भ्रष्टाचार लाइव

यदि यह भ्रष्टाचार है तो आज मैंने ‘भ्रष्टाचार लाइव’ देखा।

मेरे एक परिचित के परिवार में अचानक ही एक विवाह तय हो गया - आज ही। लड़केवाले आए थे। लड़के के साथ। दोनों परिवार पूर्व परिचित तो थे किन्तु इस तरह सम्बन्धी बन जाएँगे, यह दोनों में से किसी ने, कभी नहीं सोचा था। दोनों के लिए यह कल्पनातीत ही था।

सुबह लगभग नौ बजे लड़केवाले आए। बिना किसी पूर्व सूचना के। चाय-नाश्ते पर ही उन्होंने अपना मन्तव्य प्रकट किया। बात ही बात में बात मुकाम पर पहुँचती नजर आई तो मेरे परिचित ने पण्डितजी को बुलवा लिया। लड़का-लड़की की देखा-देखी और मिलना-जुलना, चाय-नाश्ते के समानान्तर हो चुका था। दोनों ही राजी थे। लड़के की पत्रिका उपलब्ध थी। पत्रिका की बात आई तो मैंने (अपनी ‘गन्दी आदत’ के अनुसार) टोका कि अब पत्रिका मिलान करने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि बात मुकाम पर पहुँच गई है और ऐसे में यदि पत्रिका मिलान नहीं हुआ तो फिर पण्डितजी से ‘कोई रास्ता’ निकालने को कहा जाएगा जो अन्ततः मन समझाने के बहाने के सिवाय और कुछ नहीं होगा। किन्तु लड़की की माँ नहीं मानी।

पत्रिकाएँ देख कर पण्डितजी ने कहा - ‘मिठाई मँगवाइए। अट्ठाईस गुण मिल रहे हैं।’ अब बाकी था तो केवल विवाह का मुहूर्त। आए तो लड़केवाले थे किन्तु अब जल्दी हुई लड़कीवालों को। पण्डितजी ने पंचांग के पन्ने पलटे। उनके ललाट पर पाँच सिलवटें आ गईं। देख कर लड़की की माँ व्याकुल हो गई। रहा नहीं गया। पूछा - ‘कोई गड़बड़ तो नहीं?’ पण्डितजी ने निश्चिन्त किया - ‘घबराइए बिलकुल नहीं। कोई गड़बड़ नहीं है। बात बस इतनी ही है कि श्रेष्ठ मुहूर्त 15 जनवरी को आ रहा है-नौ दिनों के बाद। उसके बाद देव प्रबोधिनी एकादशी का मुहूर्त आ रहा है।’ सुनकर लड़की के पिता (मेरे परिचित) गड़बड़ा गए। उनकी शकल बता रही थी कि वे पन्द्रह जनवरी को कन्यादान कर देना चाह रहे थे किन्तु इतने कम समय में यह सम्भव नहीं होगा। लड़केवाले प्रतीक्षा करने को तैयार थे। तभी मानो ‘पोकरण परमाणु विस्फोट’ हुआ। लड़की की माँ ने घोषणा की - ‘हो जाएगा। सब इन्तजाम हो जाएगा। शादी इसी पन्द्रह जनवरी को कर लेते हैं।’

इसके बाद जो कुछ हुआ उसका कोई मतलब नहीं। लड़केवालों को विदा किया। दोनों ओर विवाह की तैयारियाँ फौरन ही शुरु हो गईं। किन्तु सबसे बड़ी समस्या सामने आई - मेरे परिचित की श्रीमतीजी की छुट्टियों की। वे सरकारी स्कूल में अध्यापक हैं। विद्यालय में कुल तीन का स्टॉफ है। तीनों महिलाएँ हैं। उनमें से एक पहले से ही अवकाश पर चल रही है और दूसरी की ड्यूटी, नौ जनवरी से जातिगत जनगणना में लग गई है। आज तो जरूर वह अध्यापक स्कूल में है (जिन्हें परिचित की श्रीमतीजी ने अपने, देर से आने का समाचार करवा दिया था) किन्तु नौ जनवरी से, विद्यालय का पूरा भार परिचित की श्रीमतीजी के कन्धों पर ही आ जाएगा! ऐसे में छुट्टी कैसे मिल सकेगी? किन्तु परिचित निश्चिन्त थे। बोले - ‘जब ईश्वर यह योग बना रहा है तो छुट्टी भी मिल ही जाएगी।’ मुझे विश्वास नहीं हुआ। परिचित बोले - ‘चलिए! आज आप भी एक खेल देख लीजिए।’

हम दोनों, परिचित की श्रीमतीजी के संकुल कार्यालय पहुँचे। प्राचार्यजी से दुआ-सलाम के बाद परिचित ने सारी बात बताई और आग्रह किया कि उनकी श्रीमतीजी को कल से ही, कम से कम पन्द्रह दिनों का अवकाश दे दिया जाए। प्राचार्यजी से ऐसे हड़बड़ाए जैसे जीवित साँप उन पर फेंक दिया हो। बोले - ‘कैसे मिल सकता है? मिल ही नहीं सकता। कुल तीन का तो स्टॉफ है। एक पहले से छुट्टी पर है और दूसरी की ड्यूटी जातिगत जनगणना में लग गई है। स्कूल बन्द नहीं कर सकते। छुट्टी तो नहीं मिल सकती।’ परिचित ने पूरे धैर्य और शान्त-भाव से सारी बात सुनी और उठते हुए बोले - ‘आपकी आप जानो। आपका स्कूल खुले या बन्द हो, मेरी बेटी की शादी तो होगी। मेरी पत्नी छुट्टी पर जाएगी। आप स्कूल की व्यवस्था कर लेना। पत्रिका छपेगी या नहीं किन्तु आपको अभी से 15 जनवरी का निमन्त्रण है। समय और स्थान टेलीफोन से बता दूँगा। बच्ची को आशीर्वाद देने जरूर आइएगा।’ कह कर, प्राचार्यजी की ओर देखे बिना निकल आए।

मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। बौड़म की तरह परिचित की शकल देख रहा था। वे निर्विकार मुद्रा में थे - सर्वथा अविचलित।

रास्ते में उन्होंने स्टेशनरी की एक दुकान से छपे हुए एक फार्म की चार-पाँच प्रतियाँ खरीदीं। वहाँ से सीधे, जिला चिकित्सालय में पदस्थ एक डॉक्टर के यहाँ पहुँचे। वे उनके पूर्व परिचित थे। पूरी बात उन्हें बताई और फार्म उनके सामने रख दिए। डॉक्टर साहब ने नाम, उम्र पूछी और फार्म की कुछ प्रतियों पर हस्ताक्षर कर अपनी मुहर लगा कर मित्र को लौटा दीं। परिचित ने पूछा - ‘कितना?’ डॉक्टर साहब बोले - ‘बेटी की शादी है इसलिए केवल तीन सौ।’ परिचित ने सौ-सौ के तीन नोट डॉक्टर साहब को दिए। वहाँ से श्रीमतीजी के स्कूल पहुँचे। फार्मों पर उनक हस्ताक्षर करवाए। एक आवेदन लिखवाया। आवेदन और फार्म लेकर फिर से संकुल प्राचार्य के पास पहुँचे। श्रीमतीजी का आवेदन और फार्म उन्हें देते हुए बोले - ‘मेरी पत्नी की तबीयत अचानक खराब हो गई है। डॉक्टर ने पन्द्रह दिनों के आराम की कहा है। ये रहा मेरी पत्नी का आवेदन और डॉक्टर का सर्टिफिकेट।’ और पूर्वानुसार ही, प्राचार्यजी की ओर देखे बिना, शान्त-संयत और निर्विकार मुद्रा में निकल आए। मैंने देखा, हाथों में कागज लिए प्राचार्यजी बदहवास हालत में खड़े थे। वे हाथ हिलाकर मेरे परिचित को बुला रहे थे किन्तु उनके मुँह से बोल नहीं फूट रहे थे। और मैं? मैं समझ ही नहीं पाया कि यह सब क्या हो गया?

प्राचार्यजी के दफ्तर के बाहर आकर परिचित ने मेरी ओर देखा। मुस्कुराए और बोले - ‘चलिए! व्यवस्थित मेरीज हॉल तो कोई मिलेगा नहीं। कोई छोटा-मोटा मेरीज हॉल बुक कर लेते हैं।’

मैं उनके पीछे-पीछे यन्त्रवत चलने लगा। मुझे न तब समझ पड़ रहा था और न अब समझ पड़ रहा है कि मैंने यह सब क्या देखा?

10 comments:

  1. रंगमंच ये दुनिया सारी... और आप देख रहे हैं, जीवन का कार्य-व्‍यापार.

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  2. सरकारी मशीनरी भी बढ़ावा दे रही है, अगर स्टॉफ़ ज्यादा नहीं है तो उन्हें भर्ती करना चाहिये। और छुट्टी का हक तो सबका है। हाँ अगर ईमानदारी से व्यवहारिक तौर पर देखा जाये तो भ्रष्टाचार है ।

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  3. फेस बुक पर श्री सुरेशजी करमरकर की टिप्‍पणी -


    विष्णुजी, इतना भी धैर्य नहीं,कमसे कम विवाह के बाद यह घटना ब्लॉग पर डालते। कहीं आपकी स्पष्टवादिता बनते हुए काम मैं कष्ट न डाल दें।

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  4. फेस बुक पर श्री परागजी दत्‍त की टिप्‍पणी -

    "वैसे किसी भी मां को अपनी बेटी के विवाह के लिये छुट्टियां मिलनी ही चाहिये।"

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  5. iske baad hum yeh kahte hai ki hamare neta chor hai :-).

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  6. अजब देश की गज़ब कहानी

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  7. aab aap ko kya batayen.. mujhe to aapki chinta ho rahi hai, loog aapko dekhate hi personal baaten karana banda kar denge, muhan sil lenge..

    vaise post badiya hai...

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  8. अपना काम निकलने के लिए सीधे उंगली घी नहीं निकलता तो टेढ़ी करनी पड़ती है .. बेटी की शादी के लिए ये तो माँ का हक था छुट्टी लेने का .. पर मजबूरी ही भ्रष्टाचार को जन्म दे देती है .

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  9. मैं भी करमरकर जी की बात से सहमत हूँ. यहाँ प्राचार्य की नाकाबिलियत ने यह कदम उठाने को मजबूर किया. प्राचार्य को जो कदम अब मजबूरी में उठाना पड़ेगा वो पहले उठा लेते तो यह नौबत नहीं आती.

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  10. पुरानी कहावत: God helps those who help themselves.
    नई कहावत: प्रभु उन कर्मचारियों की सहायता करते हैं जिनका परिचय डॉक्टर से होता है (वैसे नई कहावत के अन्य अंग भी हैं, पर वे फिर कभी)
    अभी तो आपका आभार कि ताज़ी पोस्ट में इस पोस्ट का भी लिंक दिया, न जाने कैसे पढने से छूट गयी थी।

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