भारत के बाकी हिस्सों का तो पता नहीं किन्तु हम मध्य प्रदेशवालों को चलना नहीं आता। अब तक तो लग रहा था कि हम अपनी चाल और चलन ही भूले हैं किन्तु बाबूलाल गौर बता रहे हैं कि हम तो सड़कों पर चलना ही भूल गए हैं।
बाबूलाल गौर मध्य प्रदेश सरकार में शहरी विकास विभाग के मन्त्री हैं। कुछ मन्त्रियों सहित, एक प्रतिनिधि मण्डल लेकर अभी-अभी फ्रांस गए थे। लौटे तो आकर बताना ही था कि क्या-क्या करके आए हैं। सो, जो कुछ बताया उसमें यह भी था कि फ्रांस जाकर उन्हें अनुभव हुआ कि मध्य प्रदेश के लोग सड़कों पर चलना भूल गए हैं। सो, फ्रांस सरकार से समझौता करके आए हैं कि अब फ्रांसिसी विशेषज्ञ मध्य प्रदेश आकर यहाँ के लोगों को सिखाएँगे कि सड़कों पर कैसे चला जाता है और कैसे चला जाना चाहिए। गौर साहब ने यह नहीं बताया कि हम मध्य प्रदेश के लोग सड़कों पर चलना कब से भूल गए हैं, क्यों भूल गए हैं और इसके लिए कौन जिम्मेदार है। उन्होंने वह तारीख भी नहीं बताई जिस दिन उन्हें पहली बार मालूम हुआ कि मध्य प्रदेश के लोग सड़क पर चलना भूल गए हैं। जाहिर है कि फ्रांस के लोगों को सड़कों पर चलता देख कर ही उन्हें समझ आया होगा कि मध्य प्रदेश के लोगों को सड़कों पर चलना नहीं आता।
यह भी मुमकिन है कि फ्रांसवालों ने गौर साहब को बताया हो, समझाया हो और अन्ततः भरोसा दिला दिया हो कि मध्य प्रदेश के लोगों को सड़कों पर चलना नहीं आता। फ्रांसिसी इसे अपना सहज अधिकार मानते होंगे। उन्हें तो आज तक इस बात का गुमान है कि अंग्रेजों को चलना भी उन्होंने ही सिखाया है। फ्रासिसियों को अंग्रेजों की अकल और सामान्य समझबूझ पर भी कभी भरोसा नहीं रहा। इसीलिए, फ्रांस की गुलामी के दौर में जब अंग्रेजों ने इंगलैण्ड में अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा बनाने की माँग की थी तो फ्रांसिसियों ने दो टूक कहा था कि अंग्रेजी तो जाहिलों, देहातियों, गँवारों और फूहड़ों की भाषा है। अंग्रेजों पर तरस खाते हुए फ्रांसिसियों ने कहा था कि यदि इंगलैण्ड पर अंग्रेजी लाद दी गई तो लोग अपना प्रेम प्रकटीकरण भी नहीं कर पाएँगे क्यों कि वह तो केवल फ्रेंच में ही सम्भव है, अंग्रेजी में नहीं।
सो, फ्रांसिसियों के लिए तो हम भारतीय उनके ‘गुलामों के गुलाम’ हैं। जब उन्होंने अपने गुलामों को तहजीब सिखाई तो अंग्रेजों के गुलामों को यह सब सिखाना उनके लिए सहज स्वाभाविक ही नहीं, उनकी बुनियादी जिम्मेदारी भी है और अधिकार भी।
कहते हैं, चाहे जो जाए, आदमी को अपना चाल-चलन नहीं छोड़ना चाहिए। जो भी कोई छोड़ता है, उसकी जग हँसाई और खूब फजीहत होती है। दूसरों नकल करने में आदमी अपना असल भी खो देता है। इसीलिए तो जब कौवे ने हंस की चाल चलने की कोशिश की तो अपनी चाल भी भूल गया।
लेकिन गौर साहब की मानें तो हम मध्य प्रदेशवासियों के लिए ऐसा कोई खतरा नहीं है। हमारी न तो फजीहत होगी और न ही जग हँसाई। हम तो वे लोग हैं जो चलना ही भूल गए हैं। हम तो शुरुआत से शुरु करेंगे। याने अब हम मध्य प्रदेशवासी अपनी चाल चलते नजर नहीं आएँगे। अब हम फ्रांसिसी-चाल चलते नजर आएँगे। अब आप इस ‘फ्रांसिसी चाल’ का गलत मतलब निकालना चाहें तो आपकी मर्जी।
जो लोग फ्रांसिसियों का चलना जानने/देखने को उत्सुक रहे हों, उन्हें अब फ्रांस जाने की जरूरत नहीं है। गौर साहब से वह तारीख पूछ लीजिए जबसे फ्रांसवाले हम मध्य प्रदेशवालों को सड़कों पर चलना सिखाना शुरु करेंगे।
मध्य प्रदेश की (और न्यूनाधिक समूची भारतीय) संस्कृति को भाजपा सरकार की यह अनूठी देन होगी - लोग तो मध्य प्रदेश के और चाल फ्रांस की।
देश के बाकी हिस्सों के लोगों! हमसे ईर्ष्या करो।
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हम तो उसी हिस्से के हैं तो काहे ईर्ष्या करें..:)
ReplyDeleteठेठ रतलामी पैदाईश...
ReplyDeleteसमीर लाल
जन्म स्थान: रतलाम भरते भरते कई बार सोचा कि एक बार जरुर जाना है अपना जन्म स्थान एखने..जहाँ से एक बरस की उम्र में विस्थापित हो गये थे.
@समीर लाल
ReplyDeleteजन्म स्थान: रतलाम भरते भरते कई बार सोचा कि एक बार जरुर जाना है अपना जन्म स्थान एखने..जहाँ से एक बरस की उम्र में विस्थापित हो गये थे.
आपने गए साल भी यही दुहाई दी थी और रतलाम आने का भरोसा दिलाया था। लगता है, नेताओं के साथ रहते-रहते और नेताओं पर लिखते-लिखते आप भी नेता हो गए हैं - इंकार भी नहीं करते और वादा भी नहीं निभाते।
(वैसे, ब्लागियों के नेता तो आप हैं ही।)
उज्जैन के महापौर भी अभी पेरिस हो कर आये और बोले कि उज्जैन को पेरिस बना देंगे.
ReplyDeleteफ्रांसीसी चाल तो भारत में सीखी जा सकती है पोंडिचेरी में. गौर जी को इत्ता पैसा (हमारा) खर्चने की क्या जरूरत थी.
ReplyDeleteमंत्रियों के विदेश यात्रा करने और वापस आकर ऊटपटांग बयान देने की हमारे यहाँ एक प्राचीन परम्परा है… गौर साहब ने उसी परम्परा का पालन किया है इसमें न तो निराश होने की आवश्यकता है न ही गुस्सा होने की… :) :)
ReplyDeleteपरम्परा का पालन करना कोई बुरी बात है क्या? :)
जनता की सेवा के नाते नेता जी अभी अमरीका और इंगलैंड का भी भ्रमण करेंगे शायद और वहाँ की चाल पर भी बयान देंगे। बेहतर हो कि उनकी यात्रा पर हुए सरकारी खर्चे के बारे में बयान दिया जाये और उसकी वसूली करके उस पैसे से सडक के गड्ढे भरे जायें।
ReplyDeleteमुझे लगता हे कि इन साहब को किसी फ्रांसिसी ने डांटा हो गा, ओर अब वो डांट लोगो पर निकाल रहे हे, लेकिन इन्हे नही पता भारतिया इस दुनिया के बाप हे, ओर यह लोग हम से सीखते हे, हम इन से नही, गॊर साहब पहले सडके ओर फ़ुटपाथ सही बनवाओ, ओर फ़िर देखो कोन सही चलता हे,
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