ्य के चलते मैंने उनसे अनुरोध किया था कि वे इस बार करवा चौथ के उपवास से परहेज कर लें। अन्यथा होगा यह कि जिसकी बेहतरी के लिए वे उपवास करेंगी, उसे उनकी सेवा में लगना पड़ सकता है। यह सेवा यदि सामान्य स्थितियों में की जाए तो आत्मीय प्रसन्नता का विषय होगी किन्तु उपवास के कारण यदि वे अस्वस्थ हो गईं और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा तो करवा चौथ के उपवास का अर्थ ही बदल जाएगा। ईश्वर मुझ पर कृपालु था कि मेरी बात की तथ्यात्मकता को अनुभव कर मेरा अनुरोध स्वीकार कर लिया गया। किन्तु हमारा धर्म तो स्त्रियों के कारण ही जीवित है! सो उन्होंने इसमें तनिक संशोधन किया कि वे उपवास भले ही नहीं करेंगी किन्तु व्रत अवश्य करेंगी। दो कारणों से मैं चुप रहा। पहला तो यह कि मेरे लाख कहने के बाद भी इस निर्णय में कोई बदलाव होना ही नहीं था। और दूसरा यह कि इसमें अस्वस्थ होने का खतरा समाप्त हो गया था।

सो, मेरी उत्तमार्द्ध ने करवा चौथ की सुबह साबूदाने की खिचड़ी और राजगीरे के आटे के हलवे का फलाहार बनाया। नौकरी पर जाने से पहले खुद भी खाया और मुझे भी खिलाया। शाम को नौकरी से लौटीं तो मैंने चाय बनाकर पेश की। वे प्रसन्न हुईं। हम दोनों ने साथ-साथ चाय पी। फिर वे घर के छुट-पुट कामों में और शाम के भोजन की तैयारी में जुट गईं। मैं अपना कामकाज लेकर बैठ गया। कामकाज से निपट कर, चाँद निकलने तक की प्रतीक्षा का समय उन्होंने विभिन्न चैनलों का जायजा लेकर काटा। अधिकांश समाचार चैनलें, देश के विभिन्न नगरों में चन्द्रोदय का सीधा प्रसारण कर रही थीं। सो, मेरी उत्तमार्द्ध को ‘चाँद निकला या नहीं’ जैसा प्रश्न पूछने का अवसर ही नहीं मिला। उन्हें तो मानों जबरन जानना पड़ा कि लखनऊ, भोपाल में चाँद निकल आया है। अपने आकाश में चाँद निकलने की पुष्टि कर, छत पर जाकर उन्होंने पूजा की। नीचे आईं। हम दोनों ने साथ-साथ भोजन किया और फिर बुद्धू बक्से के सामने बैठ गए। इस तरह, इस बार की करवा चौथ मेरे घर में एक सामान्य दिन की तरह बीत गई।

मेरी उत्तमार्द्ध ने नौकरी से छुट्टी नहीं ली, दिन में किसी मन्दिर में नहीं गई, किसी भी पड़ोसन से पूजा के समय, विधि-विधान आदि के बारे में कुछ भी नहीं पूछा, दिन भर मोहल्ले में नजर नहीं आईं। नजर आईं भी तो नौकरी पर जाते और आते। सो, यह तो तय था कि उनकी यह ‘हरकत’ ‘टाक ऑफ मोहल्ला’ तो बनकर रहेगी ही। ऐसा ही हुआ भी किन्तु मेरे घर आकर न तो किसी ने कोई पूछताछ की और न ही कोई प्रतिक्रिया ही जताई। यह मेरे लिए किसी सदमे से कम नहीं था। महिलाएँ अपने स्वाभाविक व्यवहार से स्खलित जो हो रही थीं! किसी के पेट में मरोड़ नहीं उठी, कहीं से ‘हाय! हाय!’ सुनाई नहीं दी? ‘सब कुछ’ नहीं तो कम से कम, ‘कुछ न कुछ’ तो गड़बड़ है। मोहल्ले की महिलाओं के व्यवहार में आए इस बदलाव ने मुझे पहले तो असहज किया, फिर पेरशान और अन्ततः क्षुब्ध। मुझे लगा, हम दोनों को, षड़यन्त्रपूर्वक ‘उपेक्षा का दण्ड’ दिया जा रहा है। सच कहूँ, किसी काम में मेरा मन नहीं लगा इन दिनों में।

लेकिन मुहल्ले की महिलाओं ने कल शाम मुझे इस ‘मानसिक त्रास’ से मुक्त कर दिया। वे चार थीं और मेरी उत्तमार्द्ध को भाभीजी, आण्टीजी और मम्मीजी सम्बोधित कर बता रही थें कि वे तीन पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। मैं अगले कमरे में, अपने लेप टॉप पर काम कर रहा था। मुझे नमस्कार कर वे सीधे अन्दरवाले कमरे में चली गईं, मेरी उत्तमार्द्ध के पास। उनका ‘आगमन आशय’ समझने में मुझे तनिक भी श्रम नहीं करना पड़ा और इसी कारण मेरी आँखें और अंगुलियाँ भले ही लेप टॉप से उलझी हुई थीं किन्तु मेरा रोम-रोम कान बनकर, अन्दरवाले कमरे की, धीमी से धीमी सरसराहट भी सुनने को व्यग्र था।

मुझे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी। महिलाएँ या तो मेरे अनुमान से अधिक समझदार थीं या मुझसे भी अधिक व्यग्र, पहले ही क्षण, बिना किसी भूमिका के विषय पर आ गईं। कानों सुना, जितना भी मुझे याद रह सका, वह सब कुछ ऐसा था -

‘करवा चौथ पर आपने पूजा कहाँ की?’

‘छत पर।’

‘कब की?’

‘चाँद निकलने पर।’

‘आप दिन भर नजर ही नहीं आईं?’

‘हाँ। ड्यूटी पर गई थी।’

‘छुट्टी नहीं ली?’

‘नहीं।’

‘फिर तो दिन भर मुश्किल में निकला होगा?’

नहीं तो? क्यों?’

‘उपवास जो था!’

‘मैंने उपवास नहीं किया।’

‘क्या? करवा चौथ का उपवास नहीं किया?’

‘हाँ। नहीं किया।’

‘क्यों नहीं किया?’

‘इन्होंने मना कर दिया था।’

‘भाई साहब के मना करने से क्या होता है? औरत को तो उपवास करना पड़ता है।’

‘हाँ। लेकिन मैंने नहीं किया। इन्होंने मना कर दिया था।’

‘आपने कहा नहीं कि उपवास भाई साहब की लम्बी उम्र के लिए ही था?’

‘नहीं कहा।’

‘क्यों?’

‘इन्हें पता है कि करवा चौथ का उपवास क्यों किया जाता है।’

‘फिर भी भाई साहब ने मना कर दिया? और उन्होंने मना किया सो किया, आपने भी मान लिया?’

‘हाँ। मान लिया। करवा चौथ के दिन पति का कहना नहीं मानती तो यह पाप नहीं होता?’

कुछ क्षण कमरे में मौन पसर गया। मेरी उत्तमार्द्ध को ‘मम्मीजी’ कहनेवाली युवती ने मौन तोड़ा -

‘लेकिन यह तो धर्म का मामला है?’

‘हाँ है।’

‘तो फिर तो धर्म टूट गया?’

‘पता नहीं। पर मैंने तो पति का कहना मानने का धर्म निभाया।’

‘भाई साहब ने ऐसा क्यों किया?’

‘उनका कहना था कि मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती। उपवास करने से तबीयत बिगड़ सकती है। अस्पताल में भर्ती करना पड़ जाएगा। जिस पति की लम्बी उम्र के लिए उपवास करोगी उसी पति को घर और अस्पताल के बीच भागदौड़ करनी पड़ेगी। इसलिए उपवास मत करो।’

‘पर करवा चौथ का उपवास तो सात जनमों तक साथ निभाने के लिए किया जाता है?

अब मेरी उत्तमार्द्ध शायद परिहास पर उतर आईं। बोलीं - ‘यह हमारा सातवाँ जनम है इसलिए अब उपवास करने की जरूरत नहीं रही।’

‘वाह! आपको कैसे पता कि यह जनम आप दोनों का सातवाँ जनम है?’

‘मुझे नहीं पता तो किसे पता? अरे बेटा! जनम हमारा है तो हमें ही तो मालूम होगा ना? तुम बता सकती हो कि यह हमारे साथ-साथ का कौनसा जनम है?’

युवती शायद सकपका गई। घुटी-घुटी आवाज आई -

‘नहीं मम्मीजी! मुझे कैसे पता हो सकता है?’

‘वही तो! भई हम दोनों को पता है कि हम कितने जनमों से साथ बने हुए हैं। सात जनम हो गए। हम दोनों एक दूसरे से भर पाए। अगले जनम से दोनों छुट्टे। आखिर कब तक साथ-साथ रहें? अगले आठवें जनम में चेंज करके देखेंगे। जमा तो ठीक वर्ना नौवें जनम में फिर साथ-साथ हो जाएँगे।’ कह कर मेरी उत्तमार्द्ध जोर से खिलखिलाईं।

मेरी उत्तमार्द्ध को ‘भाभीजी’ सम्बोधित करनेवाली, उनकी हमउम्र महिला (मानो थक कर) बोली - ‘हम तो समझे थे कि भाई साहब ही ऊटपटांग बातें करते हैं। लेकिन आप भी वैसी ही बातें कर रहीं हैं?’

अब मेरी उत्तमार्द्ध मानो ‘खुल कर खेलने’ के ‘मूड’ मे आ गईं। चहकते हुए बोलीं - ‘आखिर सात जनमों से साथ रह रहे हैं। एक दूसरे के असर से कैसे बच सकते हैं? उनकी कुछ बातें और आदतें मुझमें आ गईं और मेरी कुछ बातें, आदतें उनमें आ गईं। अच्छा है ना?’

जितना कुछ मैं सुन पा रहा था उससे अनुमान कर रहा था कि चारों का समाधान नहीं हुआ है लेकिन कहने के लिए उनके पास भी कुछ नहीं था। ठिठोली करती हुई मेरी उत्तमार्द्ध बोलीं - ‘आप लोग भी कहाँ इस फालतू के चक्कर में पड़ गईं? आपकी बातें सुनकर लग रहा है कि करवा चौथ तो मैंने ही मनाई। मैंने तो वही किया जो मेरे इन्होंने चाहा और कहा। लेकिन लगता है कि उस पूरे दिन आपका ध्यान तो मेरी ओर ही लगा रहा! है कि नहीं?’

चारों चुप थीं। न हाँ कर पा रही थीं और न ही ना। मेरी उत्तमार्द्ध ने मानों चारों को इस दशा से उबारा। बोलीं - ‘अरे! भाभीजी! निकल गई ना करवा चौथ? आज तो चौथा दिन है। आप तो यह बताओ कि दीपावली पर क्या-क्या तैयारी कर रही हैं? मैं तो इस बार कुछ भी नहीं कर रही हूँ। जो कछ भी करना-कराना है, बाजार से ले आएँगे। तबीयत साथ नहीं दे रही है। साथ देती तो भला करवा चौथ का उपवास नहीं कर लेती? भाभीजी! शरीर साथ दे तो सारे व्रत-उपवास और सारे त्यौहार। शरीर साथ न दे तो कुछ भी नहीं। सारे त्यौहार मन के। तन दुरुस्त तो मन और अधिक दुरुस्त। तन ठीक नहीं तो मन भी ठीक नहीं। दीवाली का सामान बनाने के लिए किसी बाई या कारीगर को बुला रही हों तो दो दिन पहले बताना। मैं भी कुछ बनवा लूँगी। वर्ना कहा ही है, बाजार से मँगवा लूँगी।’

इस ‘धर्म सम्वाद’ के बीच चाय-जलपान का उपक्रम भी पूरा हो चुका था। चारों महिलाएँ मुझे नमस्कार कर, निकल गईं। मैंने साफ देखा, वे मेरी उत्तमार्द्ध की बातों से सहमत तो थीं किन्तु सन्तुष्ट नहीं थीं। उन्हें लग रहा था - इस घर में धर्म की पूछ परख जितनी होनी चाहिए, उतनी नहीं हो रही है।

देखते हैं, अगली करवा चौथ को क्या होता है।
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12 comments:

  1. हा हा हा बढ़िया मज़ेदार
    सब विवाहित लोगो को पड़ना चाहिए

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  2. सात जनम कब समाप्त हो रहे हैं, कैसे पता चलेगा।

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  3. बहुत सुंदर जबाब जी, आप की संगत का असर दिख रहा हे आप की उत्तमार्द्ध पर भी,बहुत अच्छा लगा

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  4. धर्म टूट गया?
    व्हेरी इंटरेस्टिंग! धर्म टूटा भले ही न हो कसमसा तो ज़रूर रहा है|

    हम तो समझे थे कि भाई साहब ही ऊटपटांग बातें करते हैं। लेकिन आप भी वैसी ही बातें कर रहीं हैं?
    बड़े भाग्य से ऐसे समझदार पड़ोसी मिलते हैं|

    यह हमारा सातवाँ जनम है
    लाजवाब! सौ सुनार की एक लुहार की!

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  5. bahut bariya hai bahut achchha likha huwa hai. waise mere miya ji ne bhi mujhe ye upwas nahi rahne diya or mai nahi rahi ye upwas

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  6. बहुत बढ़िया व्यंग के साथ साथ सीख देता हुआ लेख ...

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  7. जन्मों तक का साथ निभाऊँ तौबा तौबा
    एक जन्म मुझे तो सौ -सौ बार नज़र आता है
    हा हा हा--- बहुत बढिया। शुभकामनायें।

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  8. रचना एक अच्छा व्यंग है ,आज के युग पर |
    आशा

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  9. ‘ अनुरोध किया था कि वे इस बार करवा चौथ के उपवास से परहेज कर लें’

    इसी में ‘सर्फ़’ है। सर्फ़ की खरीदारी मे समझदारी होती है ना :)

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