अखबारों और पत्र/पत्रिकाओं में आए दिनों कभी ‘हिंगलिश’ के पक्ष में सीनाजोरी से दिए तर्क सामने आते हैं तो कभी हिन्दी के पक्ष में, गाँव-खेड़ों, कस्बों से उठते एकल स्वर सुनाई देते हैं। सीनाजोरी का विरोध करने और एकल स्वरों में अपना स्वर मिलाने को मैंने अपनी फितरत बना रखी है ताकि सीनाजोरों की निर्द्वन्द्वता, नाम मात्र को ही सही, बाधित हो और एकल स्वरों को अकेलापन न लगे। ऐसे सैंकड़ों पत्र मैंने लिखे किन्तु उनका कोई रेकार्ड नहीं रखा। 5 सितम्बर को अचानक ही विचार आया कि इन पत्रों का रेकार्ड रखा जाना चाहिए। इसीलिए इन पत्रों को 5 सितम्बर से अपने ब्लॉग पर पोस्ट करना शुरु कर दियाँ। ये मेरे ब्लाॅग की पोस्टों में शरीक नहीं हैं। मैं जानता हूँ इनकी न तो कोई सार्वजनिक उपयोगिता है और न ही महत्व। यह जुगत मैंने केवल अपने लिए की है।
'दैनिक भास्कर' के, 'मेनेजमेंट फंडा' स्तम्भ के स्तम्भकर श्री एन. रघुरामन को, दिनांक 07 अक्टूबर की अपराह्न लगभग साढेत तीन बजे भेजा गया सन्देश
प्रिय रघुरामनजी,
सविनय सप्रेम नमस्कार,
आपको धन्यवाद और आपका हार्दिक अभिनन्दन कि अपने लेखों में आप, हिन्दी के लोक प्रचलित शब्दों के स्थान पर अकारण ही अंग्रेजी शब्दों के उपयोग में कमी कर रहे हैं।
किन्तु लगता है कि यह आपकी आदत में नहीं आ पा रहा है। इसका बहुत ही सुन्दर उदाहरण, ‘दैनिक भास्कर’ के आज के अंक में, आपके स्तम्भ ‘मैनेजमेंट फंडा’ के अन्तर्गत प्रकाशित, ‘क्वालिटी से मिटेगा क्षेत्रीय असंतुलन’ शीर्षक आलेख में उपलब्ध है।
अपने इस आलेख में आपने ‘कारक’, ‘निर्बाध’, ‘आपूर्ति’, ‘गुणवत्ता’ जैसे सुन्दर शब्द प्रयुक्त किए हैं।
यह रोचक विरोधाभास है कि आप अलेख में तो ‘गुणवत्ता’ प्रयुक्त करते हैं और शीर्षक में ‘क्वालिटी’। इतना ही नहीं, आपने 6 और स्थानों पर भी ‘क्वालिटी’ प्रयुक्त किया है और दो स्थानों पर ‘गुणवत्ता’। जाहिर है कि आपको ‘गुणवत्ता’ शब्द मालूम है और यह भी मालूम है कि यह ‘क्वालिटी’ का पर्यायवाची है। फिर भी आप ‘क्वालिटी’ प्रयुक्त कर बैठे। यह उदाहरण है इस बात का कि आप हिन्दी के मामले मे चाहें तो सावधानी बरत कर अंग्रेजी के अकारण उपयोग से अपने पाठकों को तथा हिन्दी को बचा सकते हैं।
अपने इस आलेख में आपने अकारण ही ऐसे अनेक अंग्रेजी शब्द प्रयुक्त किए हैं जिनके लिए हिन्दी के सहज और सरल शब्द लोक प्रचलन में हैं। ये इस प्रकार हैं -
नेटवर्क - इसके लिए हिन्दी का ‘संजाल’ धड़ल्ले से प्रयुक्त किया जा रहा है।
मेनपावर - इसके लिए ‘जनशक्ति’ प्रयुक्त किया जा सकता है।
इण्डस्ट्रीज - कौन नहीं जानता कि इसके लिए ‘उद्योग/उद्योगों’ वापरा जाता है?
एजुकेशन - छठवीं कक्षा का बच्चा भी जानता है कि इसे ‘शिक्षा’ कहते हैं।
ग्रेजुएट्स - आपको नहीं पता कि इसका हिन्दी पर्याय ‘स्नातक’ अब तो वयस्क हो चुका है?
बेल्ट - आपके इस आलेख के सन्दर्भ में इसके लिए ‘इलाका/इलाके’ आसानी से उपलब्ध है।
एक और बात फिर कह रहा हूँ जिसे मैं पहले भी एकाधिक बार निवेदन कर चुका हूँ - अपने आलेखों में आप अंग्रेजी शब्दों के बहुवचन रूप, यथा ‘इंडस्ट्रीज’, ‘ग्रेजुएट्स’, प्रयुक्त कर रहे हैं जो अनुचित है।
दुनिया की सारी भाषाओं के व्याकरण का यह सामान्य नियम है कि जब भी कोई शब्द अपनी मूल भाषा से दूसरी/इतर भाषा में जाता है तो उस पर उस दूसरी/इतर भाषा का व्याकरण लागू होगा, उस शब्द की मूल भाषा का नहीं। इस नियम के अनुसार ‘इंडस्ट्रियों’, ‘ग्रेजुएटों’ लिखा जाना चाहिए।
दूसरी भाषा के शब्द एकवचन में लिखे जाने पर भी दूसरी भाषा में बहुवचन के रूप में काम में आ जाते हैं। जैसे आपके आजवाले आलेख में आपने ‘जिस तरह के ग्रेजुएट्स निकल रहे हैं’ और ‘विभिन्न विषयों में रोजगार के लायक ग्रेजुएट्स पैदा कर सकें’ लिखा है। इनके स्थान पर आप ‘जिस तरह के ग्रेजुएट निकल रहे हैं’ और ‘विभिन्न विषयों में रोजगार के लायक ग्रेजुएट पैदा कर सकें’ लिखते तो भी अर्थ में कोई अन्तर नहीं आता।
जैसा कि मैं आपसे बार-बार अनुरोध करता हूँ, कृपया हिन्दी के लोक प्रचलित शब्दों के स्थान पर अकारण ही अंग्रेजी शब्द प्रयुक्त कर हिन्दी को विकृत मत कीजिए। हिन्दी ने आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ा है। हिन्दी तो आपको रोटी, पहचान, प्रतिष्ठा और लोकप्रियता दे रही है। तनिक विचार कीजिए कि इस सबके बदले में आप हिन्दी को क्या दे रहे हैं? यदि आप हिन्दी को कुछ दे नहीं सकते तो कृपया हिन्दी को विकृत, विरूप तो न करें। यदि आप ऐसा करने से बचेंगे तो यह भी आपकी बहुत बड़ी हिन्दी सेवा होगी।
इस सन्देश में आपको कोई बात अनुचित, अन्यथा, आपत्तिजनक, अवमाननाकारी लगी हो तो मैं आपसे करबद्ध क्षमा याचना करता हूँ। मेरी भाषा अटपटी हो सकती है किन्तु विश्वास कीजिएगा यह सब मैंने आपको अपनी सम्पूर्ण सदाशयता और आपके प्रति यथेष्ठ आदर भाव से ही लिखा है।
हिन्दी पर कृपा कीजिएगा।
धन्यवाद।
विनम्र
विष्णु बैरागी
पुनश्च : आपको भेजा जा रहा यह सन्देश, मेरे ब्लॉग ‘एकोऽहम्’ पर कल, 08 अक्टूबर की सुबह, ‘हिन्दी
के हक में’ टेब के अन्तर्गत, ‘हिन्दी ने आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ा है’ शीर्षक से प्रकाशित कर
रहा हूँ।
सुन्दर, विनम्र।
ReplyDeleteजागरण में भी कुछ स्तम्भकार इसी प्रकार नियमित रूप से हिन्दलिश के लिए जगह बना रहे हैं
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