एक ठिठुरता वक्तव्य

यह पूरा सप्ताह बड़े कष्ट में बीता। ठण्ड ने परेशान कर दिया। आयु के पैंसठवें वर्ष में चल रहा हूँ किन्तु याद नहीं आता कि ऐसी ठण्ड कभी भोगी-भुगती हो। मुमकिन है, आयुवार्धक्य और इसी कारण, शरीर की कम होती प्रतिरोधी क्षमता इसका एक बड़ा कारण हो। किन्तु इस बार ठण्ड ने अत्यधिक परेशान कर दिया। आज बादलों के छाए रहने से ठण्डक कम लग रही है किन्तु इतनी कम भी नहीं कि असावधान और निश्चिन्त हुआ जा सके।

इस पूरे सप्ताह ऐसा हुआ कि लिखने को जी किया किन्तु लेप टॉप खोलने और बैठकर काम करने की हिम्मत ही नहीं हुई। हर बार लगा कि अंगुलियॉं काम नहीं कर रही हैं और बैठ पाना सम्भव नहीं हो रहा। इसी कारण मेरा, बीमा का काम भी स्थगित रहा। टेबल पर काम का ढेर लग गया है। यह जानते हुए कि यह प्रकृति-चक्र का ही हिस्सा है और सृष्टि के लिए अनिवार्य भी, मैं ईश्वर से प्रार्थना कर रहा हूँ कि ठण्ड से तनिक राहत दे। मेरे लिए न सही, उन सबके लिए जो नाम मात्र के लिहाफ के सहारे, खुले में रातें गुजारने को विवश हैं।

केवल मेरा कस्बा ही नहीं, समूचा मालवा इस बार अत्यधिक ठिठुर गया। मेरे कस्बे में पारा 4.2 डिग्री तक लुड़क गया। अखबारों ने जब-जब भी गिरते पारे का आँकड़े दिया तब-तब, हर बार मेरे मानस में, बन्द आँखोंवाले, हाथ-पाँव सिकोड़े हुए गर्भस्थ शिशु का चित्र ही सामने आया। लगा कि पारा भी इसी तरह सिकुड़ गया है।

इस बीच, मेरे यहाँ काम करनेवाली महिला (उसका नाम हम दोनों नहीं जानते। उसकी बेटी मधु के माध्यम से उसे ‘मधु की माँ’ के नाम से ही जानते हैं) ने मुझे प्रतिदिन चमत्कृत तो किया ही, अपनी ही नजरों में मुझे शर्मिन्दा भी किया। जमा देनेवाले इस पूरे सप्ताह वह प्रतिदिन तय समय पर आती रही। इससे अधिक उल्लेखनीय और चकित कर देनेवाली बात यह रही कि उसके चेहरे पर और व्यवहार में ठण्ड का असर रंच मात्र भी नजर नहीं आया। मैं रजाई में ही होता था और वह मेरी उत्तमार्द्ध से बात करती हुई, चहकती हुई चपलता से अपना काम निपटाती थी। ऐसे क्षणों में मैं हर बार अपराध-बोध से ग्रस्त हुआ। जीवन का अनिवार्य हिस्सा हो जाने पर अभाव भी इतने सहज-साथी हो जाते हैं? ईश्वर तो सबका ध्यान रखता है। किन्तु लगता है, हम मनुष्यों ने काफी-कुछ गड़बड़ कर दिया है।


मौसम अभी भी सर्द ही है। काम करने की इच्छा पर मौसम के तेवर अभी भी भारी पड़ रहे हैं। मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ - मौसम के तनिक कम कष्टदायक होने की।

5 comments:

  1. "Bhaijee! thand kitni hai? " Jawab mila -"Jiske paas jitne saadhan hain,bas utni hai."

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  2. शीत ऊष्ण तो सहना होगा,
    ताल ठोंक कर रहना होगा।

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  3. लगता है पूरे भारत का यही हाल है. मैं अभी २२ दिन से चेन्नई में हूँ और देख रहा हूँ की यहाँ के लोगों को भी पहली बार ठण्ड लग रही है. क्या यह भी ग्लोबल वार्मिंग का असर है?

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  4. बड़े भाई सर्दी का ख्याल रखिएगा। मैं भी पिछले करीब डेढ़ माह से परेशान हूँ। पहले पच्चीस दिन हर्पीज ने परेशान किया। फिर जुकाम लगा और दस दिन पहले अदालत में एक बहस के दौरान शाम चार-पाँच के बीच करीब एक घंटा खड़े रहना पड़ा तो पैरों में अकड़न महसूस हुई। सर्दी का असर जान तेज चल लिया, कुछ सीढ़ियाँ जोश में चढ़ लीं कि बाएं पैर का घुटना बोल गया। अब उस का इलाज कर रहा हूँ। सर्दी अभी दस पन्द्रह दिन और कष्ट दे सकती है।

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  5. आपकी इस पोस्ट को पढ़ कर एक कहानी याद आ गयी .."दुःख का अधिकार " शायद रामचंद्र शुक्ल जी की थी .. बहुत संवेदनशील पोस्ट

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